नशों से मुक्ति पाने में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों का योगदान

Edited By ,Updated: 06 Aug, 2024 06:19 AM

contribution of retired police officers in getting rid of drug addiction

भारत वर्ष एक विशाल वट वृक्ष के रूप में दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है परंतु नशारूपी दीमक इस वट  वृक्ष को जड़ों से खा रही है। नशाखोरी हमारी सभ्यता और युवा वर्ग की नस-नस में घुसती जा रही है। कहा जाता है कि नशे का प्रचलन प्राचीन काल से ही होता...

भारत वर्ष एक विशाल वट वृक्ष के रूप में दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है परंतु नशारूपी दीमक इस वट  वृक्ष को जड़ों से खा रही है। नशाखोरी हमारी सभ्यता और युवा वर्ग की नस-नस में घुसती जा रही है। कहा जाता है कि नशे का प्रचलन प्राचीन काल से ही होता रहा है। आज का युग विज्ञान व तकनीकी का युग है। आज युवा वर्ग शराब, भांग, अफीम, कोकीन व हैरोइन ( चिट्टा) जैसे खतरनाक नशों के जाल में फंसता जा रहा है। एक सर्वे के अनुसार नशे से ज्यादा प्रभावित राज्यों में मणिपुर, केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश,गोवा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़, पंजाब व हरियाणा जैसे राज्य शामिल हैं। नशे की लत में महिलाएं विशेषतय: स्कूलों व कालेजों की युवा लड़कियां भी पीछे नहीं हैं। 

मादक  पदार्थों की धरपकड़ के लिए सरकार ने राज्य पुलिस के अतिरिक्त नारकोटिक ब्यूरो  जैसे विशेष संस्थान चला रखे हैं मगर फिर भी इस समस्या का सम्पूर्ण समाधान होता नजर नहीं आ रहा है। लोगों में जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं तथा इसी तरह नशे से छुटकारा पाने के लिए 30 जनवरी को नशा मुक्ति संकल्प और शपथ दिवस, 31 मई को अंतर्राष्ट्रीय धूम्रपान दिवस, 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा निवारण दिवस और 2 से 8 अक्तूबर तक  भारत में मद्य निषेध सप्ताह मनाया जाता है। कहते हैं कि यहां पर इच्छा शक्ति हो वहां पर रास्ता भी निकाला जा सकता है। यह इच्छाशक्ति समाज के हर वर्ग की होनी चाहिए।

मादक पदार्थों के प्रयोग के विरुद्ध पुलिस को सामुदायिक  योजनाओं के अंतर्गत उपाय करने की जरूरत है। इसी तरह इस कार्य में लगाए गए पुलिस अधिकारियों को भी न केवल संवेदनशील बल्कि ईमानदारी व कत्र्तव्य निष्ठा से काम करना चाहिए। देखा गया है कि  बहुत से अधिकारी केवल आंकड़े बढ़ाने के उद्देश्य से ही काम करते हैं तथा  कहीं न कहीं बड़े व्यापारियों के साथ सांठ-गांठ रखते हैं। हिमाचल पुलिस के पुलिस महानिदेशक अतुल वर्मा  इस क्षेत्र में काफी रुचि ले रहे हैं तथा उनके साथ हुई मेरी भेंट में उन्होंने बताया कि अन्य उपायों के अतिरिक्त वह सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों का योगदान प्राप्त करने के लिए भी एक योजना बना रहे हैं। 

ऐसे संगठित अपराधों  की रोकथाम में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी, जिनका लंबा अनुभव होता है, अहम भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे अधिकारियों का  सहयोग प्राप्त करने के लिए कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं :
1) जिला स्तर पर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में जिले के सभी सेवानिवृत्त अधिकारियों की सूची बनानी चाहिए तथा पुलिस अधीक्षक व उसके अन्य अधिकरियों द्वारा इन सेवानिवृत्त अधिकारियों  के साथ महीने के अन्तराल में मोबाइल पर बातचीत करनी चाहिए।
2) कम से कम 3 महीने के अंतराल में इन सभी अधिकारियों को एक सामान्य जगह पर आमंत्रित करना चाहिए तथा उनसे अपने-अपने इलाके के नशे के कारोबार में लगे हुए लोगों की जानकारी लेनी चाहिए।
3) उनकी रिपोर्टिंग को पूर्णतय: गुप्त रखना चाहिए तथा उन्हें गवाह के रूप में प्रयुक्त नहीं करना चाहिए। उनकी सूचना के आधार पर पुलिस दस्ते को खुफिया कार्रवाई करनी चाहिए।
4) आमतौर पर पुलिस केवल उन्हीं लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करती है जो सीधे तौर पर पकड़ में आ जाते हैं जबकि मुख्य अपराधी जो आपूर्ति का काम करते हैं, के बारे में कोई विशेष कार्रवाई नहीं की जाती। इस संबंध में सेवानिवृत्त अधिकारियों का सहयोग लिया जाना चाहिए ।
इसके लिए इच्छा शक्ति की जरूरत है जोकि केवल सरकार या पुलिस प्रशासन की ही नहीं बल्कि समाज और जनता की भी होनी चाहिए। समाज की इच्छाशक्ति जागृति के लिए अन्य सगंठनों के अतिरिक्त, पुलिस विभाग अपने सेवानिवृत्त अधिकारियों/ कर्मचारियों का ऐच्छिक सहयोग प्राप्त कर सकती है मगर उनके सहयोग को पाने के लिए उनकी व्यक्तिगत समस्याओं जैसे कि उनके स्वास्थ्य जांच के लिए समय-समय पर गाड़ी या कोई प्रतिनिधि भेजना चाहिए।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड) हि.प्र.  
 

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