केंद्र और राज्यों में टकराव : नौकरशाही पर किसका हो नियंत्रण

Edited By ,Updated: 26 Jan, 2022 07:36 AM

conflict between center and states who has control over the bureaucracy

6.30 बजे दिल्ली के लोदी गार्डन में भारत सरकार की एक कार पहुंचती है। साहब अपने ड्राइवर को निर्देश देते हैं कि वह यहीं रहे। हालांकि वह स्थान स्वयं चालित कारों के लिए निर्धारित

प्रातः 6.30 बजे दिल्ली के लोदी गार्डन में भारत सरकार की एक कार पहुंचती है। साहब अपने ड्राइवर को निर्देश देते हैं कि वह यहीं रहे। हालांकि वह स्थान स्वयं चालित कारों के लिए निर्धारित है। प्रश्न यह भी उठता है कि साहब सड़क पर कुछ कदम पैदल चल कर यहां व्यायाम करने क्यों नहीं आ सकते, विशेषकर तब जब वह लोदी गार्डन से एक कि.मी. से भी कम की दूरी पर लुटियन के बंगले में रहते हैं। स्पष्ट है साहब अपने आप में कानून हैं और वह किसी की परवाह नहीं करते। 

भारत की नौकरशाही के डी.एन.ए. के दर्शन करने के लिए आपका स्वागत है। तथापि पिछले सप्ताह केंद्र सरकार ने आई.ए.एस. नियम 1954 में संशोधन करने का प्रस्ताव किया है, जिसके अंतर्गत सरकार को आई.ए.एस. अधिकारियों की राज्य सरकारों से परामर्श किए बिना लोकहित में केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति करने का अधिकार मिलेगा और यदि राज्य उस अधिकारी को कार्य मुक्त करने से इंकार करता है तो एक निर्धारित समय के भीतर उस अधिकारी को कार्यमुक्त समझा जाएगा और यह अवधि केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी। 

इससे नौकरशाही में हलचल मच गई है और राज्य इसका विरोध कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल, राजस्थान, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल, मेघालय, छत्तीसगढ़, और राजग शासित मध्य प्रदेश तथा बिहार सहित 10 राज्यों ने इसका विरोध किया है और केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वह राज्यों की स्वायत्तता संघीय व्यवस्था पर हमला कर रही है और सहकारी संघवाद की भावना को नुक्सान पहुंचा रही है तथा इस तरह केन्द्र शक्तियों का केन्द्रीयकरण करना चाहती है। शक्तियों के इस तरह केंद्रीयकरण से केन्द्र में सत्तारूढ़ दल के विरुद्ध पाॢटयों की राज्य सरकारों की नीतियों को लागू करने के लिए भी अधिकारियों में भय और हिचकिचाहट रहेगी। 

इस बात का खंडन करते हुए केन्द्र सरकार ने हवाला दिया है कि केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर आने वाले अधिकारियों की सं या में कमी आ रही है, जिनकी सं या 2011 में 309 थी और वर्तमान में 223 है। केन्द्र सरकार का कहना है कि अधिकारियों की नियुक्ति केवल राज्यों से परामर्श कर की जाएगी। इसके अलावा उनकी नियुक्ति हमेशा राज्यों में नहीं की जा सकती, जहां पर सेवाएं अकुशल हैं और केन्द्र और राज्य दोनों में कार्य कर इन अधिकारियों का दृष्टिकोण बढ़ेगा, व्यक्तिगत विकास होगा और अखिल भारतीय सेवा की भावना को आगे बढ़ाएगा। 

नि:संदेह नौकरशाही एक शक्तिशाली लॉबी है। यह इतनी पुरातनपंथी शक्ति है कि इस मामले में राजनेताओं को भी पीछे छोड़ देती है। एक नौकरशाह का कहना है कि नौकरशाह हमारी व्यवस्था में एक अंकुश लगाने का काम करते हैं और यह अंकुश लगाने का काम आज ‘चैक’ में बदल गया है और ‘बैलैंस’ कब का बिगड़ चुका है। हांगकांग की पॉलिटिकल एंड इकोनॉमिक रिस्क कंसल्टैंसी ने हमारी आई.ए.एस. सेवा को सबसे खराब सेवा बताया है और उसे 10 में से 9.21 की रेटिंग दी है जो वियतनाम के 8.54, इंडोनेशिया के 8.37, फिलीपींस की 7.57, चीन की 7.11 से भी खराब है। 

