‘तिब्बती भाषा के विरुद्ध है चीन सरकार’

Edited By ,Updated: 03 Feb, 2021 03:46 AM

chinese government is against tibetan language

चीन ने वर्ष 1949 में कम्युनिस्ट चीन के बनने के बाद से ही चरणबद्ध तरीके से हान संस्कृति को छोड़कर बाकी सारी संस्कृतियों को खत्म करने का काम किया है फिर चाहे वह लियाओनिंग प्रांत में रहने वाले मंगोलों की मंगोलियाई भाषा की बात हो, शिनजियांग स्वायत्त...

चीन ने वर्ष 1949 में कम्युनिस्ट चीन के बनने के बाद से ही चरणबद्ध तरीके से हान संस्कृति को छोड़कर बाकी सारी संस्कृतियों को खत्म करने का काम किया है फिर चाहे वह लियाओनिंग प्रांत में रहने वाले मंगोलों की मंगोलियाई भाषा की बात हो, शिनजियांग स्वायत्त प्रांत के उईगर मुसलमानों की बात हो, ‘हुई’ जाति के मुसलमानों या लुओबा जाति के आदिवासियों की संस्कृति हो-सभी को चीन ने पूरी तरह से खत्म करने की कोशिश की है। 

इसी को लेकर विश्व बिरादरी में चीन की बदनामी भी होती रही है, चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर वहां के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तो किया ही, इसके अलावा तिब्बत के वज्रयान शाखा के बौद्ध धर्म का नाश भी किया। इसके साथ-साथ चीन तिब्बतियों की संस्कृति और भाषा भी खत्म करने की कोशिश कर रहा है, बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती बल्कि चीन ने तिब्बत में हान जाति के लोगों को बड़ी संख्या में बसा दिया है जिससे तिब्बत में तिब्बती लोग ही अल्पमत में आ गए हैं। तिब्बतियों के दमन का क्रम चीन के द्वारा लगातार जारी है। 

चीन सरकार के अनुसार वर्ष 2016 में अलगाववाद के आरोप में एक कार्यकत्र्ता को पुलिस हिरासत में लिया गया, ताशी वांगचुक नाम का कार्यकत्र्ता एक डॉक्यूमैंट्री फिल्म में चीन सरकार द्वारा तिब्बती भाषा विरुद्ध दमनकारी रुख अपनाने और तिब्बती भाषा को खत्म करने के बारे में लोगों को बता रहा था। ताशी वांगचुक के बारे में उसके वकील लियांग ने बताया कि इस समय वह ङ्क्षछगहाई प्रांत में अपनी बहन के घर पर रह रहा है लेकिन लियांग ने यह भी बताया कि उन्हें इस बात का शक है कि ताशी वांगचुक पूरी तरह आजाद हैं। 

चीनी प्रशासन ने ताशी पर अलगाववाद का मामला चलाया तो अभियोजकों ने सबूत के रूप में डॉक्यूमैंट्री फिल्म दिखाई जिसमें ताशी वांगचुक अपनी संस्कृति बचाने के लिए काम कर रहे हैं न कि अलगाववाद फैला रहे हैं जैसा कि चीनी प्रशासन ने उन पर आरोप लगाया था। इसके बाद ताशी को वर्ष 2018 में सजा सुनाई गई थी। इस घटना के दो वर्ष पहले ताशी को हिरासत में लिया गया था। इस डॉक्यूमैंट्री में ताशी के बीजिंग तक की यात्रा को दिखाया गया है जहां पर वह चीनी मीडिया और अदालत को यह  बताने का प्रयास कर रहे हैं कि तिब्बत में तिब्बती भाषा को सिलसिलेवार तरीके से खत्म किया जा रहा है। 

ताशी के वकील लियांग श्याओचुन ने ट्विटर पर यह जानकारी दी कि चीनी अधिकारी ताशी को उनके घर ले गए हैं और इस समय ताशी अपनी बहन के परिवार के साथ ङ्क्षछगहाई प्रांत के यूशू शहर में हैं और उनकी सेहत इस समय अच्छी है लेकिन उन्हें इस बारे में शंका है कि ताशी को पूरी तरह चीन सरकार ने आजाद कर दिया है। लियांग ने आगे बताया कि शुक्रवार को शुरूआती बातचीत के बाद वह ताशी और उनके परिवार तक पहुंचने में असफल रहे, उन्हें इस बात का डर है कि कहीं ताशी पर अब भी आधिकारिक तौर पर प्रतिबंध तो नहीं लगा है।

वहीं बीजिंग बड़ी मक्कारी के साथ यह कहता रहा है कि उसने वर्ष 1951 में शांतिपूर्ण तरीके से तिब्बत को आजाद कराया है और इस पिछड़े क्षेत्र में तरक्की के काम कर रहा है। चीनी संविधान अपने नागरिकों को खुलकर बोलने की आजादी नहीं देता, लेकिन चीनी पक्ष के लोगों का कहना है कि ऐसा कहना बीजिंग का सही मूल्यांकन नहीं होगा क्योंकि यह तस्वीर सही नहीं है। वहीं तिब्बती समर्थकों का कहना है कि चीन सरकार ने विचारों की खुली अभिव्यक्ति पर निर्दयता के साथ कुठाराघात किया है।  

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