क्या केजरीवाल दिल्ली को ‘पूर्ण राज्य का दर्जा’ दिला सकेंगे

Edited By ,Updated: 27 Feb, 2019 04:21 AM

can kejriwal be able to give delhi the status of  complete state

अपनी राजनीतिक रणनीति के एक हिस्से के तौर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल केन्द्र के साथ अपने पुराने सड़क स्तर के झगड़े के खेल पर लौट आए हैं। इस बार वह दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए एक मार्च से अनिश्चितकालीन उपवास पर...

अपनी राजनीतिक रणनीति के एक हिस्से के तौर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल केन्द्र के साथ अपने पुराने सड़क स्तर के झगड़े के खेल पर लौट आए हैं। इस बार वह दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए एक मार्च से अनिश्चितकालीन उपवास पर जा रहे थे पर पाकिस्तान पर एयर सर्जिकल स्ट्राइक के मद्देनजर उन्होंने फिलहाल इसे टाल दिया है। 

फिर भी प्रश्र यह है कि क्या वह अपना उद्देश्य प्राप्त कर सकते हैं? यह कठिन दिखाई देता है क्योंकि केन्द्र में कोई भी पार्टी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं देना चाहती। गत दो दशकों में भाजपा तथा कांग्रेस दोनों पाॢटयों ने इसे राज्य का दर्जा देने का वायदा किया था लेकिन जब वे केन्द्र में सत्ता में आईं, यह मुद्दा पृष्ठभूमि में चला गया। दिल्ली एक विशेष राज्य होने के नाते जमीन तथा कानून व्यवस्था के मामले केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं। मुख्यमंत्री उन्हें अपनी सरकार के नियंत्रण में चाहते हैं लेकिन केन्द्र कभी भी अपनी शक्तियां नहीं छोड़ेगा क्योंकि इनमें कई वित्तीय तथा राजनीतिक पहलू हैं। 

अपनी समकक्ष, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरह केजरीवाल झगड़े की राजनीति में बेहतरीन हैं। आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के 2015 में सत्ता में आने के बाद से ही उनके तथा केन्द्र के बीच निरंतर खींचतान चल रही है। इससे पूर्व अपने पहले कार्यकाल में वह धरने पर चले गए थे और यहां तक कि रेल भवन के नजदीक फुटपाथ पर मंत्रिमंडल की बैठकों का भी आयोजन किया था। 

आर या पार की लड़ाई
गत सप्ताह केजरीवाल ने विधानसभा में घोषणा की थी कि ‘‘एक मार्च से मैं भूख हड़ताल शुरू करूंगा। मैं तब तक उपवास करूंगा जब तक हम राज्य का दर्जा हासिल नहीं कर लेते। मैं मौत का सामना करने के लिए तैयार हूं।’’ यह मांग 2015 के विधानसभा चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी के वायदों में से एक थी। अपने निर्णय की घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘‘अब आर या पार की लड़ाई है।’’ 

इससे पहले केजरीवाल ने जनसभाओं में घोषणा की थी कि यदि ‘आप’ को दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटें मिल जाती हैं तो उनकी पार्टी सुनिश्चित करेगी कि दिल्ली को 2 वर्षों के भीतर राज्य का दर्जा मिल जाए। केजरीवाल दिल्ली की जनता को राज्य के लिए आंदोलन में भाग लेने हेतु सड़कों पर आने के लिए उकसा रहे हैं। उनको इस निर्णय के लिए उकसाने वाला गत सप्ताह सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिया गया फैसला है जिसमें यह व्यवस्था दी गई कि राजधानी में भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ जांचों का आदेश देने की ताकत दिल्ली सरकार के पास नहीं, केन्द्र के पास है। इसने यह निर्णय भी एक उच्च पीठ के लिए छोड़ दिया कि किसे अधिकारियों को नियंत्रित करना चाहिए। 