इसके अलावा कुछ नौकरशाह स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में कूद रहे हैं। इस सरकार में भी 4 पूर्व नौकरशाह मंत्री हैं। विदेश मंत्री जयशंकर, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, आवासन और विद्युत मंत्री हरदीप सिंह पुरी, आर.के. सिंह, के.एल. अल्फोंस, पवन वर्मा, अपराजिता सारंगी आदि नौकरशाह केन्द्र में उच्च पदों पर आसीन हैं या रहे हैं। वर्ष 2012 में निर्वाचन आयोग ने सरकार से सिफारिश की थी कि नौकरशाहों के राजनीति में आने के लिए 2 वर्ष का कूलिंग ऑफ पीरियड अनिवार्य कर दिया जाए, ताकि हितों का टकराव न हो किंतु सरकार ने इसे अस्वीकार किया क्योंकि इससे उनकी समानता के अधिकार का हनन हो सकता था। 

विडंबना देखिए कि जहां सरकार अपने को सुदृढ़ और स्थिर के तौर पर प्रस्तुत करती है, शीर्ष नौकरशाही के बारे में कोई स्थिरता नहीं है। सचिवों को कुछ महीनों के भीतर एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय में भेज दिया जाता है। उनके कार्यकाल को यकायक बीच में ही समाप्त कर दिया जाता है तथा कुछ चुनिंदा सेवानिवृत हो रहे अधिकारियों को सेवा विस्तार दिया जाता है। किंतु कोई भी नौकरशाही में दीर्घकालिक सुधारों के बारे में नहीं सोच रहा। 

हैरानी की बात यह है कि 17 मंत्रालयों में पिछले 7 वर्षों में 6-7 सचिव रहे हैं और इतने सचिव बदलने के कारण उनकी सेवानिवृत्ति नहीं रही। ग्रामीण विकास मंत्रालय में 8 सचिव रहे हैं। यही स्थिति स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालय की रही है। कुछ सचिवों को अपने 2 साल के कार्यकाल को पूरा करने से पहले ही स्थानांतरित कर दिया गया। इसके लिए किसे जि मेदार ठहराया जाएगा? 

किंतुु आशा की एक नई किरण है। अपने सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने नौकरशाही में निजी क्षेत्र के लोगों के सीधे प्रवेश की प्रक्रिया शुरू की है। इसके साथ ही सरकार को शीर्ष पदों की सं या भी सीमित करनी चाहिए और अपने प्रिय पात्रों को पद देने के लिए अनावश्यक पदों का सृजन करने से बचना चाहिए। साथ ही सरकार को नेताओं और बाबुओं की सांठगांठ को भी तोडऩे का प्रयास करना चाहिए। समय आ गया है कि राजनेता और नौकरशाह इस निष्क्रियता को छोड़ें और सिद्धांतों के आधार पर अपनी पेशेवरता को पुन: स्थापित करें। 

राजनीतिक कुव्यवस्था में सुधार का एक उपाय यह है कि जीरो टोलरैंस और अमरीका की तरह सनसैट के सिद्धांत को अपनाया जाए। इस विधि में सरकार के कार्यों का औचित्य हर समय जांच के दायरे में रहता है ताकि कोई गलत कार्य न हो सके। प्रश्न उठता है कि क्या बाबुओं में स्वयं में सुधार करने का साहस है? इस बात की संभावना नहीं है क्योंकि भ्रष्टाचार कम जोखिमपूर्ण, अधिक लाभ का क्षेत्र बन चुका है। 

नि:संदेह यदि हमारे राजनेता और नौकरशाह अपने मूल्यों को नहीं बदलते, एक समय आएगा जब वे अप्रासंगिक बन जाएंगे। क्या नौकरशाही इस सबसे ऊपर उठकर कार्य करेगी या वे उस इस्पात के ढांचे पर जंग लगने देंगे और अपने राजनीतिक आका की शह पर एक औसत दर्जे के अधिकारी के रूप में कार्य करते रहेंगे?-पूनम आई. कौशिश

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