‘न्याय बांटने’ वाले न्यायाधीशों की जय-जयकार हो

Edited By ,Updated: 29 Aug, 2020 02:20 AM

cheer the judges who  share justice

क्या पाठकों ने न्यायाधीश टी.एस. नलावड़े, न्यायाधीश एम.जी. सेवलीकर के बारे में सुना है? ये दोनों बाम्बे हाईकोर्ट के औरंगाबाद बैंच के न्यायाधीश हैं। एक खंडपीठ के तौर पर उन्होंने मोदी सरकार की इस वर्ष के शुरू में दिल्ली में आयोजित तब्लीग-ए-जमात के मरकज...

क्या पाठकों ने न्यायाधीश टी.एस. नलावड़े, न्यायाधीश एम.जी. सेवलीकर के बारे में सुना है? ये दोनों बाम्बे हाईकोर्ट के औरंगाबाद बैंच के न्यायाधीश हैं। एक खंडपीठ के तौर पर उन्होंने मोदी सरकार की इस वर्ष के शुरू में दिल्ली में आयोजित तब्लीग-ए-जमात के मरकज में शामिल होने वाले मुस्लिम मौलवियों को लेकर तीखी टिप्पणी की। 

अफ्रीका तथा पूर्वी एशिया के 29 मौलवियों ने आपराधिक आरोपों से राहत पाने के लिए न्यायालय का रुख किया था। यह आरोप उन पर केंद्रीय प्रवर्तन एजैंसियों में से एक ने लगाया था। डिवीजन बैंच ने आरोपों को खत्म कर दिया तथा सरकार को आरोपियों को बेवजह परेशान करने से मुक्त करने का आदेश दिया। न्यायाधीशों ने पाया कि मौलवियों ने वीजा नियमों का कोई भी उल्लंघन नहीं किया है। जैसा कि सरकार ने उन पर मुख्य आरोप लगाया था। भारत में अपने डेरा डालने के दौरान मस्जिदों में ठहरना तथा अपने रिवाजों के अनुसार नमाज अदा करना किसी भी सोच में गैर-कानूनी नहीं है। 

कुछ माह पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव ने लगातार 2 दिन तब्लीग तथा मरकज में शामिल होने वालों पर आरोप लगाया कि वे देश में कोरोना वायरस के मुख्य पैरोकार हैं। यह बयान एक अनुभूति पर आधारित था तथा यह अनुभूति पूरे समुदाय के खिलाफ स्वाभाविक रूप से पक्षपातपूर्ण थी। मैंने अपने पहले के आलेखों में यह सवाल उठाया था कि इस आरोप को प्रमाणित करने के लिए कोई भी प्रयोगसिद्ध प्रमाण नहीं है। न्यायाधीश नलावड़े तथा सेवलीकर ने इन्हीं लाइनों पर ही व्यवस्था दी। 

इन दोनों न्यायाधीशों को लेकर सबसे ज्यादा बात जो मुझे प्रभावित कर पाई, वह उनकी व्यवस्थाएं नहीं थीं बल्कि उन व्यवस्थाओं का सार था। तथ्य यह है कि उच्च न्यायालयों में ऐसे भी न्यायाधीश हैं जो पक्षपात को बिखेरने से नहीं डरते। गुजरात में भी जोकि मोदी जी तथा अमित जी का गृह राज्य है, मुख्य न्यायाधीश विक्रमनाथ ने न्यायाधीश जे.बी.  पारदीवाला के साथ एक खंडपीठ के तौर पर गुजरात सरकार के जगन्नाथ यात्रा की अनुमति देने के आग्रह को ठुकरा दिया और इस पर टिप्पणी की कि धर्म से ज्यादा स्वास्थ्य के लिए विकल्प तलाशना अनिवार्य है। 

दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश मुरलीधर ऐसी ही बातों के लिए जाने जाते हैं। जब उन्हें सत्ताधारी पार्टी के लिए प्रतिकूल आदेश देने की आशा से एक दिन पूर्व पंजाब तथा हरियाणा हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया। लगभग सारी बार एसो. ने उनको विदाई दी। न्याय में भरोसा रखने वालों के लिए बार एसो. का यह कदम उन्हें सुविधा देने वाला था। हमारे देश में अभी भी अक्लमंदी तथा न्याय के लिए उम्मीद है। ऐसे न्यायाधीशों ने रिटायरमैंट के बाद के पदों जोकि सरकार लगातार उनके समक्ष रखती है, को सिरे से नकार दिया। ऐसे लुभावने पदों को नकारना आसान नहीं होता। अच्छे सांचे में ढले व्यक्ति ही ऐसी बातों से गुरेज करते हैं। 

