महाराष्ट्र में ‘धमकियों और ब्लैकमेलिंग’ का दौर जारी

Edited By ,Updated: 03 Nov, 2019 02:10 AM

bullying and blackmailing  continues in maharashtra

भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना में सत्ता को लेकर मची जंग से जाहिर हो गया है कि सभी राजनीतिक दलों का चरित्र एक जैसा है। इन दोनों दलों के लिए हिन्दुत्व सहित अन्य मुद्दों पर बनी दिखावटी एकता सत्ता के सामने तार-तार हो गई है। अग्रिम मोर्चों पर देशभक्ति की...

भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना में सत्ता को लेकर मची जंग से जाहिर हो गया है कि सभी राजनीतिक दलों का चरित्र एक जैसा है। इन दोनों दलों के लिए हिन्दुत्व सहित अन्य मुद्दों पर बनी दिखावटी एकता सत्ता के सामने तार-तार हो गई है। अग्रिम मोर्चों पर देशभक्ति की दुहाई देने वाले दोनों दल सत्ता की खातिर एक-दूसरे की छीछालेदर करने पर उतारू हैं। दोनों दल मुख्यमंत्री पद के लिए एक-दूसरे को धमकियां देने के साथ ही ब्लैकमेल करने में जुटे हुए हैं। 

दोनों दलों में चल रही रस्साकशी 
पिछले एक सप्ताह से दोनों दलों में मुख्यमंत्री पद को लेकर रस्साकशी चल रही है। शिवसेना  किसी भी सूरत में मुख्यमंत्री का पद छोडऩे को राजी नहीं है। भाजपा भी ज्यादा विधायक होने के कारण इस पद पर अड़ी हुई है। यह सब चल रहा है महाराष्ट्र और हिन्दुत्व की भलाई के नाम पर। यदि सत्ता नहीं मिली तो देश और हिन्दुत्व का भला नहीं हो सकता। दरअसल शिवसेना भाजपा का ही अनुसरण कर रही है। भाजपा ने अपनी नींव हिन्दुत्व पर रखी और इसी को आधार बना कर पार्टी केन्द्र और राज्यों में सत्ता तक पहुंची। हालांकि सत्ता में पहुंचने के बाद राममंदिर सहित हिन्दुत्व के अन्य मुद्दे दरकिनार कर दिए गए। फिर विकास के मुद्दे को मुख्य आधार बनाकर चुनाव लड़े गए। मतदाताओं ने हिन्दुत्व और राममंदिर की तुलना में विकास को तरजीह दी। 

इसी से भाजपा केन्द्र में लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रही। शिवसेना भी भाजपा का छोटा संस्करण है। भाजपा अपने प्रारम्भिक आग्रह से दूर चली गई और विकास का दामन थाम लिया, किन्तु शिवसेना के पास ऐसा कोई रास्ता नहीं है। शिवसेना  लंबे अर्से से सत्ता के लिए भाजपा पर निर्भर है। विधानसभा चुनाव में भी शिवसेना ने कई दिनों तक भाजपा से टिकट बंटवारे के लिए रूठा-मटकी की। शिवसेना को अंदाजा था कि टिकट बंटवारे में भाजपा से यदि नाराजगी ले ली तो हिन्दू वोट बैंक बिखर जाएगा, जिसमें भाजपा का ज्यादा नुक्सान नहीं होगा लेकिन शिवसेना के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाएगा। यही वजह रही कि शिवसेना ने कुछ ना-नुकर करनेकेबाद भाजपा से समझौता करने में ही अपनी भलाईसमझी। 

शिवसेना ने बदले अपने तेवर
विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आते ही शिवसेना ने तेवर बदल लिए। भाजपा से कम विधायक होने के बाद मुख्यमंत्री पद को रोस्टर पर देने के लिए अड़ गई। भाजपा को डराने के लिए शिवसेना ने साफ  कह दिया कि शरद पवार की पार्टी एन.सी.पी. और कांग्रेस से समर्थन लेने से भी  उसे गुरेज नहीं है। मगर शरद पवार ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी विपक्ष में बैठना ही पसंद करेगी। यह बात दीगर है कि शिवसेना इन दोनों के खिलाफ  आग उगलती रही है। सत्ता सामने नजर आते ही इनसे बंटवारा करने में शिवसेना को परहेज नहीं है। भाजपा की विवशता शिवसेना से अलग है। भाजपा शिवसेना की तरह यह नहीं कह सकती कि एन.सी.पी. और कांग्रेस से समर्थन ले सकती है। शिवसेना सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित है, जबकि भाजपा आज पूरी तरह एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर स्थापित हो चुकी है। 

