किसानों के प्रति फराखदिली का सबूत दे केंद्र सरकार

Edited By ,Updated: 30 May, 2021 04:56 AM

central government should provide proof of fraud towards farmers

किसानों के व्यापक विरोध के बावजूद  केंद्र सरकार की तरफ से पास किए तीन कृषि बिलों के खिलाफ चल रहे देश व्यापी संघर्ष को करीब 6 महीने का अर्सा बीत चुका है। 26 नवंबर 2020 से लेकर

किसानों के व्यापक विरोध के बावजूद  केंद्र सरकार की तरफ से पास किए तीन कृषि बिलों के खिलाफ चल रहे देश व्यापी संघर्ष को करीब 6 महीने का अर्सा बीत चुका है। 26 नवंबर 2020 से लेकर 22 जनवरी 2021 तक ग्यारह  बेनतीजा मीटिंगें केंद्र सरकार और किसान जत्थेबंदियों के बीच हो चुकी हैं। 

मीटिंगों के दौरान केंद्र्र सरकार 3 बिलों में संशोधन करने की रजामंदी प्रकट कर चुकी है और एम.एस.पी. की लिखित गारंटी देने का विश्वास भी दिला चुकी है। जबकि किसान धड़े 3 कृषि बिलों को पूर्णतया रद्द करके एम.एस.पी. पर कानून बनाने की मांग पर अड़े हुए हैं। किसानों और केंद्र सरकार के बीच हुई इन मीटिंगों को फर्जी और रिवायती खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि इन मीटिंगों के दौरान केंद्र सरकार का समूचा जोर इन बिलों को सही ठहराने या संशोधन करने की पेशकश पर ही लगा रहा। 

किसानों को कई बार तो मीटिंगों के नाम पर जलील भी किया गया। एक तरफ बातचीत का सिलसिला भी जारी रखा गया और साथ ही किसान संघर्ष को कभी आतंकवादी और कभी अलगाववादी के नाम पर बदनाम करने की कोशिशें भी की गईं परन्तु हम किसान संघर्ष को काफी हद तक शांतमयी कह सकते हैं। इसी संघर्ष और बातचीत के सिलसिले में केंद्र सरकार की नीति कई बार बेनकाब भी होती रही। 

केंद्र सरकार की तरफ से पराली जलानेे का अलग बिल पास करना और एस.वाई.एल. जैसे विवादास्पद मुद्दे को तूल देना,किसान नेताओं को विजीलैंस के घेरे में लाना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, वहीं प्रधानमंत्री की तरफ से खेती बिलों के समर्थक किसानों के साथ खुद बातचीत करने का सिलसिला आरंभ न करना और 6 महीने का अर्सा बीतने के बावजूद किसानों के हक में एक भी ट्वीट तक न करना, किसानों को अपने ही मुल्क में बेगानेपन का एहसास करवाने का एक भद्दा यत्न कहा जा सकता है। 

यह कितनी सितम जरीफी की बात है कि खुले आसमान के नीचे शांतमयी संघर्ष कर रहे देश के 470 किसान गत 6 महीनों में गर्मी, सर्दी और भयानक बीमारियों का प्रकोप सहते हुए जानें गंवा चुके हैं पर देश के प्रधानमंत्री की ओर से उनके प्रति चंद शब्द अफसोस के भी नहीं निकले। 

हिन्दुस्तान की मिट्टी के जर्रे-जर्रे में ‘जय जवान-जय किसान’ का स मानीय संकल्प अजल से आज तक समाया पड़ा है परन्तु देश की सरहदों पर देश के जवानों के साथ दीवाली मनाने वाला देश का हाकिम आज देश के किसानों के प्रति इतना निर्मोही क्यों है? आज देश को ‘जय जवान और जय किसान’ के नारे में पाई जाने वाली दरार के प्रति खबरदार होने की जरूरत है। आज कोरोना महामारी के प्रकोप का दोष किसान संघर्ष के सिर मढऩे की कोशिशें हो रही हैं। 

पंजाब और हरियाणा भर में भाजपा और आर.एस.एस. का सार्वजनिक विरोध देश की अखंडता, अमन कांनून और भाईचारक सांझ के लिए खतरा बन रहा है तो केंद्र सरकार की तरफ से 22 जनवरी के बाद अब तक अपनाई गई खामोश नीति किसान संघर्ष और किसान भावनाओं के प्रति सकारात्मक सोच का दिखावा कर रही है। 

संयुक्त किसान मोर्चे की तरफ से अब एक पत्र देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखा गया है, जिसमें केंद्र सरकार और किसानों के बीच बातचीत के टूटे सिलसिले की कड़ी को फिर से जोडऩे की अपील की गई है। हम किसानों के पत्र को दूरअंदेश नीति भरपूर समझते हैं और केंद्र सरकार से फराखदिली की आशा रखते हैं, बातचीत का सिलसिला फिर शुरू होने के प्रति आशावान हैं। अब गेंद फिर केंद्र्र के पाले में है और केंद्र्र सरकार को इस पर पहल के आधार पर गंभीरता दिखाने की जरूरत है। 

काफी उतार-चढ़ाव इस दौरान सामने आए हैं और कई तरह की साजिशें इस संघर्ष को तारपीडो करने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी धड़े की तरफ से की गई हैं। किसान धड़ों का आर्थिक और जानी नुक्सान भी बड़े पैमाने पर हो चुका है। अब सब का फर्ज बनता है कि इस मसले का बातचीत के द्वारा स्थायी और योग्य हल निकाला जाए।-शमशेर सिंह डूमेवाल

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