‘विवादित क्षेत्रों’ से बाहर निकलने की ‘रणनीति’ पर अमल करे चीन

Edited By ,Updated: 20 Sep, 2020 05:19 AM

china to implement  strategy  to get out of disputed areas

लद्दाख में जिस तरह से भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने हैं उससे साफ है कि एक, एल.ए.सी. पर संघर्ष लंबे समय तक चलेगा। दो, युद्ध के हालात भी संभव हंै। लेकिन चीन की तो रणनीति ही रही है कि बिना लड़े ही युद्ध जीत लिया जाए। उधर भारत भी युद्ध नहीं चाहता...

लद्दाख में जिस तरह से भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने हैं उससे साफ है कि एक, एल.ए.सी. पर संघर्ष लंबे समय तक चलेगा। दो, युद्ध के हालात भी संभव हंै। लेकिन चीन की तो रणनीति ही रही है कि बिना लड़े ही युद्ध जीत लिया जाए। उधर भारत भी युद्ध नहीं चाहता। तो ऐसे में क्या कोई तीसरा रास्ता बचता है। जानकारों के अनुसार तीसरा रास्ता जरूर बचता है और वह है कि चीन लद्दाख के विवादित क्षेत्रों से बाहर निकलने की (एग्जिट) रणनीति  पर अमल करे। 

ऐसा इसलिए क्योंकि भारत ने बड़ी चतुराई से गेंद चीन के पाले में सरका दी है। चीन अंदर ही अंदर मान चुका है कि उसने गलती की, भारतीय सेना से ऐसे जवाब की उम्मीद उसे नहीं थी, चीन 1962 के दौर से उबर नहीं पाया है, नरम विदेश मंत्री और गर्म रक्षामंत्री ने चीन को उलझा दिया है, भारत ने उत्तरी पैंगोंग झील में अपनी स्थिति पहले से बेहतर कर ली है, दक्षिण पैंगोंग में भारत ने ऊंचाइयों पर कब्जा कर चीन की चाल चित्त कर दी है। ऐसे में चीन के लिए पीछे हटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। 

चीन को बातचीत का माहौल बनाना होगा। उधर कुछ जानकार कहते हैं कि चीन अब पाकिस्तान को बढ़ावा  देगा कि वह भी भारत के खिलाफ मोर्चा खोले, दक्षिण चीन सागर में चीन सैन्य हरकतें तेज करेगा, अमरीका में चुनाव खत्म होने का इंतजार करेगा, आस्ट्रेलिया और जापान के साथ भारत ने जो नया संगठन बनाया है उसके कमजोर होने की दुआ करेगा और इन सबकी आड़ में भारत से बातचीत की गुंजाइश निकालेगा ताकि सम्मानजनक विदाई कर सके। 

भारत और चीन के सैनिकों के बीच दो तरह की बात दिखती है। एक हम जो चाहेंगे वह करेंगे। हमें कोई रोकने वाला नहीं है, टोकने वाला नहीं है। दो, दोनों सेनाओं को एक-दूसरे पर कतई विश्वास नहीं है। भारत तो दूध का छला हुआ है। पिछले दो महीनों से भारत चीनी सेना के पीछे हटने का इंतजार कर रहा था। चीन ने ऐसा भरोसा दिलाया भी था। लेकिन चीन ने जब ऐसा नहीं किया और उल्टे दक्षिणी हिस्से की तरफ भी बढऩे की कोशिश की तो भारतीय सेना समझ गई कि अब समझाने की जगह रणनीति अपनाने की जरूरत है। 

अब चीन को सबक सिखाने की जरूरत है। भारत ने ऐसा कर दिखाया है। अब हालत यह है कि जो पक्ष बातचीत की पहल करेगा वह कमजोर माना जाएगा। लेकिन चीन को भारत ने उस स्थिति में पहुंचा दिया है कि वह बातचीत की पहल करे। चीन भी चाहता है कि बातचीत हो लेकिन उसे कमजोर न समझा जाए ताकि दुनिया को लगे कि चीन पीछे हट रहा है तो किसी सम्मानजनक समझौते के तहत ही हट रहा है। सेना के पूर्व कमांडरों का कहना है कि चीन की सेना 1962 के युद्ध से उबर नहीं पाई है। कुछ कमांडर याद दिलाते हैं कि कैसे बार्डर पर बातचीत के दौरान चीन के सैन्य अधिकारी बार-बार 1962 का जिक्र करना नहीं भूलते थे लेकिन तब से अब तक बहुत पानी बह चुका है। 

