Edited By ,Updated: 07 Sep, 2019 12:46 AM
कैंसर बीमारी का नाम सुनते ही लोगों के हाथ-पांव फूल जाते हैं। यह बीमारी न केवल मरीज बल्कि पूरे परिवार को झकझोर कर रख देती है। हर वर्ष यू.पी., बिहार, असम, झारखंड, पश्चिम बंगाल से हजारों कैंसर पीड़ित अपने परिवार के साथ टाटा अस्पताल में नई जिंदगी पाने की...
कैंसर बीमारी का नाम सुनते ही लोगों के हाथ-पांव फूल जाते हैं। यह बीमारी न केवल मरीज बल्कि पूरे परिवार को झकझोर कर रख देती है। हर वर्ष यू.पी., बिहार, असम, झारखंड, पश्चिम बंगाल से हजारों कैंसर पीड़ित अपने परिवार के साथ टाटा अस्पताल में नई जिंदगी पाने की आशा लिए आते हैं। गरीब मरीजों को अस्पताल में मौजूद ट्रस्ट से इलाज हेतु मदद मिल जाती है लेकिन सबसे बड़ी समस्या दाना-पानी की होती है। परिवार की समस्या तब और बढ़ जाती है जब घर का इकलौता कमाने वाला व्यक्ति भी काम-काज छोड़ इलाज के लिए भागदौड़ शुरू कर देता है। ऐसे में इन गरीब मरीजों और उनके परिजनों का सहारा बनकर उभर रहा है ‘आनंद’।
‘आनंद’ यानी खुशी। टाटा अस्पताल के सामने ‘आनंद’ नामक क्लीनिक जरूरतमंद मरीजों को दवा, खाना और पैसे से सहायता कर परिवार को समर्थन दे रहा है। दुख और तकलीफ की घड़ी में मरीजों और उनके परिवारों को मिल रहे समर्थन के कारण उन्हें जीने और रोग से लडऩे के लिए काफी बल मिल रहा है। कई बार यह देखने और सुनने को मिलता है कि इलाज के लिए पैसे न होने या कोई सहायता न मिलने के कारण लोग अपनों का इलाज अधूरा छोड़ देते हैं। इलाज पूरा न होने के चलते मरीज की तबीयत और बदतर हो जाती है, कई बार तो उनकी मौत भी हो जाती है।
किसी भी बीमारी का उपचार, वह भी सही समय पर बहुत ही महत्वपूर्ण है लेकिन पैसे न होने के चलते पूरे परिवार की स्थिति डावांडोल हो जाती है। उक्त बीमारी से परेशान परिवार की मदद करने की मुंबई के मेहुल दोषी ने ठानी। अंधेरी में रहने वाले पेशे से स्टॉक ब्रोकर मेहुल दोषी ने कैंसर रोगियों के दुखी परिवारों में ‘आनंद’ लाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। वह कहते हैं कि नीयत साफ और इरादे अटल हों तो भगवान भी नेक काम के लिए मदद कर ही देते हैं।
मेहुल पहले से ही कैंसर पीड़ितों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। पहले उन्होंने उस लड़की को प्लेटलैट्स दान दिए जो ब्लड कैंसर से जूझ रही थी और लड़की का परिवार आर्थिक रूप से काफी कमजोर था। मां को छोड़ परिवार के सभी लोगों ने बच्ची के इलाज में सहायता करने से मुंह मोड़ लिया था। लेकिन मां तो मां होती है, उसने हार नहीं मानी। इस परिवार के संघर्ष को देखते हुए मेहुल ने तय किया कि वे किसी न किसी माध्यम से ऐसे परिवारों की मदद करेंगे जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
मेहुल ने बताया कि उनके पास देश के 25 से 30 ऐसे परिवार हैं जो कैंसर मरीजों व उनके परिवारों के लिए आर्थिक रूप से मदद करते हैं। ‘आनंद’ द्वारा वर्तमान में 121 कैंसर पीड़ित मरीजों व उनके परिवारों की मदद की जा रही है। उन्हें खाने के लिए हर महीने राशन और दवाइयां दी जा रही हैं। इतना ही नहीं, कामकाज छोड़ इलाज में व्यस्त परिवार की एक हजार रुपए की आर्थिक सहायता भी की जा रही है। कुछ दानदाता मरीजों के अकाऊंट में पैसे डायरैक्ट भेज देते हैं तो कुछ परिवारों को मेहुल के माध्यम से सहायता मिल जाती है।
शारीरिक व मानसिक यातना झेल रहे मरीज व उनके परिवारों को सही मायनों में ‘आनंद’ खुशियां बांट रहा है। कहते हैं मायानगरी मुंबई से न तो कोई खाली हाथ जाता है, न ही कोई खाली पेट सोता है। मेहुल दोषी जैसे लोग इंसानियत धर्म का पालन कर रहे हैं। न जात, न पात देख सच्चे मन से जरूरतमंदों की सहायता के लिए ऐसे ही हाजिर रहने वालों की जरूरत है।-सूरज पांडे