कांग्रेस में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत

Edited By ,Updated: 27 May, 2019 03:14 AM

congress needs a radical change

लगभग पचास दिनों की बेहद थकाऊ चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद जो नतीजे आए उनमें फिर नरेन्द्र मोदी जी एक तरफा क्रिकेट मैच की तरह बाजी मार ले गए। इसके लिए फिर से भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी बधाई के हकदार तो हैं ही, इस राजनीतिक मैच के मैन ऑफ द...

लगभग पचास दिनों की बेहद थकाऊ चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद जो नतीजे आए उनमें फिर नरेन्द्र मोदी जी एक तरफा क्रिकेट मैच की तरह बाजी मार ले गए। इसके लिए फिर से भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी बधाई के हकदार तो हैं ही, इस राजनीतिक मैच के मैन ऑफ द मैच भी हैं। इससे पहले 2014 में भी वही मैन ऑफ द मैच बने थे। मोदी जी के सामने कांग्रेस हो या बेमेल बना गठबंधन हो सभी बुरी तरह से हांफते नजर आए। मोदी जी से देश को क्या अपेक्षाएं हैं क्या नहीं इनसे वह भली-भांति परिचित होंगे क्योंकि वह आमजन से जुड़े नेता हैं और लोगों की आवश्यकताओं को अच्छी तरह समझते हैं। खैर इस पर तो अलग से एक लेख लिखूंगा परन्तु आज देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी की दुर्दशा देख इसी संबंध में लिख रहा हूं। 

एक समय देश के आजाद होने के बाद कांग्रेस पार्टी देश की एकछत्र राज करने वाली पार्टी रही। नेहरू जी के समय कांग्रेस को कोई चुनौती नहीं थी। उनके बाद भी राजीव गांधी तक पार्टी बेहद मजबूत बनी हुई थी। कांग्रेस से बगावत कर निकले वी.पी. सिंह के बाद पार्टी का क्षरण शुरू हो गया। एक-एक कर पार्टी से किन्हीं कारणों से नेता जाते रहे। शरद पवार, ममता बनर्जी, वाई.एस.आर. जगन मोहन रैड्डी जैसे लोगों ने कांग्रेस से किनारा कर अपने-अपने क्षेत्रों में अपने दल गठित कर लिए। उन्हें इसमें सफलता भी मिली, ममता बनर्जी बंगाल में जमी। हाल ही में जगन मोहन रैड्डी को आंध्र प्रदेश में भारी सफलता मिली। इनके अलावा भी आज भाजपा में भी ज्यादातर सांसद कांग्रेस से निकल अन्य रास्तों से आए हैं। 

आज पार्टी की स्थिति यह है कि पार्टी की कमान अगर गांधी परिवार से निकल जाए तो पार्टी का एकजुट रहना मुश्किल है। पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी, ऐसा लगता है कि चाटुकारों से घिर गए हैं। स्वयं राहुल गांधी तो जमीन से जुड़े नेता नहीं हैं। लेकिन उनके सलाहकारों ने चुनाव में उन्हें बेतुके नारे बोलने को दिए। जैसे चौकीदार चोर है जैसे बेहूदा नारे दिए जिन्हें मोदी ने अपने लिए अपने हित में कर लिया। मुझे लगता है कि राहुल गांधी में कमियां हैं या नहीं परन्तु उनकी किस्मत में राजयोग नहीं है। इस समय खास जरूरत पार्टी को जोड़े रखने की है और साथ ही पार्टी में मजबूती लाने की भी है। वर्तमान हालातों में तो पार्टी अगले 20 सालों में भी संभलती नजर नहीं आती। 

पार्टी को मजबूत करने के लिए पूरे देश में बूथ स्तर पर पार्टी को जागरूक करना होगा। सोनिया गांधी को आगे आकर एक बड़ी पहल भी करनी होगी। पार्टी छोड़कर अन्य जगह गए नेताओं और पार्टी क्षत्रपों जैसे शरद पवार, ममता बनर्जी, जगन मोहन रैड्डी आदि को पार्टी में वापस लाने की मार्मिक अपील उन्हें करनी होगी। सभी नए-पुराने नेता मिलकर काम करेंगे तो निश्चित रूप से पार्टी अपने पुराने रंग में लौट आएगी। अगर क्षेत्रीय पाॢटयां जो कांग्रेस से निकली हैं, सोनिया जी की अपील को नजरअंदाज करती हैं तो पार्टी को संभालने और बचाने के अनेकों रास्ते हैं। सबसे पहले तो पार्टी के अंदर और गहराई तक घुसे चाटुकारों से छुटकारा पाना होगा।

मेहनती और कर्मठ लोगों को आगे लाकर उन्हें लोगों के सामने लाना होगा। क्योंकि जनता को सुनने और समझने वाले नेताओं की इस समय पार्टी को सख्त जरूरत है। नहीं तो पार्टी को मुख्य धारा से बाहर होने में देर नहीं लगेगी। श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा इस कार्य में पार्टी की मदद कर सकती हैं। वह स्वयं में एक अच्छी वक्ता तो हैं ही उनमें राजनीति की समझ भी राहुल जी से ज्यादा है। उन्हें पार्टी में इंदिरा जी जैसी सोच रखने वाले वरिष्ठ नेताओं को जनता के सामने लाना है। जनहित में किसी भी तरह के आंदोलन को पार्टी तत्पर रहे न कि केवल मोदी विरोध में। उन्हें यानी कांग्रेसियों को मोदी का विरोध कर इतिश्री नहीं करनी, बल्कि जनसमस्याओं के लिए जनता के साथ जुडऩा होगा। तभी इस पार्टी का पुनर्जन्म होगा।-वकील अहमद

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