इससे पहले जुलाई में 5 जजों की एक संवैधानिक पीठ ने निर्णय दिया था कि दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता लेकिन कहा कि उपराज्यपाल के पास ‘स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति’ नहीं है और उसे चुनी हुई सरकार के ‘सहायक तथा सलाहकार’ के तौर पर ही कार्य करना होगा। केजरीवाल इन न्यायिक कथन से खुश नहीं हैं। 

केजरीवाल के दावे
केजरीवाल आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अपने प्रचार अभियान तथा लोगों का ध्यान अपनी असफलता से हटाने के लिए इसे एक मुद्दा बना रहे हैं। उन्होंने दावा किया है कि राज्य का दर्जा मिलने से दिल्ली सरकार में दो लाख नौकरियां उपलब्ध होंगी, राज्य के सभी नागरिकों के लिए घर, अनुबंधित सरकारी कर्मचारियों का नियमितीकरण होगा तथा नए स्कूल व विश्वविद्यालय खोले जाएंगे। 

यद्यपि दिल्ली में 2020 में चुनाव होने हैं, केजरीवाल की बाध्यता आने वाले संसदीय चुनावों के कारण मुद्दे को अब उठाना है। ‘आप’ ने स्वास्थ्य, शिक्षा, जल, बिजली तथा अनधिकृत कालोनियों के मामले में अच्छी कारगुजारी दिखाई है और इसे निम्न मध्यम वर्ग तथा अत्यंत गरीब वर्गों का समर्थन सुनिश्चित लगता है लेकिन केजरीवाल लोकसभा चुनाव परिणामों को लेकर सुनिश्चित नहीं। लोगों की ओर से धरने पर बैठने से बेहतर रास्ता और क्या होगा। इस तरह से वह लोगों को प्रभावित कर सकते हैं कि वही अकेले हैं जो उनके हितों की परवाह करते हैं। 

लाज बचाने वाला फार्मूला
दूसरे, यदि उपवास जारी रहता है तो किसी न किसी समय केजरीवाल को लाज बचाने वाले एक फार्मूले की जरूरत पड़ सकती है। वह जानते हैं कि वह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू, जिनके साथ उनका अच्छा तालमेल है, के दिल्ली आने और उन्हें अनिश्चितकालीन उपवास खोलने के लिए मनाने की आशा कर सकते हैं। क्या वे प्रस्तावित महागठबंधन में साथ नहीं हैं? वह उनके काफी करीब आ गए हैं और वे भी केन्द्र सरकार को आड़े हाथ लेने के साथ-साथ मोदी सरकार को शर्मसार करने में भी बराबर की रुचि रखते हैं। 

केजरीवाल अकेले नहीं हैं जो केन्द्र से लड़ रहे हैं क्योंकि पुड्डुचेरी के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी भी अपनी सरकार के विभिन्न प्रस्तावों के प्रति उपराज्यपाल किरण बेदी के नकारात्मक व्यवहार को लेकर उनसे सींग फंसाए हुए हैं। वह इस मांग को लेकर कि उपराज्यपाल उनके मंत्रिमंडल के प्रस्तावों को स्वीकृति दें, 13 फरवरी से राजभवन के बाहर धरने पर बैठे थे। 

केजरीवाल को अहसास होना चाहिए कि झगड़े की राजनीति उन्हें कहीं नहीं ले जाएगी। महत्वपूर्ण है प्रशासन और यहीं पर वह कमजोर हैं यद्यपि अपनी सभी असफलताओं का दोष वह केन्द्र के सिर मढ़ते हैं। दिल्ली को राज्य का दर्जा देने के लिए दबाव बनाना एक ऐसी चीज है, जो एक दिन में नहीं हो सकती और उन्हें इसके रास्ते की कठिनाइयों का अहसास होना चाहिए। मुख्यमंत्री के नाते उनका मंत्र पहले प्रशासन होना चाहिए।-कल्याणी शंकर

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