‘सुलेमानी’ की मौत के परिणाम

Edited By ,Updated: 07 Jan, 2020 04:46 AM

consequences of  sulaimani  death

ईराक की राजधानी बगदाद में अमरीकी हवाई हमले में शीर्ष ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी को अमरीका ने मार गिराया था। ईरान बदले की भावना में जल रहा है। अमरीका तथा ईरान के बीच खींचतान का पूरे क्षेत्र में असर पड़ेगा। भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा। अमरीकी जनरल...

ईराक की राजधानी बगदाद में अमरीकी हवाई हमले में शीर्ष ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी को अमरीका ने मार गिराया था। ईरान बदले की भावना में जल रहा है। अमरीका तथा ईरान के बीच खींचतान का पूरे क्षेत्र में असर पड़ेगा। भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा। अमरीकी जनरल स्टेनले  मैक्रिस्टिल के शब्दों में सुलेमानी एक मिलिट्री कमांडर से ऊपर उठे थे तथा एक कठपुतली का कार्य कर रहे थे। सुलेमानी ईरान की विदेश नीति का दशकों से नेतृत्व कर रहे थे तथा उनकी सफलता को नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने सभी रिश्तों को ताक पर रख कर क्षेत्र में ईरान की हैसियत बढ़ा दी थी। सुलेमानी जैसा कोई भी नहीं था जिसने शिया सहयोगियों को इतनी सफलता हासिल करवाई। खुफिया, वित्तीय तथा राजनीतिक क्षेत्रों में सुलेमानी ने ईरान की सीमा से परे कुद्स बलों को बहुत ज्यादा प्रभावशाली बना दिया था। 

इस संदर्भ में सुलेमानी की मौत  ईरान की क्षमताओं के लिए विशेष तौर पर सीरिया, ईराक तथा यमन में एक गहरा आघात है। ईरान-रूस रिश्तों में भी कमी आएगी जिन्होंने कि इस क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। अमरीकी पाबंदियों के बाद ईरान की अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी है। पाबंदियों भरी राजनीति का विरोध किया जा रहा है। ईरान अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने के लिए हाथ-पैर मार रहा है। 

ईरान की जवाबी कार्रवाई की क्षमताएं क्या होंगी
सुलेमानी के उत्तराधिकारी ब्रिगेडियर जनरल इस्माइल घनी ने कहा है कि संयम बरतें और इसके बाद आप मध्य पूर्व में अमरीकियों की सभी तरफ लाशें ही लाशें देखोगे। सऊदी अरब में अबकैक खुराल्स ऑयल रिफाइनरी पर ड्रोन मिसाइल हमले के मुख्य रणनीतिकार सुलेमानी ही थे इसलिए हमें पता है कि ईरान की क्षमता क्या कुछ करने की है? सऊदी अरब ईरान के कुछ क्षेत्रों को टार्गेट कर सकता है। इन क्षेत्रों में अमरीका तथा उसके सहयोगी देशों को निशाना बनाया जा सकता है। वाशिंगटन डी.सी. में सऊदी अरब दूत पर हमला अभी भी याद है। 2010 के बाद ईरान विश्व के उच्च साइबर ओफैंसिव पॉवर्स में से एक है। अब वह साइबर हमले की योजना बना सकता है। 

आम धारणा यह है कि ईरान अब ऑयल सप्लाई पर हमला करेगा। इसी आशंका के चलते बीते दिन तेल की कीमतें जम्प कर गईं मगर उसके फौरन बाद सुधर भी गईं। विश्व में तेल की आपूर्ति काफी है जिससे कीमतें लम्बे समय तक संतुलित रहेंगी। ईरान के 2 अन्य महत्वपूर्ण सहयोगी चीन और सीरिया हारमूज स्ट्रेट्स की जरूरत समझते हैं। ईरान द्वारा इस सप्लाई रूट को खतरे में डालने की संभावना नहीं है। यदि ईरान ने ऐसा किया तो वह भारत, जापान तथा अन्य देशों को अपने खिलाफ कर लेगा जो कि उसके हित में नहीं होगा। 

इसके अलावा ईरान तुर्की, सीरिया, चीन तथा रूस से भी सहयोग प्राप्त करेगा। वहीं दूसरी तरफ अमरीका तथा इसराईल की जोड़ी बनी हुई है। हालांकि इसराईल अभी चुप है मगर स्थिति पर अपनी निगाह रखे हुए है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि वह ईरान के साथ युद्ध नहीं चाहते और न ही तख्ता पलट चाहते हैं। ईरान पूर्व की बातें अभी तक नहीं भूला है। ईरान परमाणु डील के मुद्दे पर अमरीका के साथ 2 रैडलाइंस को पार कर चुका है। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनी ईरान की परमाणु डील को भंग कर सकते हैं। 

कासिम सुलेमानी की मौत ने अमरीका को एक बार फिर मध्य पूर्व की राजनीति में वापस ला खड़ा कर दिया है। अब वह और ज्यादा सुरक्षा बलों तथा सैन्य बल प्रयोग का सोचेगा। दूसरी तरफ इसका प्रभाव भारतीय रणनीति पर भी पड़ेगा, जैसा कि 2012 के बाद हुआ था। भारत खाड़ी क्षेत्र से लोगों को निकालने की योजना बनाएगा जो कि एक आसान प्रक्रिया न होगी। भारत को अफगानिस्तान पर भी पैनी निगाह रखनी होगी जोकि राजनीतिक युद्ध का मैदान बन सकता है। पाकिस्तान भी इसमें कूदने की तैयारी करेगा मगर निश्चित तौर पर भारत अपना बचाव करने की क्षमता रखता है। कश्मीर पर  बातचीत करने से ज्यादा भारत का ध्यान आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कार्पोरेशन पर होगा। भारत को अपनी रणनीति बनानी होगी। भारत अरब देशों तथा अपने पुराने सहयोगी ईरान  के बीच  तनाव से उपजे संबंधों को बिगाडऩा नहीं चाहेगा। पूर्व में भारत  के हित विस्तृत तथा गहरे हैं। सुलेमानी की हत्या के बाद नरक जैसे हालात पैदा न हो जाएं। विश्व यह नहीं जानता कि आगे क्या होने वाला है मगर यह अच्छा भी नहीं होने वाला। शांति का एक अध्याय लिखा जाना चाहिए।-इंद्राणी बागची

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