हाथी बनाम ड्रैगन : 21वीं सदी में भारत-चीन के ‘रिश्तों’ का बदलता स्वरूप

Edited By ,Updated: 19 Sep, 2020 02:20 AM

changing nature of india china  relationships  in 21st century

भारत और चीन की सीमा रेखा पर पिछले 45 वर्षों में पहली बार सात सितम्बर को गोलियां चलीं। यह एक अप्रत्याशित घटना है। इस वर्ष जून में गलवान घाटी के संघर्ष में, जिसमें 20 बहादुर भारतीय सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की थी, मैं उन दिवंगत सेनानियों को शत्-शत्...

भारत और चीन की सीमा रेखा पर पिछले 45 वर्षों में पहली बार सात सितम्बर को गोलियां चलीं। यह एक अप्रत्याशित घटना है। इस वर्ष जून में गलवान घाटी के संघर्ष में, जिसमें 20 बहादुर भारतीय सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की थी, मैं उन दिवंगत सेनानियों को शत्-शत् नमन करता हूं। चीनियों ने सीमा पर कुछ महीने पहले से ही शरारतपूर्ण गतिविधियां शुरू कर दी थीं और वास्तविक सीमा रेखा पर मान्यता प्राप्त स्थिति को बदलने की कोशिश की थी। लेकिन चीन यह भी जानता  है कि वह एक नए भारत का सामना कर रहा है। हमारे सैनिकों ने 29-30 अगस्त को कैलाश शृंखला पर कब्जा कर लिया है और हर संभावित घटना से निपटने के लिए तैयार हैं। 

हाल ही में हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की चीनी विदेश मंत्री जनरल वेई फेंगही से हुई वार्ता और विदेश मंत्रियों, एस. जयशंकर और वांग यी, के बीच हुई बातचीत से स्पष्ट है कि भारत शांति चाहता है लेकिन हमने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि चीन अब न तो धमकी दे सकता है न ही गुंडागर्दी कर सकता है। संभवत:, यह पहली बार है जब भारत सरकार ने चीन से निपटने में इस ताकत और दृृढ़ता का प्रदर्शन किया है जो नए भारत का प्रतीक है। 

दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों और विदेश मामलों के मंत्रियों के मध्य हुई राजनीतिक स्तर की आधिकारिक बातचीत से आपसी विश्वास में बढ़ोतरी हुई है। यह निश्चित रूप से तनाव को कम करने और समस्या को हल करने में सहायक सिद्ध होगा। हमें दो राष्ट्रों के बीच अधिक विश्वास बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि इसमें वैश्विक हित समाहित है। बहुत कम लोग जानते हैं कि 1967 में एक और चीन-भारत युद्ध हुआ था, जब भारतीय सेना ने पहली बार चीन को अपनी ताकत के बल पर पीछे धकेल दिया था। आज सीमा पर हमारी स्थिति को हमारे सशस्त्र बलों की उस शानदार जीत के संदर्भ में समझने की जरूरत है। उस घटना के पश्चात, चीनी भारतीय इच्छाशक्ति और वीरता का सम्मान करते हैं। 

एल.आे.सी. और एल.ए.सी. का विवाद
भारत-चीन सीमा तीन क्षेत्रों में विभाजित है। पश्चिमी क्षेत्र में एल.ए.सी. केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में पड़ती है और 1597 किलोमीटर लंबी है। वहीं, अंतर्राष्ट्रीय सीमा का 545 किलोमीटर लंबाई का मध्य क्षेत्र उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में और 1346 किलोमीटर लंबा पूर्वी क्षेत्र सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के राज्यों में पड़ता है। स्वतंत्रता के बाद से ही एल.आे.सी. और एल.ए.सी. दोनों पर भारत को समान रूप से ही दृृढ़ता का परिचय देना पड़ा है। यद्यपि एल.ए.सी. के मोर्चे पर साढ़े चार दशकों तक गोलियां नहीं चलाई गईं लेकिन भारत हमेशा छुपे हुए खतरे के प्रति सचेत था। वास्तव में, चीन और पाकिस्तान का कुटिल गठबंधन भारत के लिए ङ्क्षचता का विषय रहा है। पाकिस्तान ने 1963 में चीन को अक्साईचिन घाटी का 750 वर्ग मील का क्षेत्र दे दिया था। 

