इस्तीफा देकर राहुल गांधी ने पार्टी को ‘बेहतरीन तोहफा’ दिया

Edited By ,Updated: 11 Jul, 2019 03:24 AM

by resigning rahul gandhi gave the  best gift  to the party

भारत की सबसे पुरानी वैभवशाली पार्टी कांग्रेस अपने अब तक के सबसे बड़े संकट से गुजर रही है। हालिया लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी नीत भारतीय जनता पार्टी के हाथों पार्टी की शर्मनाक पराजय ने इसका मनोबल और भी गिरा दिया है। इस पराजय का एकमात्र अच्छा...

भारत की सबसे पुरानी वैभवशाली पार्टी कांग्रेस अपने अब तक के सबसे बड़े संकट से गुजर रही है। हालिया लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी नीत भारतीय जनता पार्टी के हाथों पार्टी की शर्मनाक पराजय ने इसका मनोबल और भी गिरा दिया है। 

इस पराजय का एकमात्र अच्छा परिणाम राहुल गांधी का पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना है। उनके द्वारा उठाया गया यह एकमात्र अच्छा कदम है और अभी तक वह इसे वापस नहीं लेने पर अड़े हुए थे। यह भी अच्छा है कि पराजय का दोष उन्होंने अपने सिर लिया है। जहां भाजपा की विजय के अन्य कई कारण हैं, कांग्रेस के खिलाफ जो इकलौता कारणगया, वह था इसका अध्यक्ष क्योंकि वह मोदी के मुकाबले में कहीं खड़े नहीं हो सकते थे। इसका कोई विश्वसनीय विकल्प नहीं था। 

निश्चित तौर पर राहुल गांधी 15 वर्षों से अधिक समय से सक्रिय राजनीति में हैं लेकिन उन्होंने सीखने अथवा विकसित होने से इंकार कर दिया। यह इसके बावजूद है कि मार्गदर्शन तथा निर्देशन हेतु उनके लिए बेहतरीन कौशल उपलब्ध था। प्रत्यक्ष तौर पर उनमें बेहतर तथा समझदार लोगों को चुनने की भी समझ नहीं थी। उन्होंने ऐसे लोगों को अपना मार्गदर्शन करने की इजाजत दी जिनकी क्षमताओं पर भी प्रश्र थे। हो सकता है कि वर्षों के दौरान भाषण देने की उनकी क्षमता में कुछ सुधार हुआ हो लेकिन विषय-वस्तु उतनी ही घटिया रही जितनी हमेशा थी। 

अपरिपक्व कदम व कार्रवाइयां 
अतीत में उनकी कई कार्रवाइयां तथा उनके द्वारा उठाए गए कदम कम से कम अपरिपक्व तो कहे ही जा सकते हैं। उनकी जो एक कठोर छवि उभर कर सामने आती है उसमें नाटकीय रूप से एक प्रैस कांफ्रैंस में आकर मनमोहन सिंह नीत अपनी ही पार्टी की सरकार द्वारा पारित एक विधेयक की प्रतियां फाडऩा शामिल है। इसके अतिरिक्त, कि विधेयक उनकी अपनी ही पार्टी द्वारा संचालित सरकार द्वारा पारित किया गया था, मनमोहन सिंह जैसे सम्मानित नेता को सार्वजनिक रूप से शॄमदा करना किसी अत्यंत अपरिपक्व व्यक्ति का कार्य ही हो सकता है। यदि विधेयक की धाराओं से वह इतने ही खफा थे तो प्रधानमंत्री के साथ निजी तौर पर मामला उठा सकते थे। 

अब हालिया लोकसभा चुनावों पर आते हैं। जिस किसी ने भी उन्हें मोदी के खिलाफ ‘चौकीदार चोर है’ अभियान चलाने को कहा, उसने सबसे मूर्खतापूर्ण सलाह दी होगी। समस्या यह है कि उन्होंने सलाह ली और इसे एक चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास किया। किसी के मोदी या भाजपा अथवा सरकार के साथ कोई भी मतभेद हों, बहुत कम लोग ऐसे होंगे जो उनकी निजी निष्ठा पर उंगली उठाएंगे। एकमात्र आरोप जो राहुल गांधी उन पर लगा सके, वह था राफेल सौदा। सौदे में कोई भाई-भतीजावाद अथवा पक्षपात हो सकता है लेकिन कोई भी धन के लेन-देन बारे उंगली उठाने में सफल नहीं था जैसा कि अगस्ता वेस्टलैंड मामले में था।

‘चौकीदार चोर है’ का नारा
निजी वित्तीय ईमानदारी तथा यह तथ्य कि मोदी सरकार में किसी भी मंत्री पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है, हालिया चुनावों में मोदी नीत भाजपा के पक्ष में सर्वाधिक मजबूत कारक थे तथा राहुल ने उन पर हमला करने के लिए महंगाई तथा बढ़ती बेरोजगारी जैसे कमजोर मुद्दों को चुना। इससे मोदी पर निजी हमले की बजाय उन्हें अधिक जनसमर्थन सुनिश्चित हुआ हो सकता है। ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लोगों को यह प्रभावित करने में असफल रहा कि मोदी अथवा उनकी सरकार निजी तौर पर भ्रष्ट है। इससे भी बढ़ कर, विडंबना देखिए कि नारा एक ऐसी पार्टी की ओर से आता है जिस पर बोफोर्स, अगस्ता वेस्टलैंड, 2जी स्पैक्ट्रम, कॉमनवैल्थ खेलें तथा अन्य कई घोटालों सहित भ्रष्टाचार के सर्वाधिक आरोप हैं। 

यहां तक कि ऐसा लगता था कि खुद राहुल नारे से प्रभावित नहीं थे क्योंकि अपनी सभी रैलियों में भाषण के दौरान ऐसा लगता था जैसे रिहर्सल करके तथा बढ़ा-चढ़ा कर बोल रहे हों। इसीलिए शायद राहुल ने अपने त्यागपत्र में यह आरोप लगाया है कि उन्हें अपने वरिष्ठ नेताओं से भी समर्थन नहीं मिला। दरअसल समर्थन के अभाव में उन्हें यह संकेत मिल जाना चाहिए था कि वह गलत पेड़ पर पंजे चला रहे हैं। पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर उन्होंने सम्भवत: पार्टी को बेहतरीन तोहफा दिया है। अब यह वरिष्ठ सहित अन्य नेताओं पर निर्भर करता है कि वे इसका कैसे लाभ उठाते हैं। उनमें से कुछ जिस तरह से उनके आगे गिड़गिड़ा रहे हैं, शर्मनाक है और उनके दिवालिएपन को दिखाता है। पार्टी में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, केवल इसकी पहचान करने की जरूरत है। 

पार्टी नेताओं व समर्थकों की मानसिकता
पार्टी नेताओं तथा समर्थकों की मानसिकता को देखते हुए उनके लिए गांधियों को पार्टी से दूर रखना वास्तव में कठिन होगा लेकिन उनके लिए बहुत ही अच्छा होगा यदि पटरी से उतर चुकी पार्टी को वापस पटरी पर लाने की इजाजत अन्य प्रतिभाशाली नेताओं को दी जाए। इस बीच वे केवल इतनी आशा कर सकते हैं कि राहुल गांधी अपने लिए कुछ अच्छे सलाहकार पा सकें जिनमें सभी बाध्यताओं तथा बिना देरी के दीर्घकाल में उन्हें संवारने की क्षमता हो।-विपिन पब्बी
 

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