भारत ऊंचाइयों पर लड़ाई करने में सक्षम है। भारत ठंड के दिनों में बर्फ में रहने में सक्षम है। आखिरकार 1985 में सियाचिन पर कब्जे के बाद  भारत ने वह इलाका एक पल के लिए भी खाली नहीं किया है। भारत की सेना में नया आत्मविश्वास है। नए उपकरण हैं। हथियार हैं। रसद पहुंचाने वाले हैलीकाप्टर हैं। वायुसेना का पूरा साथ है। खास बात है कि भारत के सैनिक लगातार लड़ते ही रहे हैं। कभी पाक सेना से तो कभी आतंकवादियों से। पहाड़ी दुर्गम इलाकों में दिन गुजारने से लेकर गोली चलाने का खूब अभ्यास भारतीय सेना को है। जबकि चीन इस मामले में गोल है। उसकी सेना ने दशकों से किसी भी बार्डर पर गोली नहीं चलाई है (इक्का दुक्का वारदातों को छोड़कर)। 

एक अन्य जरूरी बात है कि भारत ने प्रोटोकाल को लेकर रणनीति बदली तो नहीं है लेकिन उसे लचीला जरूर बनाया है। आपको याद होगा कि कारगिल की लड़ाई में पाक सेना हमारे ही छोड़े बंकरों में थी, ऊंचाई पर थी और भारतीय सेना उसके निशाने पर थी। तब भारत चाहता तो नियंत्रण रेखा पार कर सकता था। तब सेना के कुछ अफसरों का कहना था कि भारत को एल.ओ.सी. क्रास करनी चाहिए। यहां तक कि वहां जाकर वायुसेना के माध्यम से बमबारी करनी चाहिए। भारत अगर ऐसा करता तो कारगिल युद्ध हफ्ते भर में खत्म हो जाता। 500 सैनिकों को शहीद नहीं होना पड़ता लेकिन तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इससे सहमत नहीं हुए थे। वह विश्व जनमत को हमारे खिलाफ नहीं करना चाहते थे। भारत चीन के साथ भी ऐसा करता आया था लेकिन अब नहीं कर रहा। 

दक्षिण पैंगोंग की जिन पहाडिय़ों पर भारत ने तिरंगा लहराया है वहां भारत ने कब्जा नहीं किया है। वहां से चीन की सेना को खदेड़ा भी नहीं है। जहां कोई नहीं था, जहां दोनों का दावा था वहां भारत ने रणनीति के तहत बंकर बनाए हैं ताकि ऊंचाई हासिल की जा सके, ताकि चीन को दबाव में लाया जा सके, ताकि चीन को मजबूर किया जाए कि वह भारत को कमजोर नहीं समझे और पीछे हटने को मजबूर हो जाए। इससें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन पहले ऐसा होता नहीं था। हम बहुत लिहाज कर जाया करते थे अब हमारी सेना ने लिहाज करना छोड़ दिया है। साफ है कि मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना ऐसा हो नहीं सकता था। 

कुछ जानकारों के अनुसार चीन के जिनपिंग का दिमाग कोरोना ने खराब कर दिया। चीन 1949 में आजाद हुआ था, तब संकल्प लिया गया था कि सौ साल में यानी 2049 में चीन दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति होगा लेकिन कोरोना से पीड़ित दुनिया कमजोर हो गई है, थक गई है, बेबस हो गई है ऐसा चीन को लगा और ताइवान से उलझा, हांगकांग में जबरदस्ती की, दक्षिण चीन सागर में दादागिरी दिखाई, बैल्ट एंड रोड के तहत जमीन हड़पने से लेकर आर्थिक जाल में गरीब देशों को फंसाने की कोशिश की, अमरीका को आंखें दिखाईं , भारत से जा उलझा लेकिन चीन के दांव उल्टे पडऩे लगे हैं। खासतौर से भारत ने दिखा दिया है कि दुनिया के दो सबसे ज्यादा आबादी वाले परमाणु हथियारों से लैस देशों में से कोई एक (चीन) दादागिरी दिखाने पर उतरता है तो उससे कैसे निपटा जा सकता है। (शांतिपूर्ण तरीके से, प्रोटोकाल का ध्यान रखते हुए , बातचीत का रास्ता खुला रखते हुए , अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की मर्यादा का पालन करते हुए)।-विजय विद्रोही
 

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