'नकद सहायता' से हल नहीं होगी कृषि क्षेत्र की समस्या

Edited By ,Updated: 14 Mar, 2019 05:11 AM

cash aid  will not solve the problem of agriculture sector

केन्द्र सरकार की ओर से कुछ समय पहले शुरू की गई पी.एम. किसान योजना काफी चर्चा का विषय रही है। इस योजना से ग्रामीण क्षेत्र की मांग बढऩे तथा अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले प्रभाव के प्रति विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अपने-अपने मत व्यक्त किए हैं। उल्लेखनीय...

केन्द्र सरकार की ओर से कुछ समय पहले शुरू की गई पी.एम. किसान योजना काफी चर्चा का विषय रही है। इस योजना से ग्रामीण क्षेत्र की मांग बढऩे तथा अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले प्रभाव के प्रति विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अपने-अपने मत व्यक्त किए हैं। 

उल्लेखनीय है कि पी.एम. किसान योजना के तहत किसानों को हर वर्ष 6000 रुपए देने की योजना है। इसके तहत किसानों को पहली किस्त के तौर पर दो-दो हजार रुपए दिए जा चुके हैं। इंडियन कौंसिल फार रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के सीनियर विजिटिंग फैलो तथा पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन और टैक्नोपैक एडवाइजर्स के चेयरमैन अरविन्द सिंघल तथा ब्ल्यूस्टार के ज्वाइंट मैनेजिंग डायरैक्टर बी. थ्यागराजन का कहना है कि उन्हें ग्रामीण खर्च में बढ़ौतरी होने की कोई खास सम्भावना नजर नहीं आती। इन लोगों का यह भी कहना है कि पी.एम. किसान योजना की राशि कृषि कार्यों में खर्च होने की सम्भावना काफी कम है। हालांकि इससे कृषि क्षेत्र से जुड़े बाजार में सकारात्मक माहौल बनेगा। 

थ्यागराजन का मानना है कि टीयर-2 व टीयर-3 शहरों में अथवा ग्रामीण मांग में उक्त योजना से किसी विशेष सुधार की उम्मीद नजर नहीं आती। उन्होंने बताया कि हमारी बिक्री का 65 प्रतिशत हिस्सा टीयर-3, टीयर-4 तथा टीयर-5 कस्बों से आता है। न केवल एयरकंडीशनरों बल्कि कर्मिशयल रैफ्रिजरेशन उपकरणों जैसे कि राइपङ्क्षनग चैम्बर्स और कोल्ड चेन के बाजार में सकारात्मक माहौल है। उनका कहना है कि इससे ग्रामीण मांग में सुधार होने की कोई बड़ी संभावना नहीं है। उनके अनुसार देश के सामने विशेष प्रकार की चुनौती है। किसानों के मामले में खास बात यह है कि जितना अधिक वे उत्पादन करते हैं उतनी ही उनकी स्थिति खराब होती जाती है। भारतीय कृषि क्षेत्र उस विशेष स्थिति में है जहां हमें किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए उत्पादन में कुछ कमी लानी पड़ेगी। पिछले दो-तीन वर्षों में कृषि उत्पादों की कीमतों में बहुत कम वृद्धि हुई है। 

कृषि क्षेत्र को दी जाने वाली रियायतें किसी भी तरह से खरीद शक्ति में सहायक नहीं होती हैं क्योंकि उनके द्वारा राशि का उपयोग पहले ही कर लिया जाता है। इसलिए यह केवल बैलेंस शीट एंट्री होती है कि उन्हें ये लोन वापस नहीं करने पड़ेंगे। अंतरिम बजट के दौरान लाई गई प्रधानमंत्री किसान योजना से किसानों के हाथ में 20,000 करोड़ रुपए आए हैं तथा अगले वित्त वर्ष में उन्हें 75,000 करोड़ रुपए और मिलेंगे। इस रुपए से कुछ हद तक खपत बढ़ेगी लेकिन अभी तक हमें जमीनी स्तर पर ग्रामीण खर्च में बढ़ौतरी का कोई संकेत नजर नहीं आ रहा है।

फूड प्रोसैसिंग में निवेश 
फूड प्रोसैसिंग के क्षेत्र में काफी निवेश हुआ है। इसलिए इस क्षेत्र में निश्चित तौर पर विकास की सम्भावना है लेकिन ग्रामीण भारत में उपभोक्ता खपत में वृद्धि की ज्यादा सम्भावना नहीं है। किसानों को 6000 रुपए प्रति वर्ष की सहायता तथा ऋण माफी के संबंध में हुसैन का कहना है कि पैसा ग्रामीण उपभोक्ताओं के पास पहुंच रहा है लेकिन यह भी स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री किसान योजना की पहली किस्त बंट जाने के बाद नजदीकी भविष्य में कोई कृषि गतिविधि नहीं होने जा रही है।

