सी.डी.एस. का लम्बे समय से ‘इंतजार’ था

Edited By ,Updated: 04 Jan, 2020 02:58 AM

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चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ (सी.डी.एस.) का स्वागत है। सुरक्षाबलों के तीनों विंगों में बेहतर समन्वय स्थापित करने के लिए इस पद का लम्बे समय से इंतजार था। इसका मकसद राजनीतिक नेतृत्व को सैन्य परामर्श की गुणवत्ता को बढ़ाना है। सुरक्षाबलों तथा सरकार के बीच संबंध...

चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ (सी.डी.एस.) का स्वागत है। सुरक्षाबलों के तीनों विंगों में बेहतर समन्वय स्थापित करने के लिए इस पद का लम्बे समय से इंतजार था। इसका मकसद राजनीतिक नेतृत्व को सैन्य परामर्श की गुणवत्ता को बढ़ाना है। सुरक्षाबलों तथा सरकार के बीच संबंध का एक केन्द्र बिन्दू बनाया गया है। सभी प्रमुख सैन्य शक्तियों के पास पहले से ही ऐसा पद मौजूद है या फिर सी.डी.एस. के कद के समानांतर एक पद है। देश में इस पद की जरूरत पहली मर्तबा 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान पड़ी। ऐसी रिपोर्ट आई कि कुछ कार्रवाइयों में देरी हो गई क्योंकि तीनों सेनाओं के विचारों में मतभेद था। 

कारगिल युद्ध के बाद एक उच्च स्तरीय कारगिल समीक्षा कमेटी का गठन किया गया जिसने इस पद के गठन के बारे में अपनी सिफारिश दी मगर सरकार द्वारा इस पर सहमति देने तथा इसकी नियुक्ति आगे बढ़ाने के लिए दो दशकों का समय लग गया। कुछ महीनों से ऐसी रिपोर्ट आ रही थी कि सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को इस पद के लिए लाया जाएगा और यही बात हुई। बतौर सी.डी.एस. उनको सबके बीच में से अग्रणी माना जाएगा। इसका मतलब यह है कि वह जनरल का रैंक जारी रखेंगे मगर वह सेना प्रमुख, नौसेना प्रमुख तथा वायु सेना प्रमुख से वरिष्ठ होंगे। अपनी सेवाओं पर तीनों सेना प्रमुख परिचालन कमान जारी रखेंगे जबकि सी.डी.एस. मुख्य तौर पर तीनों सेना प्रमुखों के साथ समन्वय बना कर रखेंगे। वह रक्षा मंत्री को भी सीधे तौर पर रिपोर्ट करेंगे। इससे पहले तीनों सेना प्रमुख रक्षा सचिव के माध्यम से रक्षा मंत्री को रिपोर्ट कर रहे थे। 

यहां पर लम्बे समय से यह मांग चली आ रही थी कि रक्षा मंत्री तथा प्रधानमंत्री से सिविलियन नौकरशाह के माध्यम की बजाय सीधा सम्पर्क रखा जाए। ऐसा भी सोचा जाता था कि  भारत बहुआयामी हाईब्रिड युद्ध परिदृश्य में नई चुनौतियों के लिए सैन्य रणनीति में वैश्विक ट्रैंड के बराबर खड़ा हो। उच्च रक्षा प्रबंधन में अखंड समन्वय प्राप्त करने के लिए यह नियुक्ति बेहद अहम है। 

रावत के लिए भूमिका बड़ी नाजुक
जनरल रावत के लिए यह भूमिका बड़ी नाजुक है। युद्ध रणनीति में बड़ी तेजी से बदलाव हो रहा है तथा युद्ध में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ रहा है जिसके चलते भविष्य में भारत के लिए यह प्रमुख चुनौती बन जाती है। पारम्परिक युद्ध के दिन लद चुके हैं। प्रमुख सैन्य शक्तियां अपना ध्यान कृत्रिम बुद्धि पर केन्द्रित कर रही हैं और ये यकीनी बनाना चाहती हैं कि अपनी रक्षा तथा दुश्मन पर हमले के लिए सैनिकों का इस्तेमाल कम हो तथा हाईटैक हथियार प्रणाली का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो। इसका अभिप्राय: यह नहीं कि पैदल सैनिकों की जरूरत ही न पड़े। भारत कश्मीर में एक कम तीव्रता वाला युद्ध लड़ रहा है। पाकिस्तान आतंक को प्रायोजित तथा उकसा रहा है। मोदी सरकार इसका जवाब देने के लिए ज्यादा तेज है। ऐसी रणनीति गढऩे की जरूरत है जिसके माध्यम से इस प्रकार के युद्ध में शामिल लोगों से निपटा जा सके। इसकी बजाय नागरिकों को आघात न पहुंचे। 

सी.डी.एस. के समक्ष चुनौती
सी.डी.एस. के समक्ष एक अन्य प्रमुख चुनौती यह है कि वे तीनों सेनाओं को एक ही छत के नीचे ले आएं। बेहतर रणनीति को लागू करने के लिए तीनों सेनाओं को संयुक्त रूप से एक होने की जरूरत है। वर्तमान में 19 कमानों में से केवल 2 ही ट्राई-सॢवस कमान हैं। ऐसी 2 कमान अंडेमान तथा निकोबार तथा स्ट्रैटेजिक फोर्सिज कमान है जिसके पास परमाणु सम्पत्ति का जिम्मा है। एक संयुक्त कमान के अधीन सभी को इकट्ठा करना एक आसान कार्य नहीं क्योंकि यहां पर तीनों सेनाओं के अधिकारियों के बीच विचारों का विरोधाभास तथा प्रतिरोध भी होगा। जनरल रावत को ध्यान से सब कुछ निपटाना होगा। इसके साथ-साथ तीनों सेना प्रमुखों से समन्वय तथा एकताल रखनी होगी क्योंकि इस प्रणाली को पहली बार देश में पेश किया जा रहा है। इसलिए संदेहों तथा अस्पष्टताओं को मिटाने में थोड़ा समय तो लगता ही है।-विपिन पब्बी
 

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