भाजपा ने भी शिवसेना की तरह कांग्रेस की बुराइयों को मुद्दा बनाकर सत्ता हासिल की है। इसके बावजूद दोनों दलों में बुनियादी अंतर है। शिवसेना का क्षेत्रीय राजनीतिक आधार है, वहीं भाजपा का राष्ट्रीय आधार है, ऐसे में भाजपा शिवसेना की तर्ज पर विरोधी दलों का समर्थन हासिल नहीं कर सकती। शिवसेना अभी तक अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर हिन्दुत्व पर आधारित है, जबकि भाजपा इस मुद्दे से काफी आगे जा चुकी है। ऐसे में भाजपा एक राज्य में सत्ता की खातिर वैसी चालें नहीं चल सकती, जैसी कि शिवसेना चल रही है। वैसे भी एन.सी.पी. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर केन्द्र के प्रवर्तन निदेशालय का सामना कर रही है। ऐसे में भाजपा शिवसेना के सिवाय किसीऔर का समर्थन लेकर अपनी किरकिरी नहीं करा सकती। 

भाजपा की हालत न उगलते बन रही है और न ही निगलते वाली
शिवसेना को भी यह अच्छी तरह पता है कि वह भाजपा को दबाव में लाने के लिए रुख पलट सकती है किन्तु भाजपा ऐसा नहीं कर सकती। भाजपा की मजबूरी यह भी है कि यदि शिवसेना की मुख्यमंत्री के रोस्टर वाली मांग मान भी ली जाए तो भविष्य में दूसरे राज्यों में भी क्षेत्रीय दलों के साथ यही संकट खड़ा हो सकता है। ऐसे में भाजपा की हालत न उगलते बन रही है और न ही निगलते वाली हो गई है। शिवसेना पूरी तरह मैदान-ए-जंग की हालत में है और भाजपा लुकाछिपी का खेल खेलने को विवश है। 

दूसरे शब्दों में कहें तो शिवसेना की इस धमकी भरी मांग के सामने भाजपा लाचार नजर आ रही है। भाजपा के तारणहारों को समझ में नहीं आ रहा है कि शिवसेना से कैसे निपटा जाए। इस मुद्दे पर असली फजीहत भाजपा की हो रही है। भाजपा पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कब तक इस मुद्दे को लटकाए रखेगी। इस चुनाव से पहले दर्जनों बार ऐसे मौके आए हैं जब कट्टर हिन्दुत्व को लेकर भाजपा शिवसेना के बचाव में रही है। यह भी जाहिर है कि भाजपा भी सत्ता किसी सूरत में गंवाना नहीं चाहती। 

हालांकि भाजपा अब उसूलों की दुहाई भी नहीं दे सकती, यदि ऐसा ही होता तो शिवसेना जैसी कट्टर पार्टी से समझौता नहीं करती। यह भाजपा को भी पता है कि शिवसेना का राजनीतिक आधार सिर्फ कट्टर हिन्दुत्व और महाराष्ट्र के क्षेत्रवाद तक सीमित है। भाजपा इस छवि से काफी दूर जाकर विकास के सिद्धान्त को अपना चुकी है। ऐसे विवादित मुद्दे भाजपा के चुनावी वायदों से अधिक कुछ नहीं रह गए हैं। शिवसेना के पास वैसे भी खोने को कुछ नहीं बचा है, जबकि भाजपा के सामने पूरा देश है। ऐसे में भाजपा इधर कुआं उधर खाई की हालत में है। यदि भाजपा शिवसेना के मुख्यमंत्री रोस्टर की मांग को मांग लेती है तब भी बचाव का रास्ता नहीं है और यदि नहीं मानती है तब भी जवाबदेही से बच नहीं सकती।-योगेन्द्र योगी
 

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