चुनावों में भाजपा की खुलकर सहायता करते हैं ‘संघ’ कार्यकत्र्ता

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Jun, 2018 04:06 AM

bjp unanimously assists sangh activists in elections

दिसम्बर विधानसभा चुनावों से काफी पहले गुजरात में एक बंद कमरा मीटिंग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई कि वह अपने सहयोगियों की इस काम में सहायता करें कि वह मतदाताओं तक पहुंच कर उन्हें समझा सकें कि उनकी...

दिसम्बर विधानसभा चुनावों से काफी पहले गुजरात में एक बंद कमरा मीटिंग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई कि वह अपने सहयोगियों की इस काम में सहायता करें कि वह मतदाताओं तक पहुंच कर उन्हें समझा सकें कि उनकी अपेक्षाओं पर पूरी तरह खरी साबित न होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार ही विपक्ष की तुलना में अभी भी बेहतर विकल्प है। 

इस पदाधिकारी ने बहुत शांत भाव से स्वयंसेवकों को कहा, ‘‘आप लोग मतदाताओं को जाकर यह बताएं कि उनकी तात्कालिक समस्याओं का समयबद्ध समाधान होगा, लेकिन यदि राज्य प्रशासन उन लोगों के हाथों में चला गया जिनकी पूरी राजनीति ही अल्पसंख्यक तुष्टिकरण पर आधारित है तो आपका भविष्य ही अंधकारमय हो जाएगा।’’ संघ के कार्यकत्र्ताओं में से कुछ एक भाजपा सरकार के आलोचक भी थे। वरिष्ठ पदाधिकारी ने उन्हें स्पष्ट किया कि जब सत्तारूढ़ सरकार के प्रति निराशा तथा आक्रोष बढ़ता जा रहा हो तो ऐसे वक्त में जनता के साथ घनिष्ठता कैसे पैदा करनी है। 

इससे पहले इस पदाधिकारी ने कार्यकत्र्ताओं को नवम्बर 2016 की नोटबंदी तथा जुलाई 2017 में लागू हुए जी.एस.टी. कानून से आहत व्यवसायियों और खासतौर पर छोटे व मझौले कारोबारियों के समक्ष सरकार की आर्थिक नीतियों की व्याख्या करते हुए सुना था। उसने सरकार से बेहतर कृषि मूल्यों, बेहतर न्यूनतम समर्थन मूल्यों और जल संकट के समाधान के संबंध में कृषक समुदाय के गुस्से के बारे में भी फीडबैक हासिल की थी। इस अधिकारी को यह भी बताया गया था कि युवाओं (खासतौर पर पाटीदार समुदाय से संबंधित युवाओं) में बेचैनी लगातार बढ़ रही है और वे सरकारी नौकरियों में आरक्षण मांग रहे हैं। 

गत वर्ष यू.पी. में भी इसी तरह के दृश्य देखने को मिले थे और वहां भी संघ के कार्यकत्र्ताओं ने यह सवाल पूछा था कि जब राजनीतिक मजबूरियों के चलते जातिगत या अन्य आधारों पर उम्मीदवारों का चयन किया जाता है तो ऐसी स्थिति में वे किस प्रकार समर्थन करें। गुजरात और यू.पी. दोनों ही राज्यों में भाजपा की जीत हुई थी तो इसमें संघ के निचले स्तर के कार्यकत्र्ताओं की भूमिका कोई छोटी नहीं थी, हालांकि संघ आधिकारिक रूप में यही कहता है कि वह मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में मतदान करने के लिए अनुरोध नहीं करता। चुनावी अभियानों के दौरान इसके कार्यकत्र्ताओं की बाकायदा ड्यूटियां लगाई जाती हैं कि वे संघ परिवार का अंग मानी जाने वाली भाजपा के उम्मीदवारों का समर्थन करें। ऐसे में इस वर्ष के अंत तक कुछ राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों तथा अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों में निश्चय ही संघ के कार्यकत्र्ताओं की कुंजीवत भूमिका होगी। 

