लौटा दो मेरे बीते हुए अच्छे दिन

Edited By ,Updated: 06 Jun, 2021 05:02 AM

bring back my good days

एन.डी.ए./भाजपा  सरकार के 7 वर्षों के शासनकाल ने आडंबरपूर्ण कथन के गोलमाल को रेखांकित किया है। भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सबसे बदतर स्तर पर खड़ी है। हालांकि महामारी से

एन.डी.ए./भाजपा  सरकार के 7 वर्षों के शासनकाल ने आडंबरपूर्ण कथन के गोलमाल को रेखांकित किया है। भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सबसे बदतर स्तर पर खड़ी है। हालांकि महामारी से पूर्व वृद्धि 2019-20 में आधी होकर 4 प्रतिशत हो चुकी है। 2013-14 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 1.86 ट्रिलियन डालर का था। 2020-21 में यह 1.85 ट्रिलियन डालर तक खड़ी है। 

तुलना के लिहाज से चीन की अर्थव्यवस्था 16.64 ट्रिलियन डालर की है। निवेश, उपभोग तथा रोजगार जैसे मूल आधारों पर बहुत अधिक दबाव पड़ा है। बेरोजगारी दर 45 वर्ष की ऊंचाई पर है। प्रति व्यक्ति आय के भी अप्रत्याशित तौर पर 5.4 प्रतिशत तक गिरने की आशा है जहां यह पिछले वर्ष 1.34 लाख थी। अब वर्तमान में 1.27 लाख है। 2019-20/2020-21 के लिए केंद्र सरकार का संचित वित्तीय घाटा 33.55 लाख करोड़ है। 7 बड़े पब्लिक सैक्टर यूनिट (पी.एस.यू.) का मूल्य आशा के अनुरूप नहीं है और अब सरकार अद्वितीय वित्तीय बजट को पूरा करने के लिए पारिवारिक सिल्वर को बेचने की योजना बना रही है। 

अब यह बात स्पष्ट है कि आत्मनिर्भर के सभी ऊंचे-ऊंचे वायदों में छिद्र बन गए हैं। स्वास्थ्य आपातकाल को संभालने के लिए भारत अब विदेशी सहायता पर निर्भर हो रहा है। यहां तक कि हमने कीनिया से अनाज स्वीकार किया है। 2004 में सुनामी के चक्कर में डा. मनमोहन सिंह ने विदेशी राहत स्वीकार करने से इंकार कर दिया था।

संस्थागत अखंडता : संस्थागत अखंडता का कटाव एन.डी.ए./भाजपा सरकार की कसौटी  सी.बी.आई., चुनाव आयोग, रिजर्व बैंक और यहां तक कि न्यायपालिका तक सभी विश्वसनीयता  का संकट झेल रहे हैं। यहां तक कि सरकार तथा नागरिक के बीच विश्वास की खाई बढ़ती जा रही है। भारतीय लोकतंत्र का मंदिर संसद सबसे ज्यादा झेल रहा है। 

किसी भी प्रधानमंत्री ने संसद को इतना कभी नहीं नकारा जितना कि वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी नकार रहे हैं।  एन.डी.ए. सरकार ने अध्यादेश के मार्ग का अनुसरण किया है। अपने 7 वर्षों में वर्तमान सरकार ने और अधिक अध्यादेशों को किसी अन्य सरकार की तुलना में आगे बढ़ाया है। यहां तक कि संसदीय समिति को भेजे गए बिल भी नाटकीय ढंग से कम हुए हैं। 2020 में शून्य बिलों की सिफारिश की गई। 

सामाजिक एकजुटता : एन.डी.ए./ भाजपा सरकार ने अपने 7 सालों में सत्ता में रहने के दौरान भारत के विचार को अपने सिर पर ले लिया है। यह सरकार स्थापित मूल्यों में विश्वास नहीं रखती तथा इसने बहुसं यक लोकाचार को घडऩे के लिए सभी उपायों का इस्तेमाल किया है। इस सरकार ने खाने तथा सोचने की स्वतंत्रता, पहनने की पसंद, अभिव्यक्ति तथा सबसे महत्वपूर्ण बिना किसी डर के अपना जीवन जीने की स्वतंत्रता पर आघात किया है। 

