नागरिकता संशोधन कानून की ‘संवैधानिकता’ उठाती है महत्वपूर्ण सवाल

Edited By ,Updated: 22 Dec, 2019 02:32 AM

constitutionality of the citizenship amendment law raises important questions

मैं यह सोचकर अचंभित हूं कि सरकार सही मायने में यह समझती है कि नागरिकता संशोधन कानून ने आखिर इतना गुस्सा क्यों भड़काया। भारत नागरिकों को परिभाषित करने के साथ-साथ देश के बारे में भी बताता है। नागरिकता का अर्थ अधिकार होना है तथा इसी से ही सभी कुछ...

मैं यह सोचकर अचंभित हूं कि सरकार सही मायने में यह समझती है कि नागरिकता संशोधन कानून ने आखिर इतना गुस्सा क्यों भड़काया। भारत नागरिकों को परिभाषित करने के साथ-साथ देश के बारे में भी बताता है। नागरिकता का अर्थ अधिकार होना है तथा इसी से ही सभी कुछ प्रवाहित होता है। अब नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिकता दो महत्वपूर्ण सवाल उठाती है। पहला यह कि हमारे देश के संविधान की भावना को यह तोड़ता है जैसा कि संविधान की भूमिका में लिखा है। संविधान कहता है कि यह धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्ध है। उस भावना को सुप्रीम कोर्ट समझती है। विभिन्न जज विभिन्न निष्कर्ष निकालते हैं। 

दूसरा सवाल यह है कि क्या नागरिकता संशोधन कानून उस आर्टिकल 14 से विरोधाभास रखता है जो कानून के आगे सभी लोगों को बराबरी का हक दिलाता है। यह बात इस पर निर्भर करती है कि कानून सेलाभप्राप्त करने वालों को उचित वर्गीकरण के आधार पर पहचाना गया है। इसको हम आसानी से जांच सकते हैं। सरकार जो उचित वर्गीकरण के बारे में सोचती है वह आपत्तियां तथा कारण का विवरण है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बंगलादेश विशिष्ट स्टेट धर्म की बात करते हैं। इसके नतीजे में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई समुदाय से संबंध रखने वाले कई लोग  ऐसे देशों में धर्म के नाम पर प्रताडि़त किए गए हैं। इस वर्गीकरण के दो स्पष्ट हिस्से हैं। दोनों की जांच करना जरूरी है।

पहला, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश ऐसे पड़ोसी देश हैं जहां पर विशिष्ट स्टेट धर्म है। वर्गीकरण के आधार पर इन देशों ने अपने आपको गठित किया है। वहां पर आपत्तियां तथा कारण के विवरण ने इस्लाम को स्टेट धर्म का दर्जा दिया है मगर ऐसा नहीं है। यह सिर्फ साधारण तौर पर एक विशिष्ट स्टेट धर्म की बात करता है। ऐसा अन्य तीन देशों के साथ-साथ भूटान पर भी लागू होता है। 

दूसरा, हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई ‘समुदाय’ इन तीन देशों में धर्म के आधार पर उत्पीडऩ के शिकार हो रहे हैं। याद रखें प्रभावशील शब्द ‘समुदाय’ है। इन 6 का धर्म के तौर पर व्याख्यान नहीं किया गया है तथा ‘समुदाय’ शब्द में विभिन्न लोगों का समूह आता है। एक बार फिर इसका जवाब न ही है। अहमदिया, बहाई तथा शिया को लगातार पाकिस्तान में प्रताडि़त किया जाता है। अफगानिस्तान में भी शिया तथा हजारा समुदाय को प्रताडि़त किया जाता है। अब आप यह सवाल उठाएंगे कि क्या उनका अलग से कोई धर्म है। मगर वास्तविकता में यह समुदाय है और बिना शक ये लोग धर्म के आधार पर प्रताडि़त किए जाते हैं। 

इसके अलावा कुछ अन्य तथ्य भी उजागर किए जा रहे हैं। पाकिस्तान में 1974 में अहमदिया को गैर मुस्लिम घोषित किया गया था, इसका अभिप्राय: है कि पाकिस्तानी दृष्टि के लिहाज से इन्होंने अपना अलग धर्म बना रखा है। इस समुदाय की गिनती करीब 40 लाख है। इस लिहाज से यह समुदाय पाकिस्तान में सबसे बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक है। इसी वजह से ये लोग वहां पर हिंदुओं तथा ईसाइयों से ज्यादा बुरी तरह से भेदभाव के शिकार होते हैं तथा इनको धर्मरहित समझा जाता है। बी.बी.सी. की रियल्टी चैक टीम ने पाया कि 2018 तक ईशनिंदा के ज्यादातर मामले अहमदिया के खिलाफ दायर किए गए। ईशनिंदा के मामले मुस्लिम, ईसाई तथा ङ्क्षहदुओं पर नहीं दायर हुए। फिर भी नागरिकता संशोधन कानून में अहमदिया को स्वीकार नहीं किया गया। 

पाकिस्तान में हिंदुओं के मामले में बी.बी.सी. सरकार के दावों को चुनौती देती है। उसका कहना है कि 1947 में इनकी गिनती 23 प्रतिशत थी जो गिरकर 3.7 प्रतिशत हो गई। 1998 की जनगणना के अनुसार यह पाया गया है कि पाकिस्तान की ङ्क्षहदू जनसंख्या 1951 के 1.5 से 2 प्रतिशत के लैवल से इतने महत्वपूर्ण तरीके से नहीं बदली। यह तो बंगलादेश के हिंदुओं की जनसंख्या थी जो 1951 में 23 प्रतिशत थी और यह तेजी से घटकर 2011 में 8 प्रतिशत हो गई। हालांकि 2017 में यह बढ़कर 10.7 प्रतिशत हो गई। फिर भी इन दोनों देशों में हिंदू मुख्य न्यायाधीश, मंत्री तथा सांसद हैं। मगर 1974 के बाद अहमदिया समुदाय के लोग ऐसे पदों से वंचित हैं। 

वर्गीकरण के साथ आगे एक और मुश्किल है। यह 6 समुदायों से संबंधित कई लोगों की बात करता है। जिसका स्पष्ट तौर पर मतलब सभी लोगों से नहीं है। हालांकि इस नागरिकता संशोधन कानून का खंड-2 इन 6 समुदायों से संबंधित लोगों को कवर करता है। इसी कारण ऐसे समुदायों के प्रत्येक व्यक्ति धार्मिक उत्पीडऩ को झेलते हैं जिसमें उनके पूर्व न्यायाधीश तथा मंत्री भी है। मैं यह सुझाव दूंगा कि हालांकि मैं वकील नहीं, आपत्तियों तथा कारणों के व्याख्यान में वर्गीकरण की लापरवाह भाषा तथा कानून तथा इसमें व्याप्त असंतुलन नागरिकता संशोधन कानून को असंवैधानिक घोषित करता है।-करण थापर

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