‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ पर जल्दबाजी न दिखाए केंद्र

Edited By ,Updated: 01 Jan, 2021 03:53 AM

center not showing haste on  one nation one election

2014 में जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (राजग) का नेतृत्व किया तब से ‘एक  राष्ट्र, एक चुनाव’ के विचार से वे प्रभावित हो चुके हैं। गठबंधन के लिए 2019 में शानदार जीत के बाद उन्होंने एजैंडे को इतना अधिक आगे नहीं

2014 में जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (राजग) का नेतृत्व किया तब से ‘एक  राष्ट्र, एक चुनाव’ के विचार से वे प्रभावित हो चुके हैं। गठबंधन के लिए 2019 में शानदार जीत के बाद उन्होंने एजैंडे को इतना अधिक आगे नहीं बढ़ाया जितना कि बढ़ाया जाना चाहिए था। पिछले महीने पीठासीन अधिकारियों की 80वीं बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने इस एजैंडे को आगे धकेला। 

उन्होंने कहा कि यह विचार केवल विचार-विमर्श का मुद्दा नहीं था बल्कि देश की आवश्यकता भी थी। कुछ महीनों के बाद विभिन्न स्थानों पर चुनाव आयोजित होने हैं जिसके चलते विकास कार्य बाधित होते हैं। आप सभी इसके बारे में जानते हैं। इस कारण ‘वन नेशन, वन इलैक्शन’ पर गहन अध्ययन और विचार-विमर्श होना आवश्यक है। भाजपा ने इस सप्ताह एजैंडे को आगे बढ़ाने के लिए कम से कम 25 वैबीनार करवाने की घोषणा की। इस सप्ताह इस तरह के पहले वैबीनार के दौरान पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि संघीय ढांचे के लिए कोई खतरा नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि भाजपा सरकार कैसे ‘एक राष्ट्र, एक कर’ जैसे विशाल कार्य को करने में सफल रही जो पहले असंभव दिखता था। 

मोदी सरकार का एक राष्ट्र, सब कुछ के लिए एक का जुनून अच्छी तरह से जाना जाता है। उस दिशा में सरकार द्वारा कई नई पहलें की गई हैं। इसमें जी.एस.टी., समान राष्ट्रीय शिक्षा नीति और यहां तक कि जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष दर्जे का हनन भी शामिल है। 

हालांकि समान कराधान जैसे कुछ उपाय सराहनीय हैं। एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिए आगे बढऩा खतरों से भरा हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी के नेताओं द्वारा इसके पक्ष में दिया गया प्रमुख तर्क यह है कि लगातार चुनाव करवाना विकास पर ध्यान केन्द्रित करना मुश्किल हो जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार जब भी चुनाव होते हैं तो राजनेताओं तथा सरकार  का ध्यान भटक जाता है। कुछ तर्क हो सकते हैं। चुनाव पांच साल में केवल एक बार होने चाहिएं और यह लोकतंत्र के विचार के लिए गंभीर खतरे से भरा है। 

यदि राज्य सरकारें अपने कार्यकाल के अंत से पहले गिरती हैं तो न तो प्रधानमंत्री और न ही उनकी पार्टी अभी तक नतीजे के विश्वसनीय विकल्प के साथ सामने आई है। अंतरिम अवधि के दौरान क्या होगा जब कोई भी पार्टी या नेता सरकार के गठन को लेकर असफल रहता है। अगर आम सहमति वाली सरकार के लिए कोई प्रावधान है तो इससे राजनीतिक अनिश्चितता तथा हॉर्स ट्रेडिंग नहीं होगी। इस प्रकार यह सुनिश्चित नहीं हो सकता है कि सरकार का ध्यान विकास पर केन्द्रित रहेगा। यह प्रणाली केंद्र सरकार को भी अधिक शक्तियां देगी जो अपनी शक्ति का दुरुपयोग राज्यपाल शासन लगाने के लिए करेगी। किसी भी राज्य के लिए केंद्र सरकार के शासन के अधीन रहना निश्चित रूप से हमारे लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। फिर भी इस तर्क में कुछ अच्छी बातें हैं कि बहुत बार होने वाले चुनाव सरकार के कामकाज को प्रभावित तथा बाधित करते हैं और नेता हमेशा ही ‘चुनाव मोड’ पर रहते हैं। 2020 के दौरान आधा दर्जन राज्यों में चुनाव हुए और 2021 में कम से

कम 4 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस स्थिति से बाहर निकलने का  एक तरीका यह है कि साल में केवल एक बार विधानसभा चुनाव हों। इस प्रकार कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों के आयोजन के लिए कुछ महीनों तक इंतजार करना पड़ सकता है जबकि अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों को कुछ महीनों के लिए टाल दिया जा सकता है और चुनावों को एक वर्ष की अवधि के दौरान ही आयोजित किया जाता है। 

केंद्र सरकार ने हाल ही में देश में संघवाद को कमजोर करने के लिए जितने भी कदम उठाए हैं, उन्हें देखते हुए यह लगता है कि प्रधानमंत्री का ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का एजैंडा संदेह के साथ देखा जाता है। कोई भी अंतिम निर्णय लेने से पहले चुनावों को एक साथ करवाने की अवधारणा पर अधिक चर्चा करने की आवश्यकता है। इसके लिए सभी राजनीतिक पाॢटयों को अपने इनपुट देने के लिए कहा जाना चाहिए। यह संविधान के लोकतंत्र तथा संघीय ढांचे से संबंधित एक संवेदनशील मुद्दा है और केंद्र को अपने प्रस्तावों में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।-विपिन पब्बी
 

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