विचारधारा के रिश्ते: गुजरात और यू.पी. में कार्यकत्र्ताओं की चिंताओं पर वैचारिक प्रतिबद्धता हावी रही थी। अधिकतर कार्यकत्र्ताओं ने संघ नेतृत्व की ओर से दिए गए आदेशों का पालन किया। केवल कुछेक ने ही असहमति व्यक्त की थी और अपने घरों में ही चुपचाप बैठे रहे थे। संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी द्वारा ली गई मीटिंग में उपस्थित एक कार्यकत्र्ता ने बताया,‘‘कार्यकत्र्ताओं की असहमतियों और निराशाओं को विचारधारा के नाम पर दरकिनार कर दिया जाता है। यह कोई पहला अवसर नहीं था जब असहमति पैदा हुई हो। संघ एक लोकतांत्रिक मंच है और इसलिए इसमें असहमति के स्वर भी सुने जाते हैं लेकिन एक बार जब सामूहिक फैसला हो जाता है तो हर किसी के लिए इसका अनुपालन करना अनिवार्य होता है।’’ बहुत से संघ कार्यकत्र्ताओं का कहना है कि इसी मर्यादा को ‘संघ की रीति-नीति’ कहा जाता है। 

संघ का आधिकारिक स्टैंड यह है कि चुनाव प्रबंधन में इसकी भूमिका बहुत सीमित होती है। इसमें केवल बूथ स्तर पर ही कार्य को निर्दिष्ट करना होता है और मतदाताओं को सक्रिय करने के लिए मीटिंगें आयोजित करनी होती हैं। लेकिन संघ के समॢपत कार्यकत्र्ताओं को पूरी तरह यह प्रशिक्षण मिला होता है कि जनता का रुख भांपने के लिए किस प्रकार सर्वे करना है और भाजपा के लिए जनसमर्थन जुटाने हेतु जमीन कैसे तैयार करनी है। एक अन्य कार्यकत्र्ता ने कहा, ‘‘आर.एस.एस. न तो चुनावी अभियानों की रूपरेखा तय करता है और न ही चुनावी मुद्दों में हस्तक्षेप करता है लेकिन ऐन चुनाव के समीप आने पर इसकी ओर से जो सहायता दी जाती है वह बहुत मूल्यवान सिद्ध होती है।’’ संघ के बहुत से कार्यकत्र्ता इस तथ्य को रेखांकित करते हैं कि उनकी न तो कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा होती है और न ही कोई व्यावसायिक हित। ‘‘सीक्रेट्स आफ आर.एस.एस.-डीमिस्टीफाइंग द संघ’’ नामक पुस्तक के लेखक रत्न शारदा का कहना है कि अधिकतर लोग सेवा की भावना से ही आर.एस.एस. में शामिल होते हैं। 

जो हमारा समर्थन करेंगे हम उनका समर्थन करेंगे: संघ के वरिष्ठ कार्यकत्र्ता आग्रहपूर्वक इस बात पर डटे रहते हैं कि संघ ‘राष्ट्र निर्माण तथा व्यक्ति निर्माण’ के ध्येय को ही समर्पित है। लेकिन आर.एस.एस. कार्यकत्र्ताओं तथा भाजपा नेताओं के बीच होने वाली रूटीन मीटिंगों (खासतौर पर चुनावों के मौसम में) के बारे में वे टालमटोल भरा उत्तर देते हैं। भाजपा में महासचिव का पद आर.एस.एस. द्वारा भेजे गए प्रचारक को मिला हुआ है जोकि दोनों संगठनों के बीच एक सेतु का काम करता है और संदेश पहुंचाने के साथ-साथ निर्णय प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है। 

एक वयोवृद्ध प्रचारक ने संघ की भूमिका के बारे में अधिक स्पष्ट शब्दों में इस तरह बताया: ‘‘संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया था। बेशक हम भाजपा के साथ कोई मंच सांझा नहीं करते तो भी लगातार हमारी आलोचना होती है। इससे यह स्वत: स्पष्ट है कि हमसे उन लोगों का समर्थन करने की उम्मीद नहीं की जा सकती जो हमीं पर लक्ष्य साधे हुए हैं।’’ हाल ही में संघ परिवार के कुछ संगठनों और सरकार के बीच एयर इंडिया के रणनीतिक अपनिवेश व स्वास्थ्य योजनाओं में विदेशी इकाइयों की भागीदारी जैसी नीतियों को लेकर टकराव पैदा हो गया था जिससे ऐसा लगने लगा था कि संघ और भाजपा का समीकरण बिगड़ गया है। लेकिन आर.एस.एस. ने इसे संघ परिवार में लोकतंत्र की अभिव्यक्ति करार दिया। वरिष्ठ कार्यकत्र्ताओं ने कहा कि इस प्रकार की असहमतियों से आर.एस.एस.-भाजपा के परस्पर संबंध में कोई आंच नहीं आती।-एस.के. रामचंद्रन

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