नागरिकता संशोधन विधेयक और ‘आबादी आक्रमण’

Edited By ,Updated: 11 Dec, 2019 03:34 AM

citizenship amendment bill and  population invasion

नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर भूचाल मचा हुआ है, देश की संसद से लेकर सड़क तक संघर्ष की स्थिति बन गई है और इस विधेयक को मुसलमानों के खिलाफ  करार दिया जा रहा है। क्या यह विधेयक सही में मुसलमानों के खिलाफ है, क्या इस विधेयक से समता के अधिकार का उल्लंघन...

नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर भूचाल मचा हुआ है, देश की संसद से लेकर सड़क तक संघर्ष की स्थिति बन गई है और इस विधेयक को मुसलमानों के खिलाफ  करार दिया जा रहा है। क्या यह विधेयक सही में मुसलमानों के खिलाफ है, क्या इस विधेयक से समता के अधिकार का उल्लंघन होता है, क्या इस विधेयक से भाजपा सरकार अपने हिन्दू वोट बैंक का फिर से एकीकरण करना चाहती है, क्या कांग्रेस भी भाजपा की देखा-देखी अपने मुस्लिम वोट की चिंता में जेहादी भूमिका में खड़ी हुई है, क्या कम्युनिस्ट राजनीतिक पार्टियां भी इस विधेयक को लेकर अपनी हिन्दू विरोधी मानसिकता पर ही कायम हैं?

क्या इस विधेयक से जातिवादी और क्षेत्रीयवादी राजनीतिक पार्टियों के जनाधार में कोई कमी आएगी? क्या यह विधेयक देश में आबादी आक्रमण को रोक पाएगा, क्या यह विधेयक भारत को घुसपैठियों के लिए धर्मशाला समझने की मानसिकता को जमींदोज करेगा, क्या यह विधेयक विदेशी घुसपैठियों को संरक्षण देने वाली सभी मानसिकताओं का समाधान कर पाएगा? क्या नरेन्द्र मोदी सरकार विदेशी घुसपैठियों को देश से बाहर करने की वीरता सुनिश्चित कर पाएगी? क्या नरेन्द्र मोदी सरकार की छवि एक हिन्दू सरकार के तौर पर बन रही है, क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक कट्टरवादी हिन्दू नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं, क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक हिन्दू नेता के रूप में स्थापित होने के खतरे भी देश के सामने हैं, क्या इन खतरों पर कोई गंभीर विचार प्रवाह चल सकता है?

क्या कांग्रेस और ओवैसी की एक ही भाषा कांग्रेस के लिए नुक्सान के संकेत हैं? क्या पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश एक बर्बर और धार्मिक तौर पर असहिष्णुता रखने वाले देश नहीं हैं, क्या पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान में इस्लामिक संविधान नहीं है, क्या इस्लाम के आधार पर पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान में भेदभाव नहीं होता है, इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश में हिन्दुओं, ईसाइयों और अन्य गैर-इस्लामिक धर्मावलम्बियों पर उत्पीडऩ की घटनाएं नहीं होती हैं, इन्हें असहिष्णुता की मजहबी मानसिकताओं का शिकार नहीं बनाया जाता है। नागरिकता संशोधन विधेयक पर विचार करते हुए इन प्रश्नों पर भी विचार करने की जरूरत है। भारतीय अर्थव्यवस्था की कसौटी पर भी विदेशी अवैध घुसपैठियों को क्यों नहीं देखना चाहिए? 

सरकार तथा विरोधियों के अपने-अपने तर्क
नरेन्द्र मोदी सरकार और कांग्रेस सहित सभी विरोधियों के अपने-अपने तर्क हैं पर इन सबके तर्क से जनता कितनी प्रभावित है, राष्ट्र की सुरक्षा और अस्मिता कितनी सुरक्षित है, यह महत्वपूर्ण है। नरेन्द्र मोदी की सरकार क्या कहती है, यह भी देख लीजिए। वह कहती है कि यह विधेयक किसी भी स्थिति में समता मूलक संविधान का उल्लंघन नहीं करता है,  यह विधेयक पूरी तरह से समता मूलक सिद्धांत पर आधारित है। क्या नरेन्द्र मोदी की सरकार के तर्क भी हवा-हवाई हैं।

दुनिया यह जानती है कि इस्लामिक आधार पर शासन वाले देशों में संविधान भी बर्बर होता है, कानून भी बर्बर होता है, मजहबी आधार पर गैर-इस्लामिक धर्मों के लोगों की धार्मिक आजादी लूटी जाती है, जमींदोज की जाती है। निश्चित तौर पर पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बंगलादेश एक घोर और लोमहर्षक रूप से इस्लामिक देश हैं। धर्म के नाम पर पाकिस्तान बना था, भाषा के आधार पर बंगलादेश बना था। पाकिस्तान जब मजहब के आधार पर बना था तब लगभग 20 प्रतिशत आबादी गैर-मुस्लिम थी, लेकिन आज पाकिस्तान के अंदर गैर-मुस्लिम आबादी 2 प्रतिशत तक भी नहीं रही है, अधिकतर लोगों को इस्लाम स्वीकार करने के लिए बाध्य होना पड़ा या फिर भारत जैसे देशों में पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। 

