सी.डी.एस. की नियुक्ति पर फैसला स्वागत योग्य कदम

Edited By ,Updated: 22 Aug, 2019 03:00 AM

cds welcome decision on appointment of

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गई यह घोषणा कि देश में अब एक चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ (सी.डी.एस.) होगा, एक चिरलंबित तथा स्वागत योग्य कदम है। यह लम्बे समय से रक्षा बलों की जरूरत थी और आधुनिक युद्ध की जरूरतों के मद्देनजर भी है। रक्षा बलों की विभिन्न...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गई यह घोषणा कि देश में अब एक चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ (सी.डी.एस.) होगा, एक चिरलंबित तथा स्वागत योग्य कदम है। यह लम्बे समय से रक्षा बलों की जरूरत थी और आधुनिक युद्ध की जरूरतों के मद्देनजर भी है। रक्षा बलों की विभिन्न इकाइयों के बीच बेहतर तालमेल तथा चुनी हुई सरकार तथा रक्षा सेवाओं के बीच एक ही बिन्दू पर सम्पर्क बनाने के लिए अमरीका सहित अधिकतर अन्य लोकतंत्रों में पहले ही यह प्रणाली मौजूद है। 

वर्तमान में देश में थल सेना, वायु सेना तथा नौ सेना प्रमुखों पर आधारित एक समन्वय समिति है। तीनों सेना प्रमुखों में से सर्वाधिक वरिष्ठ इसका चेयरमैन है। यद्यपि, चूंकि ये अधिकारी बराबर रैंक के हैं इसलिए निर्णय लेने में समस्याएं होती थीं। इसके साथ ही समिति का प्रमुख रक्षा सचिव को रिपोर्ट करता था, जो फिर रक्षा मंत्री को रिपोर्ट करता था, जो आगे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता था। 

सीधे रक्षा मंत्री को रिपोर्ट करेगा
यह प्रस्तावित चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ अब सीधे रक्षा मंत्री को रिपोर्ट करेगा। वह तीनों सेना प्रमुखों से उच्च रैंक का होगा और कोई स्टैंड लेने अथवा तीनों सेवाओं की आवश्यकताओं तथा जरूरतों की प्राथमिकताएं निर्धारित करने की स्थिति में होगा। अपनी वरिष्ठता के साथ रक्षा सेवाओं से संबंधित सभी मामलों पर उसका निर्णय अंतिम होगा। ऐसे पद की जरूरत 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्ध में अत्यंत महसूस की गई जिसके परिणामस्वरूप उस देश का बंटवारा तथा बंगलादेश का जन्म हुआ। तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल मानेकशॉ को युद्ध के दौरान रक्षा बलों का अस्थायी प्रमुख बनाया गया था। 

इसकी जरूरत 1999 में एक बार फिर महसूस की गई तथा कारगिल युद्ध के बाद गठित की गई एक समिति ने भी चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ की नियुक्ति का सुझाव दिया था। किसी ऐसे पद का वायु सेना सहित कुछ हलकों की ओर से विरोध किया गया लेकिन जाहिरा तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उपयुक्त विचार-विमर्श के बाद अब निर्णय ले लिया है। 

युद्ध के पारम्परिक तरीके अब कारगर नहीं
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि बख्तरबंद वाहनों, टैंकों, युद्धक विमानों तथा युद्धपोतों के साथ युद्ध के पुराने पारम्परिक तरीके अब कारगर नहीं रहे। यह समय परमाणु हथियारों, कृत्रिम समझ, उपग्रह युद्ध तथा इलैक्ट्रानिक निगरानी का है। इन सब के लिए अत्यंत तालमेल तथा शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता की जरूरत है।

रक्षा सेवाओं में ऐसी भावना भी बढ़ रही है कि सिविलियन अधिकारियों के मुकाबले उनके अधिकारियों के दर्जे को घटाया जा रहा है तथा निर्णय सिविल अधिकारियों द्वारा लिए जा रहे थे, जो रक्षा जरूरतों के प्रति संवेदनशील नहीं थे। चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ का पद नौकरशाही से बाहर निकालेगा। हालांकि यह महत्वपूर्ण है कि देश के वृहद लाभ हेतु सिविल तथा रक्षा अधिकारी बराबर का तालमेल करें। यह सेवा मुख्यालयों का रक्षा मंत्रालय के साथ एकीकरण का आदर्श समय भी है। यह सेवाधिकारियों तथा नौकरशाहों को सांझीदारों के तौर पर एक साथ बैठने के सक्षम बनाएगा। यह ओवरलैपिंग को हटाने में भी मदद करेगा जिसके कारण कार्यकुशलता तथा जवाबदेही आएगी। 

कौन होगा पहला सी.डी.एस.
अब महत्वपूर्ण प्रश्र यह है कि चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ के प्रतिष्ठित पद पर बैठने वाला पहला व्यक्ति कौन होगा? इस बिन्दू के बारे में अस्पष्टता है कि क्या वह कोई सेवारत अधिकारी होगा या कोई ऐसा जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुआ हो। अनुमान लगाए जा रहे हैं कि वह वर्तमान वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बी.एस. धनोआ हो सकते हैं, जिन्होंने कारगिल में लड़ाकू विमान उड़ाए या फिर थल सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत। ऐसे भी अनुमान हैं कि वह लै. जनरल डी.एस. हुड्डा जैसे हाल ही में सेवानिवृत्त तथा अनुभवी वरिष्ठ अधिकारी अथवा हाल ही में सेवानिवृत्त एवं कुशल पूर्व नौसेना अध्यक्ष सुनील लाम्बा हो सकते हैं। जो कोई भी अंतत: महत्वपूर्ण तथा प्रतिष्ठित पद पर नियुक्त किया जाए, वह आवश्यक तौर पर एक उत्कृष्ट अधिकारी हो, जो न केवल रक्षा बलों को हुक्म देने में सक्षम हो बल्कि अपनी क्षमता तथा अनुभव के साथ तीनों सेना प्रमुखों को सम्मान भी दे। क्षेत्र के अनिश्चित भविष्य को देखते हुए भारत अपने रक्षा प्रमुख के साथ कोई जोखिम मोल नहीं ले सकता।-विपिन पब्बी
 

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