हमारे जनप्रतिनिधियों का दामन साफ हो

Edited By ,Updated: 09 Aug, 2022 04:24 AM

clear the arms of our public representatives

भ्रष्टाचार देश की एक बहुत बड़ी समस्या है। आज यह देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा बन गया है। इससे माफिया गिरोहों और आतंकवादियों की जड़ें मजबूत हो रही हैं और हिंसक आंदोलनों को

भ्रष्टाचार देश की एक बहुत बड़ी समस्या है। आज यह देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा बन गया है। इससे माफिया गिरोहों और आतंकवादियों की जड़ें मजबूत हो रही हैं और हिंसक आंदोलनों को बढ़ावा मिल रहा है। भ्रष्टाचार पर तभी लगाम लगाई जा सकती है जब हमारे जनप्रतिनिधियों का दामन साफ हो, इसलिए इसके खिलाफ हरसंभव कार्रवाई की जानी चाहिए। पर विपक्ष के नेता प्रवर्तन निदेशालय अर्थात ई.डी. और सी.बी.आई. की कार्रवाई को लेकर सवाल उठाते रहते हैं। 

उनका कहना है कि भाजपा के नेता क्या दूध के धुले हुए हैं? उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होती है? इस सवाल में दम है। लेकिन भाजपा नेताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए विपक्षी नेताओं को ठोस सबूत के साथ मामले को संसद में उठाना चाहिए। संसद में केवल हंगामा करने से कुछ नहीं होगा। संसद में सच को उजागर कीजिए। देश को बताइए कि आप तथ्यों के आधार पर आरोप लगा रहे हैं। यदि वहां आपकी बात नहीं सुनी जाती है तो इसके लिए आप अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। 

यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं है जब कांग्रेस की मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यू.पी.ए. सरकार के कार्यकाल में भाजपा ने कोयला घोटाले, स्पैक्ट्रम घोटाले, कामनवैल्थ गेम्स घोटाले जैसे कई मामलों को संसद में उठा कर एवं अदालत के जरिए सत्तारूढ़ गठबंधन के कई नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करवाई थी। इसलिए सिर्फ हवा में तीर चलाने से कुछ नहीं होगा। विपक्षी नेताओं को ठोस सबूतों के आधार पर भाजपा नेताओं के भ्रष्टाचार को उजागर करना होगा। 

आज ई.डी. और सी.बी.आई. जिन नेताओंके खिलाफ कार्रवाई कर रही हैं, उनके भ्रष्टाचार के बारे में सारे सबूतों का ब्यौरा अदालत के सामने रखती हैं। उसी आधार पर कई नेता और मंत्री आज जेल के सींखचों के पीछे गए हैं। इसलिए शिवसेना, टी.एम.सी. और कांग्रेस के नेताआें को सड़कों पर धरना प्रदर्शन के बजाय अपने नेताआें की बेगुनाही का सबूत अदालत में पेश करना होगा । यदि वे सही हैं तो उन्हें न्याय मिलेगा। 

सोनिया गांधी और राहुल गांधी का मामला कोर्ट में पहले से ही चल रहा है। वे इस समय जमानत पर हैं। इसलिए सड़कों और संसद में हंगामा करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। इससे उनकी पार्टी की छवि एवं साख और अधिक धूमिल हो रही है। कुछ राजनीतिक दलों के नेता भ्रष्टाचार के खिलाफ इनफोर्समैंट डायरैक्टोरेट /ई.डी. और सैंट्रल ब्यूरो आफ इन्वैस्टिगेशन /सी.बी.आई. की कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं। किंतु भ्रष्टाचार के आरोप किसी पर भी हैं तो उसे डरने की क्या जरूरत है? आरोप बेबुनियाद हैं तो वे अदालत में साबित नहीं हो पाएंगे। फिर निर्दोष साबित होने पर उसकी प्रतिष्ठा और बढ़ जाएगी। 

ई.डी., सी.बी.आई. और आयकर विभाग के अधिकारी जहां-जहां जांच कर रहे हैं, उन्हें वहां से लाखों-करोड़ों की बेहिसाब धनराशि और संपत्तियां मिल रही हैं। फिर किसी को जेल भेजने का अधिकार तो अदालतों के पास ही होता है। अदालत सबूत के आधार पर ही कार्रवाई करती है। फिर कुछ नेता और उनके समर्थक शोर-शराबा और प्रदर्शन कर किसको मूर्ख बना रहे हैं? जाहिर है कई नेताआें के चेहरे पर से पर्दा हट गया है और कुछ के ऊपर से हटने वाला है। इसलिए अब उनकी चोरी जब पकड़ी जा रही है तो वे अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं। ऐसा लगता है कि इस तरह की अराजकता फैलाना उनके चरित्र का हिस्सा बन गया है। 

नैशनल हेराल्ड मामले में ई.डी. की जांच को लेकर कांग्रेस नेताआें की चीख-पुकार यही रेखांकित कर रही है कि वे गांधी परिवार को कानून से ऊपर मानते हैं। स्वयं सोनिया और राहुल गांधी भी ऐसा ही प्रतीत करा रहे हैं। यह एक तरह से खुद को विशिष्ट समझने की सामंती मानसिकता का ही प्रदर्शन है। कांग्रेस इस मानसिकता का परिचय एक लंबे समय से देती चली आ रही है। जैसे कांग्रेस नैशनल हेराल्ड मामले की जांच को लेकर आपत्ति जता रही है, वैसे ही अन्य विपक्षी दल भी। 

बेहतर होगा कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल देश को यह समझाएं कि गांधी परिवार ने नैशनल हेराल्ड की हजारों करोड़ की संपत्ति कैसे हथिया ली। कांग्रेस ने तो इस कानून को लोकतंत्र को क्षति पहुंचाने वाला ही करार दे दिया। आखिर भ्रष्टाचार निरोधक किसी कानून को लोकतंत्र के विरुद्ध कैसे कहा जा सकता है? 

कुछ नौकरशाह तो रिटायरमैंट के बाद जांच से बचने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों में शामिल होकर विधायक और सांसद भी बन गए हैं। अब वह खुद कानून बनाएंगे। अगर कानून बन भी गया तो उसे लागू नहीं होने देंगे। यही कारण है कि कांग्रेस समेत 17 विपक्षी दलों ने एक संयुक्त बयान जारी कर धन शोधन निवारण अधिनियम यानी पी.एम.एल.ए. की संवैधानिकता बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खतरनाक करार देते हुए उसकी समीक्षा की मांग की। इससे एेसा लगता है कि अब वे भ्रटाचार के अधिकार के लिए जंग कर रहे हैं। क्या विपक्षी दल यह कहना चाहते हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में अन्य सबके खिलाफ तो कार्रवाई हो, लेकिन नेताआें को बख्श दिया जाए? 

यदि ऐसा नहीं है तो फिर यह सिद्ध करने की चेष्टा क्यों की जा रही है कि नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच प्रतिशोध की राजनीति अथवा ई.डी. का मनमाना इस्तेमाल है? तमाम उपायों के बाद भी राजनीतिक भ्रष्टाचार जिस तरह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, उसे देखते हुए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि काला धन बटोरने और उसे सफेद करने की कोशिश करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई हो। कोई राजनेता चुनकर आता है और थोड़े दिनों में ही उसके सगे-संबंधी मालदार कैसे बन जाते हैंं? क्या उनके ऊपर लक्ष्मी रातों-रात प्रसन्न हो जाती है।-निरंकार सिंह

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!