कांग्रेस निरंतर ही ‘मरणासन्न’ पर है

Edited By ,Updated: 25 Jun, 2020 03:49 AM

congress is constantly on the deathbed

वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार एक बुरे दौर से गुजर रही है। पिछले कुछ वर्षों से मंदी झेल रही देश की अर्थव्यवस्था ने भी कोरोना वायरस महामारी के नतीजे में एक बड़ा झटका महसूस किया है। सरकार की छवि को भी गंभीर रूप से...

वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार एक बुरे दौर से गुजर रही है। पिछले कुछ वर्षों से मंदी झेल रही देश की अर्थव्यवस्था ने भी कोरोना वायरस महामारी के नतीजे में एक बड़ा झटका महसूस किया है। सरकार की छवि को भी गंभीर रूप से क्षति पहुंची है, जिस तरह से इसने प्रवासी श्रमिकों के मुद्दे तथा वायरस के प्रकोप पर अंकुश लगाने की अपनी नीति दिखाई है। इन बातों ने स्थिति को और बदतर कर दिया है और हाल ही के चीन के साथ संघर्ष में सरकार को एक कोने में धकेल दिया है। 

एक चुनी हुई सरकार को किसी भी राष्ट्रीय संकट में पूरे देश के समर्थन की जरूरत होती है। विपक्ष के लिए भी अपनी भूमिका निभाने की जिम्मेदारी होती है ताकि वह सरकार को समय-समय पर जगाता रहे-आर्थिक संकट हो या फिर महामारी से निपटना। इस प्रकार के कठोर सवाल सरकार से पूछे जाने चाहिएं। सरकारी नीतियों की आलोचना करना विपक्ष का एक कानूनी अधिकार है। 

दुर्भाग्यवश भारत की प्रमुख राष्ट्रीय स्तर की विपक्षी पार्टी कांग्रेस एक बार फिर से देश के लिए असफल साबित हो रही है। चुनावों में 2 बार करारी हार के बाद कांग्रेस निरंतर ही मरणासन्न है। हार के बावजूद भी पार्टी सबक सीखने में असफल रही है और बार-बार गलतियां दोहरा रही है। वर्तमान संकेत राहुल गांधी का है जिन्होंने चुनावों में अपनी हार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेते हुए पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। वह फिर से इस पद पर आसीन हो सकते हैं। 

सोमवार को कांग्रेस कार्यकारी समिति की एक आभासी बैठक में पार्टी के कुछ दिग्गजों ने फिर से राहुल गांधी को जिम्मेदारी लेने के लिए कहा है। हालांकि राहुल ने तत्काल ही इस मांग पर अपनी सहमति प्रकट नहीं की है। इस सवाल पर उनकी चुप्पी यह दर्शाती है कि वह इस बात को नकारेंगे नहीं। इस तरह की खुशामद और मानसिकता ने पहले ही पार्टी को बहुत क्षति पहुंचाई है। मगर फिर भी कोई सबक नहीं सीखा जा रहा। कांग्रेस के पास अनुभवी तथा योग्य नेताओं की भरमार है जो इसे नई बुलंदियों तक ले जा सकते हैं मगर उनमें इतनी हिम्मत नहीं कि वह पार्टी में बदलाव के लिए आवाज उठा सकें। 

पिछले वर्ष पार्टी ने अध्यक्ष पद के लिए चुनाव करवाने का प्रयास किया था मगर कोई भी नेता चुनाव लडऩे के लिए आगे नहीं आया। वह ऐसा तभी कर सकते हैं यदि गांधी परिवार से उनको समर्थन या कोई संकेत मिले। स्पष्ट तौर पर गांधी परिवार यह भी नहीं चाहता पार्टी पर उसकी पकड़ कमजोर हो। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता संजय झा जोकि पार्टी के एक प्रभावी प्रवक्ता रह चुके हैं, को पिछले सप्ताह प्रवक्ताओं के पैनल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। उन्होंने कहने की सिर्फ यह हिम्मत दिखाई थी कि पार्टी को जरूरी तौर पर अपना मंथन करना चाहिए।

उन्होंने पार्टी में कायापलट का सुझाव दिया ताकि भाजपा को एक सशक्त और एक भयंकर चुनौती दी जा सके। 5 पिछले कुछ वर्षों से पार्टी को कई दिग्गज नेता छोड़ कर चले गए। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, विजय बहुगुणा तथा गिरधर गोमांग भी शामिल हैं। इनके अलावा पार्टी छोडऩे वालों में पूर्व राज्य अध्यक्ष रीटा बहुगुणा जोशी, भुवनेश्वर कालिता, अशोक चौधरी, अशोक तंंवर तथा बोतचा सत्यनारायण भी शामिल हैं। 

इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री जयंती नटराजन, एस.एम. कृष्णा, बेनी प्रसाद वर्मा, जी.के. वासन, शंकर सिंह वाघेला, श्रीकांत जेना, हेमंत बिसवा सरमा, चौधरी बीरेन्द्र सिंह तथा सुदीप राय बर्मन भी हैं। कांग्रेस पार्टी को सबसे बड़ा आघात ज्योतिरादित्य सिंधिया के तौर पर लगा है जो भविष्य के बड़े नेता समझे जाते थे। राज्यसभा सीट न देने को लेकर उन्हें पार्टी को छोडऩे पर बाध्य किया गया। 

हाल ही में ऐसी भी कई रिपोर्टें हैं कि भावी नेता सचिन पायलट जोकि वर्तमान में राजस्थान के उप मुख्यमंत्री हैं, उनके भी राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ कठोर मतभेद उपजे हैं। मोदी सरकार के खिलाफ बढ़ते आक्रोश के चलते पूरे देशभर में एक राजनीतिक माहौल बन रहा है। सभी क्षेत्रीय  पाॢटयां अपने राज्यों तक सिमट कर रह गई हैं। सिर्फ कांग्रेस के पास ही भाजपा को चुनौती देने का साहस है। भविष्य में महा गठबंधन से भी कोई उम्मीद नहीं है और उसका चेहरा भी धुंधला पड़ता दिखाई दे रहा है। करीब 150 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी देश के इतिहास में आज एक संकटमयी स्थान पर आकर खड़ी हो गई है। इसने कभी भी अपनी गिरावट की ओर ध्यान ही नहीं दिया। राष्ट्र के प्रति पार्टी अपना कत्र्तव्य समझ पाने में असफल है।-विपिन पब्बी
 

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