‘लद्दाख में टकराव, कौन विजयी होगा’

Edited By ,Updated: 09 Sep, 2020 04:20 AM

confrontation in ladakh who will win

वास्तव में भारत और चीन के संबंध उतार-चढ़ाव पूर्ण हैं और यह इस बात पर निर्भर करता है कि राजनीतिक हवा किस दिशा में बह रही है। वर्तमान में दोनों देश एक-दूसरे के सामने टकराव की मुद्रा में हैं। दोनों अपने-अपने रुख पर कायम हैं कि हमारे मामले में हस्तक्षेप...

वास्तव में भारत और चीन के संबंध उतार-चढ़ाव पूर्ण हैं और यह इस बात पर निर्भर करता है कि राजनीतिक हवा किस दिशा में बह रही है। वर्तमान में दोनों देश एक-दूसरे के सामने टकराव की मुद्रा में हैं। दोनों अपने-अपने रुख पर कायम हैं कि हमारे मामले में हस्तक्षेप न करें। किंतु ताली एक हाथ से नहीं बजती है। 

कल तक भारत भी इस बात को मानता था कि सीमा मुद्दे को और मुद्दों से अलग किया जा सकता है और अन्य द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाया जा सकता है किंतु गलवान टकराव और पूर्वी लद्दाख में फिर से संघर्ष ने चीन की इस धारणा को झुठला दिया है जिसके चलते भारत अब अपनी चीन नीति को पुन: निर्धारित कर रहा है और यह स्पष्ट कर रहा है कि यदि उसे हाशिए पर ले जाने का प्रयास किया जाएगा तो वह प्रतिकार करेगा। 

29-30 अगस्त को भारतीय सेना द्वारा पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी तट पर चीन द्वारा एकपक्षीय ढंग से यथास्थिति को बदलने के प्रयासों को रोकने के लिए अग्रलक्षी कार्रवाई की गई जो यह बताता है कि अब 1962 की तरह चीन हम पर दादागिरी नहीं चला सकता है। इस पर चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिससे लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव बढ़ा। वास्तविक नियंत्रण रेखा के बारे में दोनों देशों की अलग-अलग धारणाएं हैं और यह स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं हैं। 

भारत ने सीमा मुद्दे के मामले में चीन के साथ व्यवहार में दो बदलाव किए हैं। पहला, चीन द्वारा जमीन पर स्थिति को बदलने के प्रयास को रोकने के लिए सेना तुरंत कदम उठा रही है। चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ जनरल रावत ने कहा कि भारत के पास सैन्य विकल्प मौजूद हैं। सीमा पर तनाव कम करने की बातों के बावजूद सैन्य कमांडर सीमा पर तनाव कम करने का प्रयास कर रहे हैं और इसके लिए बातचीत भी चल रही है किंतु इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हो रही है। 

दूसरा, कूटनयिक दृष्टि से दोनों देशों के सैन्य कमांडरों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के बीच बातचीत के अनेक दौरों के चलने के बावजूद इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है। भारत चाहता है कि चीन यथास्थिति को बहाल करे जबकि चीन चाहता है कि भारत व्यापारिक द्विपक्षीय संबंधों को सीमा मुद्दे से अलग रखे किंतु भारत ने चीन की इस मांग को खारिज कर दिया। क्या भारत इस तनाव को दूर कर सकता है? इस क्षेत्र में चीन द्वारा वर्चस्व स्थापित करने के प्रयासों का मुकाबला करने के लिए भारत ने कूटनयिक दृष्टि से विश्व के नेताआें का समर्थन जुटाया है। इसके बावजूद हमारे पास क्या विकल्प हैं? 

क्या विदेश नीति के वर्चस्ववादी रुख का आक्रामक परिणाम निकलेगा? सीमा पर दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे पर बंदूकें ताने खडे़ हैं इसलिए अनिश्चितता की स्थिति बनी है। चीन के कदमों का मुकाबला करने के लिए भारत को कूटनयिक, आॢथक और सैनिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित करनी होगी। एक एेसी सीमा जिसका निर्धारण नहीं किया गया है और जिस पर विवाद 7 दशकों से अधिक समय से चला आ रहा है वह भी एक एेसे पड़ोसी देश के साथ जो बीच-बीच में बल प्रयोग करता रहा हो। 

पिछली बार हमने चीन पर 1962 में विश्वास किया था और उसके बाद भारत-चीन युद्ध हुआ जिसे भारत नहीं भुला सकता है। हम एक एेसे देश से आज व्यवहार कर रहे हैं। इसके अलावा चीन इस उपमहाद्वीप में अफगानिस्तान, नेपाल और पाकिस्तान के साथ बातचीत और संबंध मजबूत कर एक चतुष्कोणीय संघ बना रहा है। वह चीन के सबसे बडे़ प्रांत जिनजियांग को पाकिस्तान के बलोचिस्तान में पाकिस्तान के ग्वादर पत्तन से जोडऩे के लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर का निर्माण कर रहा है जो पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है तथा जो भारत की प्रादेशिक अखंडता का उल्लंघन कर रहा है। चीन द्वारा भारत को घेरने की रणनीति के जवाब में भारत ने लुक एक्ट नार्थ ईस्ट पालिसी बनाई है जिसका उद्देश्य चीन के पड़ोसी देशों के साथ गठबंधन बनाना है। भारत म्यांमार, श्रीलंका, वियतनाम आदि के साथ संबंध सुदृढ़ कर रहा है। 

भारत-तिब्बत, जिनजियांग और हांगकांग के बारे में अपनी नीति की समीक्षा कर रहा है और ताईवान के साथ अपने संबंधों को धीरे-धीरे मजबूत बना रहा है। भारत-चीन जटिल संबंधों के बारे में हमें किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए किंतु चीन की वर्चस्ववादी महत्वाकांक्षा और सीमा पर विवाद को देखते हुए एक अनिश्चितता बनी हुई है। प्रधानमंत्री मोदी एक वैकल्पिक वैश्विक आपूर्ति शृंखला के रूप में भारत को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। 

किंतु हमें इस बात का भी अहसास है कि चीन का निवेश महत्वपूर्ण है और एक मजबूत पड़ोसी देश के साथ टकराव नहीं होना चाहिए। इसलिए इन दोनों प्रतिस्पर्धी और विरोधाभासी देशों के बीच टकराव का प्रबंधन किया जाना चाहिए क्योंकि दोनों देशों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसलिए यदि इस मामले में कोई सफलता नहीं मिलती है तो फिलहाल भारत और चीन के सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आमने-सामने खडे़ रहेंगे। दीर्घकाल में भारत-चीन संबंध भारत के रणनीतिक लक्ष्यों और क्षेत्रीय तथा वैश्विक सुरक्षा वातावरण के संबंध में भारत के लक्ष्यों पर निर्भर करेगा।-पूनम आई. कौशिश 
 

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