‘बुद्ध पूर्णिमा’ कबायली युवाओं के लिए अपना जीवन साथी चुनने का दिन

Edited By Pardeep,Updated: 04 May, 2018 03:57 AM

buddha purnima for the tribal youth to choose their life partner

सोमवार को वैशाख पूर्णिमा यानी बुद्ध पूर्णिमा के दिन राजस्थान व गुजरात के जनजातीय लोग भारी संख्या में नक्की झील के किनारे एकत्र हुए। दोनों राज्यों के कबायलियों के लिए यह झील अनेक शताब्दियों से मिथहासिक महत्व का स्थल बनी हुई है। वैशाख पूर्णिमा इन...

सोमवार को वैशाख पूर्णिमा यानी बुद्ध पूर्णिमा के दिन राजस्थान व गुजरात के जनजातीय लोग भारी संख्या में नक्की झील के किनारे एकत्र हुए। दोनों राज्यों के कबायलियों के लिए यह झील अनेक शताब्दियों से मिथहासिक महत्व का स्थल बनी हुई है। 

वैशाख पूर्णिमा इन कबायलियों की नजरों में बहुत पवित्र और शुभ दर्जा रखती है और इस अवसर पर माऊंट आबू स्थित नक्की झील पर एक मेला लगता है। पूरा वातावरण ढोल-नगाड़ों और बांसुरियों की आवाज से गूंज उठता है और हर आयु के कबायली नाच-गाने तथा धार्मिक अनुष्ठानों में हिस्सा लेते हैं। इस मेले का सबसे रोचक आकर्षण होता है ‘तारण विवाह’ जिसका अर्थ है हाथ पकड़ कर खींचना और शादी करना। कबायली युवकों के लिए यह बहुत बड़ा आकर्षण होता है क्योंकि इस मेले में वे ‘तारण’ परम्परा के अनुसार अपने जीवनसाथी या संगिनी का चयन करते हैं। 

परम्परागत परिधानों तथा चांदी के गहनों से सजी-संवरी युवतियां टोलियों के रूप में झील के किनारे इकट्ठी हो जाती हैं और कबायली लोकगीत गाती हैं। इस गायन के दौरान वे शर्मीली नजरों से युवकों की टोलियों को भी निहारती हैं। लड़के भी अपनी जगह उन्हें ‘इम्प्रैस’ करने के लिए अपने डील-डौल का प्रदर्शन करते हैं। वक्त बदलने के साथ-साथ बाइक, सैलफोन तथा सनग्लासिज (धूप के चश्मे) भी लड़कियों को आकर्षित करने के साधन बन गए हैं। इन जनजातीय लोगों यानी कबायलियों में लम्बे समय से यह परम्परा चली आ रही है कि युवक अपनी जीवनसंगिनी का चयन करते हैं और इस तरह ये प्रेमी जोड़े जंगल में गायब हो जाते हैं और कई दिन बाद घर लौटते हैं। उसके बाद बिरादरी के बुजुर्ग इक्कठे होते हैं और उनकी शादी को विधिवत सम्पन्न करते हैं। 

माऊंट आबू इलाके के पटवारी प्रभुराम गरासिया ने बताया: ‘‘पुरातन जनजातीय परम्परा प्रत्येक लड़की को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार देती है। यह ऐसा अधिकार है जो खुद को प्रगतिशील सभ्य और माडर्न कहने वाले समुदायों में भी अभी तक उपलब्ध नहीं है।’’ स्थानीय ग्राम प्रधान राम लाल नरोरा ने बताया : ‘‘वैशाख पूर्णिमा के दिन बुजुर्ग लोग बिछड़ी आत्माओं को अलविदा कहते हैं। गत एक वर्ष दौरान जिस भी किसी की मौत हुई होती है उसे इस दिन परम्परागत रूप से विदाई दी जाती है।’’-पी. संगीता

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