इसलिए मेरा मानना है कि यह पैसा कृषि की बजाय अन्य चीजों पर खर्च होगा। गेहूं, चने तथा सरसों की कटाई के अलावा कृषि संबंधी कोई गतिविधि अभी नहीं होगी। इसलिए मैं यह मानता हूं कि किसानों को मिले रुपए छोटे किसानों द्वारा जूते, टुथपेस्ट तथा साबुन इत्यादि खरीदने में खर्च किए जाएंगे इसलिए यह राशि कृषि क्षेत्र में खर्च नहीं होगी। इसका इस्तेमाल उपभोक्ता खर्च अथवा अन्य जरूरतों के लिए होगा। वहीं थ्यागराजन का कहना है कि इस समय मांग वृद्धि काफी अधिक है। तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र के अंदरूनी हिस्सों में अच्छी स्थिति है। उपभोक्ता मामलों में यह भावनाओं और माहौल से जुड़ा मामला है।बिक्री में हमारा उपभोक्ता वित्त भाग इस समय लगभग 40 प्रतिशत है तथा मेरा मानना है कि यह 45 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। इससे 6000 या 8000 रुपए का कोई लेना-देना नहीं है बल्कि यह उपभोक्ताओं की रुचि से जुड़ा मामला है तथा इस समय हमारे लिए उपभोक्ता महत्वपूर्ण हैं। 

पेचीदा है कृषि क्षेत्र की समस्या 
अरविन्द सिंघल का कहना है कि कृषि क्षेत्र की समस्या काफी पेचीदा है और यह बैंक खातों में पैसे डालने जैसे उपायों से सुलझने वाली नहीं है। हमारी अर्थव्यवस्था इसे सहन नहीं कर सकती। हमारा बजट भी इस तरह के उपायों को सपोर्ट नहीं करता। इस संबंध में पहले ही काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है। 

यद्यपि कृषि भूमि को इकट्ठा करना ताकि यह आर्थिक तौर पर लाभदायक बन सके तथा कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के लिए हमें विदेशों में नए बाजारों की तलाश करनी होगी क्योंकि हम अपनी घरेलू खपत के मुकाबले काफी अधिक कृषि उपज का उत्पादन कर रहे हैं। इसके अलावा फूड प्रोसैसिंग द्वारा कृषि उत्पादों का मूल्य बढ़ाना भी एक अच्छा उपाय है लेकिन इसका लाभ 3 या 6 महीने में नहीं मिलेगा बल्कि यह लंबी अवधि का उपाय है। हालांकि खातों में पैसे भेजना कृषि क्षेत्र की समस्या का समाधान नहीं है।

हुसैन का मानना है कि निकट भविष्य में अधिकतर कृषि उत्पादों की कीमतों में सुधार के कोई आसार नहीं हैं। पिछले वर्ष गेहूं व कपास के मूल्य में वृद्धि हुई थी लेकिन अन्य वस्तुओं की दरें कम ही रहीं। कुछ ही समय बाद रबी की फसल आने वाली है और हम देख रहे हैं कि चना, अरहर, सरसों का तेल व उड़द सहित अधिकतर कृषि जिन्सों में मंदी का माहौल है तथा इनका भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम है। इसलिए मुझे अभी इनकी कीमतों में बढ़ौतरी की सम्भावना नहीं दिखती। सरकार के पास गेहूं का काफी बड़ा भंडार है तथा उसे इस संबंध में कोई कदम उठाना पड़ेगा। 

जब 2014 में यह सरकार सत्ता में आई थी तो काफी मात्रा में निर्यात किया गया था। यद्यपि इससे डब्ल्यू.टी.ओ. के रैगुलेशन्स प्रभावित होंगे इसलिए नई सरकार के सामने इस प्रकार की कई चुनौतियां आएंगी। मैं यह कह कर अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा कि सरकार काफी कुछ कर सकती है लेकिन उसकी भी कुछ सीमाएं हैं लेकिन किसी भी सरकार को नोटबंदी की तरह अपनी तरफ से कोई लक्ष्य तय नहीं करना चाहिए। इसलिए सभी से मेरा यही निवेदन है कि अपनी ओर से लक्ष्य तय न करें।-एल. वेंकटेश, सोनिया एस.
 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!