इस राष्ट्रीय संकट में ‘लोकसेवा’ का आह्वान

Edited By ,Updated: 10 Jul, 2020 03:10 AM

call for  public service  in this national crisis

इस महासंकट की घड़ी में देश को सामान्य राजनीति नहीं, लोकनीति की जरूरत है। धर्म के वास्ते ‘कार सेवा’ तो बहुत लोग करते हैं, आज जरूरत है राष्ट्र धर्म के लिए ‘सरोकार सेवा’ की। आज देश को तलाश है उन कर्मयोगियों की, जो कम से कम 100 दिन के लिए अपना बाकी सब...

इस महासंकट की घड़ी में देश को सामान्य राजनीति नहीं, लोकनीति की जरूरत है। धर्म के वास्ते ‘कार सेवा’ तो बहुत लोग करते हैं, आज जरूरत है राष्ट्र धर्म के लिए ‘सरोकार सेवा’ की। आज देश को तलाश है उन कर्मयोगियों की, जो कम से कम 100 दिन के लिए अपना बाकी सब काम-धंधा छोड़कर देश को इस महासंकट से बचाने के लिए जुट जाएं। 

आज देश तीन संकटों के संगम स्थल पर खड़ा है-कोरोना वायरस की महामारी, आॢथक मंदी और सीमा पर चीन की दादागिरी। तीनों संकट राष्ट्रीय हैं, तीनों विकट हैं और तीनों का संगम अभूतपूर्व है। तीनों संकट सिर्फ सरकार पार्टियों ने केवल विरोध किया है, राष्ट्रीय संकट का सामना करने में सहयोग या पुख्ता विकल्प पेश करने की जिम्मेदारी भी नहीं निभाई है। इसलिए देश को सत्ता और विपक्ष के बाहर एक बड़े दखल की जरूरत है। 

कोरोना महामारी का संकट पूरी दुनिया का है, सिर्फ  भारत का नहीं लेकिन अब यह स्पष्ट दिख रहा है कि इस महामारी का मुकाबला करने में सरकार बुरी तरह असफल रही है। न  तो समय रहते संक्रमित लोगों को देश में आने से रोका गया, न ही पर्याप्त टैस्ट करवाए गए और न ही लॉकडाऊन के समय महामारी से निपटने की पूरी तैयारी की गई। नतीजा यह है कि जिस बीमारी को 3 सप्ताह में काबू कर लेने के दावे किए जा रहे थे वह 3 महीने बाद भी भयावह तरीके से बढ़ती जा रही है। जहां दावा था कि भारत दुनिया के लिए एक अच्छा मॉडल बनेगा, वहां अब हम दुनिया के लिए एक बुरा मॉडल बनते जा रहे हैं। अब तो मानो सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं। विपक्षी दलों ने यह सच्चाई तो मजे लेकर बताई लेकिन केरल को छोड़कर विपक्षी दलों की सरकारें भी इस महामारी से निपटने का कोई बेहतर मॉडल पेश नहीं कर पाई हैं। 

इस महामारी के चलते दुनिया भर में लॉकडाऊन हुआ और अर्थव्यवस्था को धक्का पहुंचा लेकिन बिना तैयारी और बिना मजदूरों की रोजी-रोटी की व्यवस्था किए 70 दिनों के निर्मम लॉकडाऊन ने जिस तरह हमारी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ी है, उतना बुरा हाल बाकी देशों का नहीं हुआ। किसी और देश में मजदूर सैंकड़ों-हजारों किलोमीटर पैदल पलायन पर मजबूर नहीं हुए। कहने को अनलॉक शुरू हो गया है लेकिन अभी भी उद्योग लंगड़ा रहे हैं, कर्मचारियों की छंटनी हो रही है, छोटे व्यापारी इस धक्के से उबर नहीं पा रहे, काम-धंधा बिल्कुल सुस्त पड़ा है। इस साल अर्थव्यवस्था के 5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक सिकुडऩे का अंदेशा है। सरकार द्वारा राशन बढ़ाने और मनरेगा को चालू करने से जनता भुखमरी से तो बच गई है, लेकिन अर्थव्यवस्था का इंजन दोबारा चालू नहीं हो पा रहा है। यहां फिर विपक्ष की आलोचना वाजिब है। यह भी सच है कि राज्य सरकारों के पास इस संकट से निपटने के लिए संसाधन हैं ही नहीं लेकिन बड़े विपक्षी दल इस मुद्दे पर भी एक व्यवस्थित विकल्प देने में असफल रहे हैं। 

चीन सीमा पर चल रहा विवाद भले ही टी.वी. के पर्देे से हटता जा रहा है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा का संकट गहरा हुआ है। सच यह है कि हमारे इलाके में दो कदम घुस आने के बाद चीनी फौज सिर्फ आधा कदम पीछे हटने को राजी हुई है, वह भी इस शर्त पर कि हमारी फौज भी आधा कदम पीछे हटे। सच यह है कि हमारी सीमाओं की रक्षा करने में सरकार विफल रही है लेकिन इस संकट के समय बड़ी विपक्षी पाॢटयों की दिलचस्पी सरकार के हाथ मजबूत करने की बजाय उसकी असफलता का मजा लेने में थी। 

राजनीति की विफलता की इस घड़ी में आज देश को उस लोकनीति की आवश्यकता है जिसका आह्वान जयप्रकाश नारायण ने किया था। यह लोकनीति सत्ता की राजनीति से परहेज नहीं करेगी, सरकार और विपक्ष की असफलताओं पर चुप्पी नहीं साधेगी लेकिन अपनी तमाम ऊर्जा सिर्फ चुनाव और सत्ता के खेल में खर्च नहीं करेगी। आज देशभर के राजनीतिक और सामाजिक कार्यकत्र्ताओं को मिलकर एक राष्ट्रीय अभियान चलाने की जरूरत है जो इस महासंकट का मुकाबला करने में देश की मदद करे। इसी उद्देश्य से स्वराज इंडिया ने देश भर से वालंटियर्स  को जोड़कर ‘मिशन जय ङ्क्षहद’ की शुरूआत की है। 

इस अभियान से जुडऩे वाले वालंटियर गांव-गांव, इक्ट्ठी करना कि लॉकडाऊन का लोगों के जीवन पर क्या असर पड़ा है। अनलॉक होने के बाद स्थिति कहां तक सामान्य हो पाई है। सरकारी योजनाओं से कहां तक फायदा हुआ है तथा आज लोगों को आॢथक संकट से  काबू करने के लिए क्या जरूरत है। तीसरा, स्थानीय स्तर पर लोगों की स्वास्थ्य और आॢथक समस्याओं को सुलझाना और इन शिकायतों को सरकार तक पहुंचाना। चौथा, इस राष्ट्रीय महासंकट के समाधान के लिए एक राष्ट्रीय विकल्प की समझ बनाना। पांचवां, हर गांव और बस्ती में ऐसे स्वयंसेवक ढूंढना, जो स्थानीय स्तर पर खुद इस संकट का मुकाबला करेंगे, अपनी समस्याओं के समाधान खुद ढूंढें। 

राष्ट्रीय संकट के समय अपने व्यक्तिगत नफे-नुक्सान और राजनीतिक स्वार्थ को छोड़कर देशसेवा में जुट जाना ही सच्चा राष्ट्रवाद है। हर देशप्रेमी के लिए आज यही राष्ट्रधर्म है। हर क्रांतिकारी के लिए आज यही क्रांति धर्म है। हर मानवतावादी के लिए आज यही मानव धर्म है। हर धार्मिक व्यक्ति के लिए आज यही धर्म है।-योगेन्द्र यादव

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