कोरोना से बदलते ‘रिश्ते’

Edited By ,Updated: 06 Jul, 2020 02:45 AM

changing relationship with corona

जब से विश्व में कोरोना वायरस का कहर तेज गति से प्रभावित करने लगा है तब से एक अप्रत्याशित भय सभी के मन में समा गया है और सबसे ज्यादा इसका प्रतिकूल प्रभाव आपसी रिश्तों पर पड़ा है। अब एक दूसरे से मिलना-जुलना तो बंद हुआ ही, एक दूसरे के दिए सामान पर भी...

जब से विश्व में कोरोना वायरस का कहर तेज गति से प्रभावित करने लगा है तब से एक अप्रत्याशित भय सभी के मन में समा गया है और सबसे ज्यादा इसका प्रतिकूल प्रभाव आपसी रिश्तों पर पड़ा है। अब एक दूसरे से मिलना-जुलना तो बंद हुआ ही, एक दूसरे के दिए सामान पर भी भयात्मक संदेह समा गया। इसका असर इबादत से लेकर सामाजिक हर गतिविधियों पर पड़ा। 

सेवानिवृत्त मधुसूदन को अपने 70 वर्षीय जीवन काल के अंतिम क्षण तक भी इस तरह के वायरस से पाला नहीं पड़ा न उसे इस तरह के वायरस के बारे में पहले कभी भी अपने घर वालों के बुजुर्गों से सुनने को मिला हो।  जब से देश भर में लॉकडाऊन का दौर शुरू हुआ है तब से वह अपने घर में कैद है। उम्र ज्यादा होने के कारण उसके परिवार वाले घर से बाहर निकलने की बिल्कुल इजाजत नहीं देते। 

लॉकडाऊन शुरू होने से पहले बाहर से फल, सब्जी, दूध आदि घरेलू उपयोग की हर बस्तुएं  स्थानीय बाजार से स्वयं ही वे लाते, सुबह-सुबह घर के बाहर सड़क पर चहलकदमी भी कर लेते, बगल के पार्क का भी आनन्द ले लेते पर जब से लॉकडाऊन शुरू हो गया तब से बेटा ही सब कुछ बाहर से लाने लगा है। पार्क में जाना एवं सड़क पर मॉर्निंग वॉक करना अब सब कुछ बंद हो गया है। घर का अधिकांश सामान तो ऑनलाइन ही बुक हो जाता है। वे बड़े घ्यान से देखते हैं कि सामान लाने वाला पैकेट घर के दरवाजे पर ही रखकर चला जाता है फिर वह सामान घर के एक कोने में रख दिया जाता है जिसे कम से कम तीन दिन तक छूने की इजाजत किसी को नहीं होती। यह सब देखकर वे मन ही मन  इस विकट समय का आकलन करने लगते एवं अप्रत्याशित भय से ग्रसित होकर घर के एक कोने में दुबककर प्रभु से इस तरह की आई विपदा से शीघ्र मुक्ति हेतु प्रार्थना करने लग जाते। 

मधुसूदन को कोरोना वायरस से पूर्व के दिन बार-बार याद आते ,जब किसी भी तरह का प्रतिबंध नहीं था। तब वे आराम से सुबह-शाम  सड़क पर टहलते, पार्क में घंटों अपने बचपन के दोस्त रामबदन से बतियाते। उसके घर कोई नई चीज बनती तो बड़े प्रेम से दोनों उसका रसास्वादन करते। मधुसूदन भी रामबदन की तरह अपने घर बने मिष्ठान, तो कभी पकवान तो कभी पकौड़े उसके घर दे आता। न कोई भय, न कोई भेद भाव, केवल प्रेम। और आज सब कुछ कोरोना के भय से खत्म हो गया। न वह रामबदन के यहां जा सकता न रामबदन मधुसूदन के घर आ सकता। 

इस तरह के हालात लॉकडाऊन खुलने के दूसरे चरण के बाद भी देश के अधिकांश शहरों के बने हुए हैं जहां कोरोना संक्रमण की बढ़ती दर ने मधुसूदन एवं रामबदन जैसे अनेक के मन को इतना भयभीत कर डाला है कि एक-दूसरे से मिलने में सभी डरते हैं। कोरोना ने हमारे मधुर रिश्तों पर बड़ा ही प्रतिकूल प्रभाव डाला है जिससे आज सभी के रिश्ते बदले- बदले आने लगे हैं।-डा. भरत मिश्र प्राची
 

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