भारत से नहीं उलझना चाहता चीन, अपना ध्यान दक्षिण-पूर्वी एशिया पर लगाया

Edited By ,Updated: 17 Jun, 2022 06:19 AM

china does not want to mess with india

चीन ने अपना ध्यान दक्षिण एशिया से हटाकर दक्षिण-पूर्वी एशिया पर लगाना शुरू कर दिया है। दरअसल चीन पहले भारत को घेरने के लिए इसके पड़ोसियों को अपने पाले में करना चाहता था, इसके

चीन ने अपना ध्यान दक्षिण एशिया से हटाकर दक्षिण-पूर्वी एशिया पर लगाना शुरू कर दिया है। दरअसल चीन पहले भारत को घेरने के लिए इसके पड़ोसियों को अपने पाले में करना चाहता था, इसके लिए उसने इन देशों में अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना बी.आर.आई. के तहत भारी निवेश भी किया। इस बहाने चीन ने नेपाल, बंगलादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव्स और अफगानिस्तान में कई बड़ी परियोजनाएं भी चलाईं, लेकिन भारी खर्च के बावजूद जब चीन को इन देशों में किए गए निवेश का समय पर कोई आॢथक लाभ नहीं मिला तो उसने अपना ध्यान इस ओर से हटा लिया। 

ऐसा नहीं है कि चीन को सिर्फ आर्थिक नुक्सान हो रहा था, जो चीन ने दक्षिण एशिया से अपना ध्यान हटाया। चीन ने पहले श्रीलंका और पाकिस्तान  के राजनीतिज्ञों को रिश्वत देकर अपनी तरफ मिलाया, फिर इन देशों में भारी निवेश किया। जितने कर्ज की इन्हें जरूरत थी, चीन ने दिया, लेकिन ऊंची ब्याज दरों पर। कर्ज की शर्तें पारदर्शी नहीं थीं, इस वजह से ये देश चीन के कर्ज जाल में फंस गए। उस समय चीन ने इन देशों के बंदरगाह, ग्वादर और हम्बनटोटा को 99 वर्ष के लिए पट्टे पर ले लिया। 

इसके चलते इन देशों में चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होने लगे, जिस कारण चीनी परियोजनाओं का यहां चलना मुश्किल हो गया। पाकिस्तान और श्रीलंका में लोगों को पता चल गया कि चीन उन्हें तरक्की का झांसा देकर उन्हें लूटने आया है। नेपाल और बंगलादेश में भी चीन को लेकर लोगों में भारी गुस्सा है। नेपाल में भी चीनियों और नेपालियों के बीच छिटपुट झड़पें हो चुकी हैं।  

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने बताया कि दक्षिण एशियाई देश आॢथक बदहाली में हैं, इसलिए चीन अब इस क्षेत्र में पहले जैसी दिलचस्पी नहीं ले रहा। श्रीलंका चीन से डेढ़ अरब डॉलर का ऋण नहीं ले सका। जब श्रीलंका ने चीन से जरूरी सामान खरीदने के लिए एक अरब डॉलर के ऋण की मांग की तो उन्हें चीन से ये सुनने को मिला कि चीन श्रीलंका की मदद करेगा लेकिन उसे ये पसंद नहीं है कि पुराना कर्ज चुकाने के लिए कोई नया कर्जा ले। यानी चीन ने श्रीलंका की मदद तो नहीं की, बल्कि उसे हिकारत भरा एक संदेश जरूर सुना दिया और उसे उसकी औकात याद दिला दी। 

दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में फिलीपींस, वियतनाम, कम्बोडिया आते हैं और चीन का ध्यान अफ्रीका की तरफ भी है। चीन का ध्यान पाकिस्तान की तरफ से भी हट गया है। इसके साथ ही चीन ने जितनी परियोजनाओं में पैसा लगाया था वह भी अब पाकिस्तान में नहीं आ रहा। ऐसा लगता है कि चीन को जो कुछ हासिल करना था वह उसने इस पूरे क्षेत्र से हासिल कर लिया है और अब वह नए चारागाह की तलाश में दक्षिण-पूर्वी एशिया और खनिजों से भरे अफ्रीकी महाद्वीप का रुख कर रहा है। हालांकि अफ्रीका में भी चीन की राह आसान नहीं दिखाई पड़ती, वहां पर भी लोग चीन की लूट-खसूट से अच्छी तरह वाकिफ हैं और वहां की जनता भी चीन के विरोध में है। 

जहां चीन ने श्रीलंका के सामने यह कहते हुए चारा फैंका है कि वह श्रीलंका की मदद के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से बात जरूर करेगा, वहीं राजपक्षे अमरीका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया से भी मदद मांगने पर विचार कर रहे हैं। क्वॉड देशों से मदद मांगना चीन को परेशान कर सकता है क्योंकि यहां पर चीन अकेला है और 4 देशों का गठजोड़ अगर श्रीलंका की मदद करेगा तो चीन को श्रीलंका के अंदर काम करने में परेशानी हो सकती है। वहीं चीन ने श्रीलंका के क्वॉड देशों के पास मदद के लिए जाने पर खुद ही श्रीलंका को थोड़ी राहत देते हुए कहा है कि वह आराम से चीन का ऋण लौटा सकता है। 

गोटाबाया ने कहा कि भारत ने श्रीलंका की इस मुश्किल घड़ी में बहुत मदद की और उनके देश को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण दिलवाने के लिए मदद करने हेतु भारत से आग्रह किया। इस समय श्रीलंका अपनी हालत सुधारने के लिए हर ओर हाथ-पांव मार रहा है, भारत को पत्र लिख रहा है और खाड़ी देशों से आग्रह कर रहा है कि श्रीलंका को तेल की सप्लाई जारी रखी जाए, ताकि वहां हालात सामान्य होने में मदद मिले। ऐसे में अब श्रीलंका को समझ में आ रहा है कि चीन उसका दोस्त नहीं है, पड़ोसी देश भारत ही उसका सच्चा हितैषी है। 

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