बंगलादेश के निर्माण के समय हिन्दुओं की आबादी लगभग एक तिहाई थी पर आज लगभग 4 प्रतिशत हिन्दू ही वहां बचे हुए हैं, अधिकतर हिन्दू अपनी जान बचाकर भारत भाग कर आ गए। तसलीमा नसरीन की पुस्तक ‘लज्जा’ इसका सबूत है। अफगानिस्तान भी घोर मजहबी और लोमहर्षक मानसिकता वाला देश है जहां पर तालिबान और अलकायदा अल्पसंख्यकों पर कैसी हिंसक मानसिकताएं कायम हो चुके हैं, यह भी जगजाहिर है। 

नागरिक संशोधन विधेयक की सच्चाई क्या है
हमें देखना यह होगा कि जिन हिन्दुओं, ईसाइयों, जैनों, बौद्धों और पारसियों की नागरिकता सुरक्षित करने की बात करता है यह नागरिक संशोधन विधेयक, उसकी सच्चाई क्या है? पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से भाग कर आई हिन्दू, बौद्ध, जैन, ईसाई तथा पारसी आबादी को आबादी आक्रमण के तौर पर नहीं देखा जा सकता है। ये पीड़ित थे और पीड़ित होने के कारण भारत में आए हैं। पाकिस्तान से कई हजार हिन्दू प्रताडऩा से गुजरते हुए भारत आए हैं पर इन्हें नागरिकता का अधिकार नहीं मिला है और न इन्हें संविधान का संरक्षण मिला है। अब नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पास हो गया है तब देश में रह रहे लाखों हिन्दुओं, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता मिलने के अधिकार का संरक्षण होना भी संभव है।

खास कर राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के प्रावधान से असम की स्थिति बहुत ही नाजुक है। कई लाख हिन्दू जो नागरिकता रजिस्टर में आने से वंचित हो गए थे, उन्हें नागरिकता के अधिकार मिलने में सहूलियत होगी। कांग्रेस, कम्युनिस्ट और अन्य जातिवादी-क्षेत्रीयवादी राजनीतिक तबका इस विधेयक को मुस्लिम विरोधी बताने के लिए पूरी तरह से सक्रिय है। क्या देश में पाकिस्तान, अफगानिस्तान या फिर बंगलादेश से अवैध घुसपैठ कर आई मुस्लिम आबादी किसी प्रताडऩा का शिकार हुई है? इस प्रश्न पर राजनीतिक बहस की जरूरत है। सरकार को यह बताना चाहिए कि देश में अवैध रूप से पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से आई कितनी मुस्लिम आबादी रह रही है। कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों और नेताओं को भी यह बताना होगा कि इन देशों से आई मुस्लिम आबादी क्या किसी राजनीतिक  षड्यंत्र का शिकार होकर आने के लिए विवश हुई, क्या किसी राजनीतिक उत्पीडऩ का शिकार होकर भारत में आने के लिए विवश हुई है? 

इस प्रश्न पर कांग्रेस और अन्य समर्थक संवर्ग के पास कौन- सा तर्क होगा? भारत में जो मुस्लिम आबादी पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से आ रही है वह किसी राजनीतिक षड्यंत्र का शिकार होकर नहीं आ रही है, किसी राजनीतिक प्रताडऩा व उत्पीडऩ का शिकार होकर नहीं आ रही है। फिर क्यों और कैसे आ रही है, इस प्रश्न का भी खुलासा होना चाहिए। सही तो यह है कि भारत पर मुस्लिम आबादी आक्रमण जारी है। मुस्लिम आबादी आक्रमण के माध्यम से भारत को एक इस्लामिक मजहबी राज में तबदील करने की एक गहरी साजिश है। भारत का एक बार मजहब के आधार पर बंटवारा हो चुका है। मुसलमानों को आबादी के अनुसार भू-भाग बनाकर दे दिया गया और मजहब के आधार पर पाकिस्तान बना था। देश का बहुसंख्यक वर्ग और देश के बहुसंख्यक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली नरेन्द्र मोदी की सरकार फिर से भारत का बंटवारा नहीं होने देना चाहती है, भारत को एक मजहबी राज में तबदील नहीं होने देना चाहती है, इस तर्क को स्वीकार किया जाना चाहिए।-विष्णु गुप्त 
    

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