वैसे तो रूस के ‘मजे’ हैं

Edited By ,Updated: 15 Jul, 2020 03:24 AM

by the way russia has fun

भारत -चीन सीमा पर तनाव कम होने की खबरें आ रही हैं। खबर है कि गलवान घाटी से चीनी सेना कुछ पीछे हटी है। उधर कुछ और इलाकों में तनाव के संकेत हैं। तनाव कम होने की खबरों के बीच रूस चर्चा में है। कहा जा रहा है कि रूस की कोशिशों से भारत और चीन के बीच तनाव...

भारत -चीन सीमा पर तनाव कम होने की खबरें आ रही हैं। खबर है कि गलवान घाटी से चीनी सेना कुछ पीछे हटी है। उधर कुछ और इलाकों में तनाव के संकेत हैं। तनाव कम होने की खबरों के बीच रूस चर्चा में है। कहा जा रहा है कि रूस की कोशिशों से भारत और चीन के बीच तनाव कम हुआ है। हालांकि जब लद्दाख इलाके में चीनी घुसपैठ की शुरूआती खबरें आई थीं, उस समय रूसी डिप्लोमेट सक्रिय हो गए थे लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के मास्को दौरे के बाद सीमा पर तनाव कम करने की वास्तविक कवायद शुरू हुई। 

रूस, चीन और भारत के विदेश मंत्रियों की बैठक से भी लद्दाख सीमा पर तनाव कम होने में मदद मिली है। दरअसल राजनाथ सिंह के मास्को से वापस लौटते ही भारत ने रूस से फाइटर जैट की खरीद पर मोहर लगा दी। हालांकि रूस पर चीन का दबाव था कि रूस भारत को हथियार न बेचे। लेकिन रूस के एशिया में अपने आॢथक हित हैं। बताया जा रहा है कि अंदरखाते रूस की कूटनीति के कारण दोनों मुल्कों के बीच तनाव कम हुआ है। चीन रूस की कूटनीति के कारण गलवान घाटी में वर्तमान स्थिति से पीछे हटा है। इसमें कोई शक नहीं कि रूस और चीन के बीच पिछले कुछ सालों में आर्थिक सांझेदारी बढ़ी है। चीन से बढ़ी आर्थिक सांझेदारी के कारण रूस की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली। दोनों मुल्कों के बीच इस समय आपसी व्यापार 111 अरब डालर के करीब है। 2014 में चीन और रूस के बीच 300 अरब डालर के गैस खरीद को लेकर समझौता हुआ। 

इस समझौते के तहत चीन को गैस आपू्र्ति रूस ने शुरू कर दी है। इसमें कोई शक नहीं है कि पश्चिमी देशों के दबाव में जब रूस आॢथक संकट में फंसा था तो चीन ने रूस की मदद की थी।  इसके बावजूद एशियाई भूगोल में रूस चीन को नियंत्रित रखना चाहता है। एशिया में चीन को नियंत्रित रखने के पीछे रूस का अपना खेल है। एशिया में चीन का ज्यादा ताकतवर होना रूस के हितों के खिलाफ है। इस कारण रूस किसी भी कीमत पर चीन को एशिया में एकतरफा ताकतवर नहीं होने देना चाहता है। 

रूस चीन पर नकेल रखना चाहता है। रूस की इस योजना में भारत रूस का मददगार साबित हो सकता है। दरअसल रूस की अपनी जियोपॉलिटिक्स है। रूस की रुचि सैंट्रल एशिया, वैस्ट एशिया से लेकर अफगानिस्तान तक में है। रूस जानता है कि चीन अगर भारत जैसे देश को दबाने में सफल हो गया तो कल उन इलाकों में भी चीन विस्तार करेगा जहां रूस का इस समय दबदबा है। रूस ने अपने आॢथक हितों के मद्देनजर ईराक से लेकर सीरिया तक में अमरीका के खिलाफ मोर्चेबंदी पिछले कुछ सालों में की है। अमरीकी कूटनीति को इस इलाके में रूस ने विफल भी कर दिया। वैसे भी रूस कभी नहीं चाहेगा कि भविष्य में चीन रूस की इतनी बड़ी मेहनत पर पानी फेर दे।

इसमें कोई शक नहीं है कि इस समय चीन रूस की गैस का बड़ा खरीदार है। रूसी हथियारों का बड़ा खरीदार भी चीन है। इसके बावजूद रूस कई और फैक्ट की विवेचना गहराई से कर रहा है। रूस को पता है कि भारतीय क्षेत्र पर चीन की दावेदारी भविष्य में रूस के लिए भी संकट बनेगी क्योंकि सीमा विवाद रूस और चीन के बीच भी रहा है। रूस और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर एक जंग 1969 में हो चुकी है। 

उसरी नदी के एक द्वीप को लेकर चीन और रूस के बीच जंग हो गई थी। सोवियत संघ टूटने के बाद चीन रूस से कुछ इलाकों को हासिल करने में भी सफल हो गया। अब चीन ने नया खेल शुरू किया है। रूस के व्लादिवोस्तोक शहर पर चीन ने अपना दावा ठोका है। चीन का दावा है कि यह शहर 1860 से पहले चीन का हिस्सा था। चीन का आरोप है कि व्लादिवोस्तोक को चीन से रूस ने एकतरफा संधि का लाभ उठाते हुए हड़प लिया था। रूस की परेशानी यह चीनी दावा है। दरअसल चीन की जमीन संबंधी भूख से तमाम देश परेशान हैं। ऐसे में रूस यह अच्छी तरह से समझता है कि अगर लद्दाख में सीमा विवाद के दौरान चीन भारत को दबाने में सफल हो गया तो भविष्य में चीन रूस को भी टारगेट करेगा। 

वैसे रूस के मजे हैं। भारत भी रूसी हथियारों का बड़ा खरीदार है। चीन भी रूसी हथियारों का बड़ा खरीदार है। रूस और चीन के बीच एस-400 मिसाइल और सुखोई लड़ाकू विमान खरीद सौदा 2015 में हुआ। इधर भारत ने भी रूस से एस-400 मिसाइल खरीदने का आर्डर दे रखा है। भारत और रूस के बीच एस-400 का सौदा लगभग 5 अरब डालर का है। भारत मिग और सुखोई विमानों का खरीदार पहले से ही है। भारत रूस से सुखोई और मिग खरीदता रहा है। अब चीन रूस से पांचवीं जैनरेशन का सुखोई एस.यू.-57 खरीदने पर भी विचार कर रहा है। 

दिलचस्प बात यह है कि रूस यही लड़ाकू विमान चीन के साथ-साथ भारत को भी बेचना चाहता है। सच्चाई तो यही है कि एशियाई देशों के आपसी विवादों के बीच रूस के हथियार उत्पादकों के मजे लगे हैं। ईरान भी अमरीका, इसराईल और सऊदी अरब से तनाव के करण रूसी हथियारों को खरीदने की योजना लंबे समय से बना रहा है। ईरान रूस से एस-400 मिसाइल और  सुखोई फाइटर जैट खरीदने की योजना पर विचार कर रहा है।-संजीव पांडेय
 

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