आखिर न्यायाधीश कैसे चुने जाते हैं? जो बार से सीधे चुने जाते हैं उनका निरीक्षण इंटैलीजैंस ब्यूरो द्वारा किया जाता है। सरकार भी निजी तौर पर जांच-पड़ताल करती है। मैं जब पंजाब के गवर्नर सिद्धार्थ शंकर रे का सलाहकार था तथा गृह विभाग भी संभाल रहा था, तब रे ने मुझे बाम्बे हाईकोर्ट के एक विशेष जज के बारे में टिप्पणी करने के लिए कहा। मैं उस जज को लॉ कालेज के दिनों से ही जानता था। वह एक शानदार छात्र थे और खंडपीठ की एक खास सम्पत्ति थे। वह भटक गए थे, यह बात मैं जानता था और उसका कारण भी मुझे मालूम था। रे के साथ इस ज्ञान को बांटने के लिए मैं सुखद महसूस नहीं कर रहा था। मगर क्योंकि मुझे ऐसा करने के लिए कहा गया तो मेरे पास कोई विकल्प नहीं था और मुझे सच्चाई बतानी थी। 

पंजाब तथा हरियाणा हाईकोर्ट के एक अन्य जज ने मुझसे कहा कि यदि उनकी उच्च पद पाने के लिए अनदेखी की गई तो वह सरकार के खिलाफ निर्णय दे देंगे। जिस तरह से मुझे इसके बारे में सूचित किया गया, मैं पागलपन के साथ स्तब्ध रह गया। मगर मैंने यह संदेश गवर्नर रे को भेज दिया। दूसरी बार मैं तब स्तब्ध रह गया जब मैंने पाया कि धमकी ने अपना कार्य कर दिया है। जब वह फाइल राज्य की राय जानने के लिए मेरे डैस्क पर आई मैंने उसके पक्ष में विचार कर दिया क्योंकि 2 अनुभवों से मेरा मोहभंग हो गया था, ऐसा सिस्टम जो अस्पष्ट था। 

मैं मानता हूं कि यहां पर चयन का कोई एक सही, सरल सिस्टम कभी भी नहीं होगा। कोलेजियम की भी समय-समय पर आलोचना होती रही। इंसान से गलतियां होती हैं और यदि गलतियां की जाती हैं तो माननीय न्यायाधीशों को रोष व्यक्त नहीं करना चाहिए। प्रशांत भूषण के मामले में ऐसी गलतियों को पब्लिक के संज्ञान में लाना चाहिए। सुप्रीमकोर्ट द्वारा प्रशांत को अवमानना मामले में आरोपी ठहराने से उन्हें एक राष्ट्रीय हीरो बना दिया गया है। 

प्रशांत के खिलाफ अवमानना मामले में तीन जजों के बैंच ने असीधे तौर पर उन्हें सजा के लिए धमकाया जब तक कि वह माफी न मांग लें। बेशक उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रशांत के लिए यह एक जीतने की स्थिति थी। माननीय न्यायाधीशों को अमरीकी लेखक मारियो पूजो की किताब ‘द गॉड फादर’ जरूर पढऩी चाहिए। यदि उन्होंने ऐसा किया होता तो उन्होंने धमकी न दी होती। 

अपने पिता की तरह प्रशांत भूषण किसी भी अन्याय के लिए प्रतिकूल हैं। यहां पर ऐसे कई व्यक्ति होंद में हैं। मगर बाप-बेटे की यह जोड़ी सभी डरों को एक छोर पर छोड़ देती है तथा लहरों में तैरना जानती है। वह लोगों के अधिकारों के लिए लड़ते हैं। न्यायालय को बचाने के लिए प्रशांत भूषण अपना सही देने के लिए कभी भी असफल नहीं होते जिसके साथ वह दशकों से जुड़े हैं। एक उलझे हुए समाज की नजरों में प्रशांत भूषण अंधेरे में एक प्रकाश स्तम्भ की तरह हैं। ऐसे ही दो अन्य पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी अरुणा राय तथा हर्ष मंदर हैं।-(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!