राजनीतिज्ञों पर भारी पड़ती ‘नौकरशाही’

Edited By ,Updated: 02 Jul, 2020 04:29 AM

bureaucracy overcomes politicians

राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप चाहे लोकतंत्रात्मक हो अथवा तानाशाही या पूंजीवाद वाला हो, सरकार की नीतियों को कार्य रूप देने का कार्य अफसरशाही द्वारा ही किया जाता है। भारत जैसे विकासशील देश के लोग जो अधिकतर पढऩा-लिखना भी नहीं जानते, राजनीति का नेतृत्व...

राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप चाहे लोकतंत्रात्मक हो अथवा तानाशाही या पूंजीवाद वाला हो, सरकार की नीतियों को कार्य रूप देने का कार्य अफसरशाही द्वारा ही किया जाता है। भारत जैसे विकासशील देश के लोग जो अधिकतर पढऩा-लिखना भी नहीं जानते, राजनीति का नेतृत्व एवं विधायिका का स्वरूप, प्रशासन की बारीकियों व जटिलताओं से अनभिज्ञ रहते हैं तथा नौकरशाही ही शक्तिशाली बनी रहती है। हमारे देश में राजनीतिज्ञों की न कोई न्यूनतम योग्यता और न ही कोई आयु सीमा रखी गई है तथा कोई भी व्यक्ति चाहे आपराधिक पृष्ठभूमि वाला क्यों न हो, मंत्री बन कर देश-प्रदेश में हुक्म चला सकता है।

राबड़ी देवी जोकि मुश्किल से मिडल क्लास पढ़ी होंगी, बिहार जैसे बड़े प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। इसी तरह शिबू सोरेन जैसे आपराधिक रिकार्ड वाले व्यक्ति केंद्र में मंत्री व झारखंड राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे तथा यदि देश-प्रदेश की बागडोर ऐसे व्यक्तियों के पास आ जाए तो अफसरशाही का राजनीतिज्ञों पर हावी होना स्वाभाविक है। 

जब ऐसे जनप्रतिनिधि जो अक्षम, असमर्थ वअल्पज्ञानी होंगे तब वे अपने कार्यों को चलाने के लिए नौकरशाही से उचित व अनुचित कार्य करवाने के लिए मजबूर हो जाते हैं तथा उनके साथ सांठ-गांठ करके अपना स्वार्थ भी उठाते रहते हैं। ऐसे नेताओं को राजनीतिक व व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने के बदले में नौकरशाह, मलाईदार पद प्राप्त करते रहते हैं तथा नेताओं के भ्रष्टाचार मामलों में न केवल लीपापोती होती रहती है बल्कि वे खुद भी कई प्रकार से अवांछित व भ्रष्ट कार्य करते रहते हैं तथा इनका यह मकडज़ाल देश के लोकतंत्र को घुन की तरह चाटता रहता है। जब यह दोनों आपस में घुल-मिल जाते हैं तो फिर एक-दूसरे के काले कारनामों में मददगार हो जाते हैं।

नौकरशाहों को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है। पहली श्रेणी के नौकरशाह सत्ताधारी दल के साथ मिलकर काम करते हैं तथा उन्हें सरकार बदलने का कोई फर्क नहीं पड़ता। दूसरी श्रेणी वाले जोकि अल्पसंख्या में होते हैं, तटस्थता को अपना आदर्श मानकर कार्य करते हैं जबकि तीसरी श्रेणी के नौकरशाह बीच का रास्ता अपना कर अपना कार्य चलाते हैं। नौकरशाहों को पता लग जाता है कि उनका घुड़सवार कितना निपुण, कार्यकुशल व ईमानदार है तथा उनकी कमजोरियों को भांप कर मनमाने ढंग से फुदकते रहते हैं। यदि घुड़सवार खुद कमजोर हो तो यह घोड़े उन्हें कभी भी गिराकर खुले घूमते रहते हैं। वास्तव में ऐसे नौकरशाह ही किसी सत्तारूढ़ दल के पतन का कारण भी बनते हैं। 

आमतौर पर यह भी देखा गया है कि कुछ अफसर इतने अपरिहार्य हो जाते हैं कि वेअपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी सत्तारूढ़ दल से या तो अपनासेवा प्रसार पाते रहते हैं या फिर कई असंवैधानिकपदों पर तैनात होकर जनता का खून चूसते रहते हैं। भले हीचुनावों के दिनों में विरोधी दल ऐसे टायरड व रिटायर्डअधिकारियों को कोई भी तरजीह न देने की बात करते हैं, मगर जैसे ही वह सत्ता में आते हैं, वे भी वह ही खेल खेलना शुरू कर देते हैं तथा यह सिलसिला लगातार चलता रहता हैै। 

अफसरशाही व नौकरशाही पर नियंत्रण रखने के लिए किसी प्रदेश के मंत्रियों व मुख्यमंत्री को सबल, सक्ष्म व सुयोग्य होने की जरूरत है तथा तभी वे बेलगाम नौकरशाहों पर अपना नियंत्रण रखकर आम जनमानस की सच्ची सेवा कर पाएंगे। हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री श्री शांता कुमार की यदि उदाहरण दी जाए तो शायद यह अतिशयोक्ति नहीं होगी जिन्होंने बेलगाम मुख्य सचिव को सस्पैंड कर दिया था तथा प्रशासन चलाने का एक उच्चतम उदाहरण दिया था। इसी तरह दिल्ली पुलिस में कमिश्रर पद पर रहे स्वर्गीय वेद मरवाहा की मिसाल भी कुछ ऐसी ही है। 

उन्होंने अपनी पुस्तक इंडिया इन ट्रमायल (भारत दुविधा में) में वर्णन किया है कि वह जब दिल्ली में पुलिस कमिश्रर थे तो उस समय में गृहमंत्री रहे स्वर्गीय सरदार बूटा सिंह ने उन पर ऐसे पुलिस अधिकारियों को थाना अधिकारी लगाने की सिफारिश की थी जो अत्यंत बेईमान व घूसखोर थे, मगर जब उन्होंने उसकी इस अनैतिक बात को नहीं स्वीकारा तो उन्होंने उनका तबादला करवा दिया था। आज देश को ऐसे राजनीतिज्ञों व अफसरों की जरूरत है, जो एक-दूसरों के लिए रोल मॉडल का काम करें तथा जनता की नसों में नवचेतना का संचार कर सके।

बड़प्पन एवं महत्व की निकृष्ट इच्छा, यदि रौब-दाब, ठाठ-बाट-उन्माद व उत्तेजित ओछेपन का रूप धारण कर लेती है तो दूसरों के आत्मसम्मान, गुण, कर्मयोग्यता तथा व्यक्तित्व का अनादर अवश्यरूप से होता है तथा कर्मचारी जानबूझ कर उल्लंघन करने पर उतारू हो जाते हैं। समाज की सूरत व सीरत बदलने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों व राजनीतिज्ञों कोसकारात्मक योगदान देना होगा तथा लोगों का विशेषतय: पीड़ित वर्ग का सच्चा हमराज, हमसफर व हमदर्द बनना होगा, तभी भारत विश्व में अपना स्थान पाकर विश्व गुरु बन पाएगा।- राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड) हिमाचल प्रदेश

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