3 राज्यों के विधानसभा चुनावों में जाति-बिरादरी व धर्म का पहलू हावी रहेगा

Edited By Pardeep,Updated: 22 Oct, 2018 04:55 AM

caste community and religion aspect will dominate in 3 states assembly elections

तीन राज्यों-मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। राजनीतिक दल, विशेषकर भाजपा तथा कांग्रेस के लिए ये चुनाव 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों हेतु तैयारी हैं। तीनों राज्यों में ही भाजपा की सरकारें हैं। छत्तीसगढ़ तथा...

तीन राज्यों-मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। राजनीतिक दल, विशेषकर भाजपा तथा कांग्रेस के लिए ये चुनाव 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों हेतु तैयारी हैं। तीनों राज्यों में ही भाजपा की सरकारें हैं। छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश में क्रमश: मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह तथा शिवराज सिंह चौहान लगातार 3 कार्यकालों से मुख्यमंत्री चले आ रहे हैं। 

अब जो चुनाव होने जा रहे हैं इनमें जीत-हार के कारण जाति, बिरादरी, धर्म, उम्मीदवार तथा उसकी आर्थिक योग्यता, विरोधी दलों की आपसी दौड़, संचार साधन तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘जादू’ होंगे। अब तक जात-पात राजनीति में आधारभूत शक्ति के रूप में उभरती आ रही है। इस शृंखला में राजस्थान एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। राजस्थान विधानसभा की 60 सीटें सीधे तौर पर जाटों के प्रभाव में हैं। दूसरी ओर श्रीगंगानगर, बीकानेर तथा झुंझुनूं के क्षेत्रों में राजपूतों का प्रभाव है। ब्राह्मण भाईचारा 30 से 35 सीटों पर प्रभावित कर सकता है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए राजपूतों तथा गुज्जरों को अपने प्रभाव में रखना एक बड़ी सिरदर्दी बनी हुई है। इसका कारण यह है कि राजपूत तथा गुज्जर जाटों के साथ मिलकर राज्य की कुल जनसंख्या का पांचवां हिस्सा बन जाते हैं। यह हिस्सा यदि भाजपा के विरुद्ध जाता है तो वसुंधरा के लिए राज्य की दोबारा मुख्यमंत्री बनना संभव नहीं होगा। 

अलवर तथा अजमेर हलकों में इस वर्ष हुए उपचुनावों में भाजपा पहले ही पराजित हो चुकी है। इन उपचुनावों में भाजपा की हार के जो कारण थे, उनमें एक प्रमुख कारण जी.एस.टी. तथा नोटबंदी के कारण व्यापारी वर्ग को दरपेश परेशानी थी। कांग्रेस जाटों की वफादारी के साथ-साथ ब्राह्मण भाईचारे के एक हिस्से तथा मुस्लिम वोटों व दलितों तथा कबायलियों में सरकार को लेकर फैली निराशा से लाभ उठा सकती है। जहां तक छत्तीसगढ़ का प्रश्र है, पिछड़ी जातियां, जिनकी गिनती राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा बनती है, किसी विपक्ष की हार-जीत में महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं। राज्य की एक-तिहाई आबादी पिछड़े वर्गों की है, जबकि मुसलमान 2 प्रतिशत, ब्राह्मण 7 प्रतिशत तथा अन्य जातियां 4 प्रतिशत हैं। विधानसभा की 80 सीटों में से 28 सीटें पिछड़े कबीलों तथा 10 पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित हैं। उच्च जातियों तथा अन्य पिछड़ी जातियों के वोट अब तक भाजपा के साथ रहे जबकि पिछड़े कबीलों के वोट कांग्रेस  तथा भाजपा के बीच बराबर बांटे जाते रहे हैं। इन वोटों में बहुजन समाज पार्टी का भी हिस्सा रहा है। 

मध्य प्रदेश पर नजर मारने से जो बात सामने आती है, वह यह है कि भाजपा की निर्भरता उच्च जातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के वोटों पर है जबकि आर.एस.एस. कबीलों के दिल जीतने में लगा हुआ है। कांग्रेस अब उच्च जातियों के भाजपा से नाराज वर्ग के वोट अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रही है। इसके लिए कांग्रेस तथा उच्च जातियों के नेता कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा दिग्विजय सिंह जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं। जहां तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निजी व्यक्तित्व के प्रभाव का संबंध है, इसका ग्राफ ऊपर की ओर नहीं बल्कि नीचे की ओर ही गया है। राज्यों में यदि किसी का कोई प्रभाव हो सकता है तो वह सत्तासीन मुख्यमंत्री का ही हो सकता है। जहां तक आर्थिक क्षमता का संबंध है, इस शृृंखला में भाजपा का पलड़ा भारी है। अन्य पार्टियां नोटबंदी ने कमजोर कर दी हैं। 

उम्मीदवारों का चयन भी पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा है। उम्मीदवार लोगों के बीच कितने लोकप्रिय हैं, इस बात पर भी हार-जीत निर्भर करती है। इन चुनावों बारे मीडिया के कुछ हलकों द्वारा सर्वेक्षण करने के उपरांत जो भविष्यवाणी की जा रही है, उसके अनुसार मध्य प्रदेश विधानसभा की कुल 280 सीटों में से 122 सीटें कांग्रेस की झोली में डाली जा रही हैं, जबकि छत्तीसगढ़ विधानसभा की कुल 80 सीटों में से कांग्रेस को 42 सीटें मिलने का अनुमान है। राजस्थान विधानसभा की 200 सीटों में से कांग्रेस के हिस्से में 142 सीटें आने की आशा जताई गई है। मीडिया के ये आंकड़े केवल अनुमानों पर आधारित हैं। इस बारे निर्णय तो इन राज्यों की जनता के हाथों में है। अब देखना यह है कि जनता का निर्णय ऊंट को किस करवट बिठाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इन चुनावों बारे जनता का निर्णय 2019 के लोकसभा चुनावों को प्रभावित करेगा।-बचन सिंह सरल (कोलकाता)

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