शिक्षा नीति में बदलाव, नए युग की शुरूआत

Edited By ,Updated: 28 Jul, 2021 05:50 AM

change in education policy beginning of new era

देश को 34 सालों के बाद आखिरकार नई शिक्षा नीति मिल ही गई। शिक्षा प्रणाली को नियंत्रित करने वाले सभी सिद्धांतों एवं नियम-कानूनों के समुच्चय को शिक्षा नीति कहा जाता है। जिस तरह से एक जगह रुका

देश को 34 सालों के बाद आखिरकार नई शिक्षा नीति मिल ही गई। शिक्षा प्रणाली को नियंत्रित करने वाले सभी सिद्धांतों एवं नियम-कानूनों के समुच्चय को शिक्षा नीति कहा जाता है। जिस तरह से एक जगह रुका हुआ पानी बदबू मारने लगता है, उसी तरह एक पुरानी पद्धति पर पढ़ाई करने से बच्चों को शिक्षा से लाभ मिलना बंद हो जाता है। यही कारण है कि भारत में समय-समय पर शिक्षा नीति को बदला जाता रहा है। नई शिक्षा नीति 2020 भारत की शिक्षा नीति है।  भारत सरकार द्वारा इसकी घोषणा 29 जुलाई, 2020 को की गई। 1986 के बाद यह पहला बदलाव है जो शिक्षा नीति में आया है। 

भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में कहा गया है कि 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाए। 1948 में डॉ. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन हुआ था। तभी से राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण होना भी आरंभ हुआ। कोठारी आयोग (1964-1966) की सिफारिशों पर आधारित, पहली बार 1968 में महत्वपूर्ण बदलाव वाला प्रस्ताव इंदिरा गांधी, जो उस समय प्रधानमंत्री भी थीं, की अध्यक्षता में पारित हुआ। अगस्त 1985 में ‘शिक्षा की चुनौती’ नामक दस्तावेज तैयार किया गया, जिसमें भारत के विभिन्न वर्गों ने अपनी शिक्षा संबंधी टिप्पणियां दीं और 1986 में भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति 1986 का प्रारूप तैयार किया। 

इस नीति की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें सारे देश के लिए एक समान शैक्षिक ढांचे को स्वीकार किया गया और अधिकांश राज्यों ने 10+2+3 की संरचना को अपनाया। इसे राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में अपनाया गया, जिसके पहले एच.आर.डी. मंत्री पी.वी. नरसि हा राव बने थे। नई शिक्षा नीति के अंतर्गत कई मूलभूत परिवर्तन आए हैं, जिनमें से एक, मु य रूप से मानव संसाधन मंत्रालय का नाम फिर से शिक्षा मंत्रालय करने का फैसला लिया गया। संगीत, खेल, योग आदि को सहायक पाठ्यक्रम या अतिरिक्त पाठ्यक्रम की बजाय मुख्य पाठ्यक्रम में ही जोड़ा जाएगा। एम.फिल. को समाप्त किया जाएगा। अब अनुसंधान में जाने के लिए 3 साल की स्नातक डिग्री के बाद 1 साल स्नातकोत्तर करके पी.एच.डी में प्रवेश लिया जा सकता है। 

स्कूलों में 10+2 के स्थान पर 5+3+3+4 फॉर्मेट को शामिल किया जाएगा। इसके तहत पहले 5 साल में प्री प्राइमरी स्कूल को 3 साल और कक्षा 1 तथा कक्षा 2 सहित फाऊंडेशन स्टेज शामिल होंगी। पहले जहां सरकारी स्कूल कक्षा 1 से शुरू होते थे, वहीं अब 3 साल के प्री-प्राइमरी के बाद कक्षा 1 शुरू होगी। इसके बाद कक्षा 3-5 के 3 साल शामिल हैं, यानी कक्षा 6 से 8 तक की कक्षाएं। चौथी स्टेज कक्षा 9 से 12वीं तक के 4 साल होंगे। इससे पहले जहां 11वीं से विषय चुनने की आजादी थी, वहीं अब यह 8वीं कक्षा से रहेगी। 

शिक्षण के माध्यम के रूप में पहली से 5वीं तक मातृभाषा का इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें ‘रट्टा विद्या’ को खत्म करने की भी कोशिश की गई है, जिसको मौजूदा व्यवस्था की बड़ी कमी माना जाता है। यदि किसी कारणवश विद्यार्थी उच्च शिक्षा के बीच में ही कोर्स छोड़ कर चले जाते हैं तो ऐसा करने पर उन्हें कुछ नहीं मिलता था और उन्हें डिग्री के लिए दोबारा से नई शुरुआत करनी पड़ती थी। नई नीति में पहले वर्ष में कोर्स को छोडऩे पर प्रमाण पत्र, दूसरे वर्ष में डिप्लोमा तथा अंतिम वर्ष में डिग्री देने का प्रावधान है। 

इस नीति के तहत बच्चों को स्कूल के सभी स्तरों और उच्च शिक्षा में संस्कृत को एक विकल्प के रूप में चुनने का अवसर भी दिया जाएगा। नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस खोलने की अनुमति भी मिलेगी। प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल शिक्षा, स्कूली प्रणाली के साथ खेल आधारित पाठ्यक्रम के माध्यम से शिक्षा देना, बुनियादी साक्षरता तथा सं या ज्ञान प्रदान करना, बहुभाषावाद तथा भाषा की शक्ति पर जोर देना तथा समग्र बहुविषयक शिक्षा पर बल देना इस नीति की अन्य मु य विशेषताएं हैं। 

गौरतलब है कि नई शिक्षा नीति से बच्चों के सिर से बोर्ड की परीक्षाओं का डर समाप्त होता नजर आ रहा है। इसके साथ ही बच्चा अपनी मनपसंद का विषय चुन सकता है। बच्चे पूरी तरह से तकनीक से जुड़ पाएंगे। छोटी उम्र में ही उन्हें आत्मनिर्भर होने का अवसर मिलेगा। इस नीति के अनुसार जहां बच्चों का पूर्ण रूप से विकास होगा, वहीं शिक्षक की नियुक्ति का आधार भी पूरी तरह से नया होगा। 

यह भी कहा जा सकता है कि इस शिक्षा प्रणाली को सही तरीके से लागू होने में बेशक 2-3 साल का समय लग जाए लेकिन आने वाले समय में भारत के लिए एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य होना चाहिए, जहां किसी भी सामाजिक और आॢथक पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाले शिक्षार्थियों को समान रूप से सर्वोच्च गुणवत्ता की शिक्षा उपलब्ध हो। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय लोकाचार में शामिल वैश्विक सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्रणाली के निर्माण की परिकल्पना करती है और इन्हीं सिद्धांतों के साथ संरक्षित है, ताकि भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति के रूप में स्थापित किया जा सके।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा
 

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