भाजपा के ‘कामचोर’ सांसदों की अब खैर नहीं

Edited By ,Updated: 29 May, 2019 03:44 AM

bjp s  kamchoor  mps are no longer good

सैंट्रल हाल से भाजपा सांसदों के लिए नरेन्द्र मोदी का संदेश सबककारी है, जो भाजपा संासद सबक लेकर जनकल्याणकारी नहीं हुए  और पार्टी लाइन से अलग होकर सक्रियता दिखाई, उनकी अब खैर नहीं। एक उदाहरण इस लोकसभा चुनाव में जीते भाजपा सांसदों के लिए राजनीतिक तौर...

सैंट्रल हाल से भाजपा सांसदों के लिए नरेन्द्र मोदी का संदेश सबककारी है, जो भाजपा सांसद सबक लेकर जनकल्याणकारी नहीं हुए  और पार्टी लाइन से अलग होकर सक्रियता दिखाई, उनकी अब खैर नहीं। एक उदाहरण इस लोकसभा चुनाव में जीते भाजपा सांसदों के लिए राजनीतिक तौर पर लाभकारी होगा। मैं एक ऐसे विख्यात भाजपा सांसद के राजनीतिक हश्र का गवाह रहा हूं, जो अव्वल दर्जे के बुद्धिजीवी थे, वैचारिक प्रसंगों पर उनकी सक्रियता सर्वश्रेष्ठ थी, भाजपा में खनक भी थी पर वह जनाधार वाले नहीं थे। उन्होंने नरेन्द्र मोदी को न समझने की भूल की थी, कांग्रेसी नहीं थे पर कांग्रेसी संस्कृति किसी न किसी रूप में उन पर भी सवार थी। वह चल पड़े नरेन्द्र मोदी को गुलदस्ता देने। 

प्रधानमंत्री कार्यालय में उनसे पूछा गया कि आप प्रधानमंत्री से क्यों मिलना चाहते हैं, एक वरिष्ठ सांसद को ऐसी बात सुनना कैसे अच्छा लग सकता था। फिर भी उन्होंने कहा कि मैं गुलदस्ता देकर प्रधानमंत्री का स्वागत करना चाहता हूं। प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों का जवाब था कि सिर्फ इतनी-सी बात के लिए आप प्रधानमंत्री को डिस्टर्ब करना चाहते हैं, गुलदस्ता यहीं छोड़ जाइए, प्रधानमंत्री जब खाली होंगे तब आपका गुलदस्ता उनके पास पहुंचा दिया जाएगा। प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी नरेन्द्र मोदी की स्वीकृति और निर्देश के बिना किसी खनक वाले वरिष्ठ सांसद के साथ ऐसा व्यवहार कर ही नहीं सकते हैं। 

हश्र देख लीजिए
अब उनका हश्र देख लीजिए। राज्यसभा में फिर उन्हें जगह नहीं मिली, आज वह भाजपा के किसी काम के नहीं हैं, उनके पास कोई जिम्मेदारी नहीं है, वह हाशिए पर भेज दिए गए। अगर गुलदस्ता संस्कृति उन पर हावी नहीं होती तो फिर उनकी खनक शायद जारी रहती। नरेन्द्र मोदी पहली बार 2014 में जब प्रधानमंत्री बने थे तब उनके हाथ में बहुत कुछ नहीं था। जो सांसद जीत कर आए थे वे उनकी पसंद के नहीं थे, पार्टी ने जिसे पसंद किया था उसे टिकट मिला था, उसमें नरेन्द्र मोदी का कोई हस्तक्षेप नहीं था। फिर भी नरेन्द्र मोदी गुलदस्ता संस्कृति और कांग्रेसी संस्कृति के भाजपाई सांसदों और नेताओं का जितना दमन कर सकते थे, किया था। संसद में उपस्थिति दर्ज नहीं कराने वाले सांसदों को उन्होंने सामूहिक बैठकों में हड़काया था। इस लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने तमाम वैसे सांसदों के टिकट काटे जो संसद के अंदर उपस्थिति दर्ज कराने में पीछे थे और संसद के बाहर जनता से दूर रहने की प्रवृत्ति छोडऩे के लिए तैयार नहीं थे। 

नरेन्द्र मोदी अब हर समय भाजपा सांसदों के काम पर वक्रदृष्टि रखेंगे, वैसे भी मोदी के कोई एक-दो आंख-कान नहीं हैं बल्कि अनेकों-अनेक आंख-कान हैं जो भारतीय राजनीति पर ही नहीं, बल्कि अपनी पार्टी के नेताओं पर भी गंभीर, गहरी और सबककारी दृष्टि रखते हैं। नहीं तो इस लोकसभा में चुनाव में उन्हें प्रचंड बहुमत कैसे मिलता? राजनीतिक सफलता में आंख-कान की बड़ी भूमिका होती है। खासकर सैंट्रल हॉल से भाजपा सांसदों को नरेन्द्र मोदी ने जो संदेश दिया है, अप्रत्यक्ष तौर पर जो हड़काया है, चेतावनी दी है उसके निहितार्थ बहुत ही गंभीर हैं और इस निहितार्थ को भाजपा के सांसदों को स्वीकार करना ही होगा। अब हम यहां यह देखते हैं कि सैंट्रल हॉल से नरेन्द्र मोदी ने नवनिर्वाचित भाजपा सांसदों को क्या और कैसे-कैसे संदेश, चेतावनियां दी हैं? 