सी.ए.ए. विरोधी प्रदर्शनों ने दर्शाया है कि एक छोटा या फिर दृढ़संकल्प वाला समूह ही सत्य बोल सकता है। दिल्ली दंगों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी दबाने वाली थी। जब तीन कृषि कानूनों को बिना किसी छोटे तथा सीमांत किसानों की चिन्ता के फ्री मार्कीट में धकेला था तो किसानों द्वारा सबसे लंबे शांतमयी आंदोलन का पूरा विश्व साक्षी बना था।

पिछले पूरे 7 वर्षों में सरकार ने देश के संघीय ढांचे को तोडऩे का हर भरसक प्रयास किया। अनैतिक उपायों का इस्तेमाल कर भाजपा द्वारा 9 राज्य सरकारों को गिराया गया। विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों को अस्थिर कर भाजपा ने लोगों के जनादेश की अवहेलना का प्रदर्शन किया। राष्ट्रीय संकट के दौर में राज्यों को उनकी किस्मत पर छोड़ दिया गया। हाल ही की टीकाकरण असफलता इसकी बड़ी मिसाल है। मोदी सरकार के लिए कागजों पर सहकारी संघवाद दिखाई देता है जबकि वास्तविकता में यह गैर-संचालित संघवाद है। 

अंदरुनी सुरक्षा : मोदी सरकार ने अपने आपको कड़े निर्णय लेने वाली सरकार के तौर पर पेश किया है। सरकार बताना चाहती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा उसकी प्रमुख प्राथमिकता है मगर इसने राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता किया है। नागा समझौता उदासी वाला है। न ही कोई जानता है कि यह मौजूद है या फिर गायब हो चुका है। लै ट विंग का आतंकवाद छलांग और सीमा द्वारा आगे बढ़ा है। माओवादी तथा आतंकवाद हमारे जवानों को शहीद कर रहे हैं। इससे देश का वित्त खत्म हो रहा है। 

मॉब लिचिंग तथा धर्मांतरण विरोधी कानूनों ने नागरिकों के मूल अधिकारों पर चोट की है। यहां तक कि धारा 370 के निरस्त होने ने ज मू-कश्मीर पर बहुत थोड़ा सकारात्मक प्रभाव छोड़ा है। इसके जवाब में भय और अलगाव की भावना उत्पन्न हुई है। कुल मिलाकर यह सरकार घरेलू विद्रोहों, सैन्य आधुनिकीकरण तथा पाकिस्तान और चीन से उत्पन्न हो रही चुनौतियों से जूझ रही है। 

बाहरी संबंध : एन.डी.ए./ भाजपा सरकार अपनी विदेश नीति का इस्तेमाल अपने निजी ब्रांड के लिए कर रही है। जिसका राष्ट्र पर तबाहकुन असर पड़ेगा। इस आलेख को लिखने तक चीनियों ने पूर्वी लद्दाख में भारतीय क्षेत्र पर किए गए अपने कथित कब्जे को नहीं छोड़ा है। यथास्थिति की उम्मीद वर्तमान व्यवस्था से कोसों दूर है। पिछले 7 वर्षों में पाकिस्तान के साथ निपटने को लेकर सरकार का रवैया यू-टर्न तथा कलाबाजियों का रहा है। अनेकों वैश्विक सूचकांकों में भारत की रैंकिंग फिसल रही है। यह स्पष्ट है कि एन.डी.ए. सरकार अमरीका, रूस, चीन तथा यूरोपियन यूनियन के साथ विदेश नीति के मामले में संतुलन बनाने के लिए असफल रही। भारतीय विदेश नीति ‘मोदी पहले भारत बाद में’ पर आधारित है। ‘अच्छे दिन’ की कल्पना ने महत्वपूर्ण तत्वों को बाहर निकाल फैंका है। आज पूरा देश एक ही गीत ‘कोई लौटा दो मेरे अच्छे दिन’ गुनगुना रहा है।-मनीष तिवारी

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