अजहर मामले में भारत का समर्थन कर पाक को नाराज नहीं करना चाहता चीन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Nov, 2017 01:52 AM

china does not want to upset pakistan by supporting india in azhar case

चीन जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर को एक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के रास्ते में सफलतापूर्वक रोड़ा अटका रहा है। संसद तथा पठानकोट एयरबेस सहित कई आतंकवादी गतिविधियों में उसकी भूमिका सर्वविदित है। अमरीका, फ्रांस तथा ब्रिटेन द्वारा बढ़ाया गया...

चीन जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर को एक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के रास्ते में सफलतापूर्वक रोड़ा अटका रहा है। संसद तथा पठानकोट एयरबेस सहित कई आतंकवादी गतिविधियों में उसकी भूमिका सर्वविदित है। अमरीका, फ्रांस तथा ब्रिटेन द्वारा बढ़ाया गया अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव, जिसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 15 सदस्य देशों में से 14 का समर्थन हासिल है, को चीन बार-बार वीटो करता रहा है। सुरक्षा परिषद नियमों के अनुसार परिषद का कोई भी स्थायी सदस्य किसी भी प्रस्ताव को वीटो कर सकता है। 

परिषद के अन्य सभी 14 सदस्य अजहर को प्रतिबंधित सूची में डालने के भारत के प्रयासों का समर्थन करते हैं जिससे उसकी सम्पत्तियां जब्त हो जाएंगी तथा अंतर्राष्ट्रीय यात्रा पर प्रतिबंध लगेगा। स्पष्ट तौर पर चीन अपने परम मित्र पाकिस्तान को नाराज नहीं करना चाहता। वह दलाई लामा को शरण तथा सुरक्षा देने के लिए भी भारत से नाखुश है, जिन्हें वह अपने लिए ‘विनाशकारी’ मानता है जो तिब्बत के लिए स्वायत्त दर्जे की मांग कर रहे हैं। मजे की बात यह है कि हालिया ब्रिक्स सम्मिट को संबोधित करते हुए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सदस्य देशों से हर तरह के आतंकवाद से लडऩे के लिए एक ‘समग्र विचारधारा’ अपनाने और इसके ‘लक्षणों तथा मूल कारणों’ के समाधान का आह्वान किया  ताकि आतंकवादियों को छिपने की कोई जगह न मिले। 

उनकी यह टिप्पणी अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की चीन के करीबी सहयोगी पाकिस्तान को आतंकवादियों के लिए उपलब्ध करवाए जा रहे सुरक्षित ठिकानों हेतु लगाई गई फटकार के कुछ दिनों बाद आई। भारत भी चीन को आतंकवाद की आलोचना करने तथा इस बुराई के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने को कह रहा है। मजे की बात यह भी है कि कुछ वर्ष पूर्व एक अन्य आतंकवादी, गैर-कानूनी जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज सईद ने चीन के लोगों को इस्लाम से सतर्क रहने की जिनपिंग की टिप्पणी की आलोचना की। चीनी राष्ट्रपति ने अपने देश के लोगों से इस्लाम से दूर रहने तथा राज्य समॢथत ‘माक्र्सवादी नास्तिकता’ की नीति से जुड़े रहने को कहा था।

उन्होंने उन्हें पाकिस्तान की सीमा से लगते शिनजियांग प्रांत में इस्लामिक प्रभाव को रोकने के लिए हलाल उत्पादों जैसी इस्लामिक प्रथाओं से दूर रहने को कहा। हाफिज सईद ने कहा था कि ऐसी टिप्पणियां करके चीन पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को नुक्सान पहुंचा रहा है। शी जिनपिंग अपनी पार्टी के पुन: महासचिव चुने जाने तथा इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रपति बनाए जाने से और भी मजबूत होकर उभरे हैं। दरअसल उन्हें उतना ही ताकतवर माना जा रहा है जितने अपनी सत्ता के चरम पर माओ जेडोंग तथा डेंग शिआओपिंग थे। आशा की जाती है कि वह एक लंबे समय तक अपने देश के भाग्य का मार्गदर्शन करेंगे। उन्होंने अपना संकल्प स्पष्ट किया कि ‘‘चीन अपनी ताकत फिर से हासिल करने तथा 2050 तक विश्व में शीर्ष पर पहुंचने के लिए तैयार है।’’ उनकी स्थिति की मजबूती का भारत  पर सीधा असर पड़ता है। अपने पुनर्चुनाव से पहले उन्होंने बहुत सतर्कतापूर्वक डोकलाम विवाद को योजनाबद्ध तरीके से सुलझा लिया और भारत के साथ सीमा विवाद पर अपने रुख को और कड़ा कर लिया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबंधों में नरमी लाने के प्रयासों के बावजूद जिनपिंग कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे। दरअसल उनकी नजर संभवत: 2019 पर है क्योंकि भारत में एक शक्तिशाली नेता चीन के हित में नहीं है। और 5 वर्षों के कार्यकाल की गारंटी होने तथा उससे भी आगे शासन करने की संभावना के चलते शायद वह भारत के साथ संबंध सुधारने के बेहतर प्रयास कर सकें। दोनों देश पारस्परिक सहयोग तथा व्यापार से लाभ उठाना चाहते हैं। फिलहाल व्यापार का संतुलन चीन के पक्ष में काफी झुका हुआ है। इसलिए अपनी ताकत के समक्ष कोई चुनौती न होने के चलते यह उनकी जिम्मेदारी बन जाती है कि उनका देश आतंकवाद को खत्म करने के प्रयासों में शामिल हो। 

जैसा कि इसके पड़ोसी तथा अच्छे मित्र पाकिस्तान से सीखा जा सकता है, आतंकवादियों को सुरक्षा देना तथा अन्य देश के खिलाफ उनका इस्तेमाल करना उलटा पड़ सकता है। पाकिस्तान भी अब आतंकवाद की आंच झेल रहा है जिसे उसने फलने-फूलने में मदद की और भारत से ‘बदला’ लेने के लिए उन्हें खुलकर सहायता दी। आतंकवाद एक खतरा है जिसने शक्तिशाली अमरीका सहित अधिकांश देशों पर अपना विपरीत असर डाला है। यदि पेइङ्क्षचग यह सोचता है कि आवाज उठाने वालों के खिलाफ अपनी शक्तिशाली नीतियों के कारण वह बचा रह सकता है तो उसे इसकी एक बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।-विपिन पब्बी
 

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