नरेन्द्र मोदी ने साफ तौर पर भाजपा सांसदों से कहा है कि हमें छपास रोग से दूर रहना चाहिए, मीडिया के बहकावे में हम जल्दी आ जाते हैं, अगर मीडिया आपसे कोई प्रश्न करे और उस पर जवाब मांगे तो फिर आप कहिए कि हमें इस विषय में कुछ भी नहीं मालूम है, हम एक घंटे में इस विषय पर आपको सूचित करेंगे और दूर हो जाइए। मोदी की इस सीख का निहितार्थ यही है कि भाजपा सांसद ही नहीं, बल्कि भाजपा के नेता भी कांग्रेसी संस्कृति के शिकार होकर छपास रोग से ग्रसित हो गए हैं। 

साध्वी प्रज्ञा के बयान से बदनामी
देखा यह गया है कि भाजपा सांसद अपने क्षेत्र की समस्याओं को दूर करने और जनता के हित के साथ खड़े होने की जगह अनावश्यक राजनीति में लगे रहते हैं, अखबारों में बयान देकर पार्टी और सरकार को असहज करते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने गोडसे पर जो बयान दिया था उसको लेकर भाजपा की बड़ी बदनामी हुई थी, मोदी भी असहज दिखे थे, उन्हें ट्वीट कर प्रसंग पर पानी डालना पड़ा था। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को नसीहत भी पिलाई थी, कारण बताओ नोटिस भी जारी किया। बिना जिम्मेदारी और बिना अधिकृत होने के बावजूद भी ऐसे प्रसंगों पर बयान देकर पार्टी की फजीहत कराने पर मोदी की नाराजगी सैंट्रल हॉल में भी दिखी थी, जहां पर प्रज्ञा ठाकुर के अभिवादन का नरेन्द्र मोदी ने गर्मजोशी से स्वागत नहीं किया था। 

जिम्मेदारियों का एहसास
भाजपा सांसदों को नरेन्द्र मोदी ने जिम्मेदारियों का एहसास भी कराया है। उन्होंने सैंट्रल हॉल से कहा कि जनता ने हमें बहुत बड़ी जिम्मेदारी दी है, इतना बड़ा जनादेश दिया है, उसकी जिम्मेदारियों की कसौटी पर हमें खरा उतरना होगा। इन सभी एहसासों का अर्थ है कि जनता के साथ जुड़ कर रहना है, उसकी समस्याओं को दूर करने के लिए सांसदों को तत्पर रहना होगा, जनता की परेशानियों को लेकर संघर्ष करना होगा। मोदी का यह एहसास वैसे सांसदों के लिए खतरनाक है, जो मोदी लहर पर सवार होकर जीत जाते हैं पर एयरकंडीशनर और फाइव स्टार संस्कृति छोडऩे के लिए तैयार नहीं होते हैं। भाजपा में ऐसे सांसदों की कोई कमी नहीं है जो लम्बे-चौड़े और बीहड़ वाले अपने क्षेत्रों में जाने से कतराते हैं, गरीब-फटेहाल लोगों से मिलने से इंकार करते हैं। धनी, पहुंच वाले और प्रोफैशनल लोग तो सांसदों से मिल कर अपना कार्य करा लेते हैं पर गरीब और फटेहाल लोगों के लिए सांसद और मंत्री किसी काम के नहीं होते हैं। 

नरेन्द्र मोदी लहर में भी कई ऐसे सांसद हार गए जो बड़े नेता कहलाते थे, पर अपने क्षेत्र से दूर थे, जातिवाद, एयरकंडीशनर और फाइव स्टार संस्कृति के वाहक बन गए थे। मनोज सिन्हा की हार बहुत कुछ कहती है। मनोज सिन्हा की केन्द्रीय मंत्री के रूप में बड़ी खनक थी, उनके कार्य की आवाज तेज थी। पर वह दिल्ली में बैठ कर देश भर के जातिवादी लोगों, फाइव स्टार, एयरकंडीशनर संस्कृति के वाहकों के बीच लोकप्रिय तो जरूर हो गए पर वे अपने क्षेत्र के लोगों के बीच जाने या फिर उनकी आवाज सुनने के लिए समय नहीं निकाल पाए। उन जैसे सांसदों ने अपने क्षेत्र की विविधता को भी नजरअंदाज करने के कार्य किए, जिसका दुष्परिणाम नरेन्द्र मोदी लहर में भी हार मिली पर सच को झुठलाया नहीं जा सकता। हर जन प्रतिनिधि को यह सोचने के लिए नतमस्तक होना चाहिए कि क्षेत्र की जनता ही प्रमुख होती है, भाग्य विधाता होती है। इसलिए हर जन प्रतिनिधि का अपने क्षेत्र से लगाव और जुड़ाव जरूरी है, बड़े लोगों के साथ छोटे और गरीब तथा फटेहाल लोगों का विकास और हित की रक्षा भी जरूरी है। 

स्पष्ट कहा जा सकता है कि भाजपा के सांसद स्वयं के बल पर नहीं जीते हैं बल्कि नरेन्द्र मोदी के नाम पर जीते हैं। अगर भाजपा सांसदों ने जनता के साथ अच्छे संबंध बनाए होते और उनकी समस्याओं को दूर किया होता, नरेन्द्र मोदी की जो महत्वपूर्ण योजनाएं हैं उन्हें जनता के पास ईमानदारी और स्वच्छतापूर्ण ढंग से पहुंचाया होता तो फिर नरेन्द्र मोदी को चार सौ से अधिक सीटें मिलतीं। मोदी अपनी इन योजनाओं और भविष्य की अन्य योजनाओं पर अपने सांसदों का विश्वास और समर्पण चाहेंगे। अगर इन योजनाओं पर कोई सांसद अपना विश्वास कायम नहीं कर पाया, अपना समर्पण नहीं दिखा पाया तो फिर उसे नरेन्द्र मोदी के कोप का भाजन बनना ही होगा और उनका राजनीतिक जीवन का हश्र भी बुरा होना तय है।-विष्णु गुप्त

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