भारत की तैयारियां
भारतीय राजनीतिक इच्छाशक्ति तो सुधरी ही है, लेकिन हम आज सैन्य शक्ति के रूप से भी पहले से बेहतर हैं। हमारे पास विश्व की सबसे जांबाज और नैतिकता सम्पन्न सैन्य शक्ति है। लद्दाख सैक्टर में आर्मी की तैनाती, पूरे एल.ए.सी. पर वायु सेना और दक्षिण चीन सागर में भारतीय नौसेना की तैनाती पहले कभी नहीं देखी गई थी। इस प्रतिक्रिया के लिए सूक्ष्म योजना बनाई गई है। विश्व स्तरीय मिटियर बी.वी.आर. मिसाइलों से लैस राफेल फाइटर जैट्स का नवीनतम अधिग्रहण, एस-400 मिसाइलों का सौदा और नए स्वदेशी तेजस जेट्स को शामिल करना भारतीय सेनाआें को आधुनिक बनाने के लक्ष्य का ही हिस्सा है। 

एच.एस.टी.डी.वी. (हाइपर सोनिक टैक्नोलॉजी डिमान्स्ट्रेटर व्हीकल), ए.एस.ए.टी. मिसाइल (एंटी-सैटेलाइट मिसाइल),  ‘अस्त्रा’ बी.वी.आर. मिसाइल (स्वदेशी दृृश्य सीमा से बाहर एयर टू एयर मिसाइल), आई.बी.एम.डी.पी. (इंडियन बैलिस्टिक मिसाइल डिफैंस सिस्टम) आदि कुछ तकनीकी उपलब्धियां हैं जिन्होंने देश को दुनिया की अग्रणी शक्ति के रूप में स्थापित किया है। 

चाहे हमारी सैन्य तैयारी हो, विदेशी मामलों के प्रबन्धन में उत्कृष्टता या उपमहाद्वीप केंद्रित उपग्रह प्रणाली हो, चीन की घबराहट और  हैरानी जग जाहिर हो रही है। हमें शांति सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत राष्ट्र बनने की जरूरत है। बंदूक के खिलाफ बंदूक, टैंक के खिलाफ टैंक, लड़ाकू विमान के खिलाफ लड़ाकू विमान और मिसाइल के खिलाफ मिसाइल हमारी युद्ध शुरू करने की रणनीति नहीं है, बल्कि आक्रमणकारियों को यह एहसास कराने के लिए है कि अगर हमारे खिलाफ युद्ध हुआ तो हम दुश्मन को तबाह कर देंगे। 

भविष्य की राह
हालांकि हमें शांति के लिए प्रयास करना चाहिए, हमें एक राष्ट्र के रूप में असावधान भी नहीं रहना चाहिए। हम बिना तैयारी के नहीं रह सकते। हमें आज चीनी व्यवहार को समझने की जरूरत है। क्या यह चीन की सेना है जो इसे वैश्विक प्रभुत्व प्रदान करती है या यह इसका आॢथक एकाधिकार है? बिना कोई नुक्सान उठाए हम चीन को झुकने के लिए कैसे मजबूर कर सकते हैं? 

हिमाचल प्रदेश का सामरिक महत्व
हिमाचल की सीमा चीनी कब्जे वाले स्वायत्त क्षेत्र तिब्बत के साथ लगती है और हमें चीनी योजनाआें से निपटने के लिए राष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा बनने की आवश्यकता है। महामहिम दलाई लामा हिमाचल के धर्मशाला में रहते हैं और निर्वासित तिब्बती सरकार यहां से कार्य करती है। राज्य सरकार ने पहले ही केंद्र से लाहौल-स्पीति और किन्नौर के सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा उपायों को बढ़ाने को लेकर आग्रह करने की पहल की है। सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य तन्त्र की त्वरित तैनाती में सहायता के लिए सभी मौजूदा आधारभूत संरचनाआें की परियोजनाआें को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। 

हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में, मैंने सीमावर्ती गांवों की स्थिति का जायजा लिया, और पुलिस अधीक्षकों को इन क्षेत्रों का नियमित दौरा करने के निर्देश दिए। मैंने केंद्रीय मंत्रियों को इन क्षेत्रों में बड़े आधारभूत संरचनाओं और विकास परियोजनाआें को शुरू करने के लिए भी लिखा है ताकि हम बेहतर तरीके से तैयारी रख सकें।-बंडारू दत्तात्रेय(राज्यपाल हिमाचल प्रदेश)

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