पाक-परस्त हुर्रियत नेताओं के लिए ‘वार्तालाप’ कोई महत्व नहीं रखती

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Oct, 2017 02:06 AM

conversation does not have any significance for hurriyat leaders

कश्मीर पर भारत सरकार की नई सोच आई है। भारत सरकार ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए वार्ताकार नियुक्त कर दिया है। आई.बी. के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को कश्मीर समस्या के समाधान की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पूर्व आई.बी. प्रमुख होने के कारण दिनेश्वर...

कश्मीर पर भारत सरकार की नई सोच आई है। भारत सरकार ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए वार्ताकार नियुक्त कर दिया है। आई.बी. के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को कश्मीर समस्या के समाधान की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पूर्व आई.बी. प्रमुख होने के कारण दिनेश्वर शर्मा के अनुभव और कश्मीर के प्रश्न पर उनकी विशेषज्ञता को इंकार करना असंभव है। दिनेश्वर शर्मा कश्मीर के सभी पक्षों को बखूबी जानते हैं, समझते हैं। इसलिए यह उम्मीद की जानी चाहिए कि उनकी विशेषज्ञता भारत सरकार के लिए काम आएगी। 

भारत सरकार की यह नई सोच आश्चर्य में डालने वाली है। कश्मीर में भारतीय सेना की वीरता और एन.आई.ए. की सक्रियता के बीच में वार्ता का यह प्लान निश्चित तौर पर समझ से परे है। पर बहुत सारे प्रश्न हैं जिनके उत्तर वर्तमान में नहीं हैं। क्या दिनेश्वर शर्मा उन हुर्रियत के नेताओं को वार्ता की मेज पर लाने में सफल होंगे जिन हुर्रियत के नेताओं के सिर पर पाकिस्तान परस्ती चढ़कर बोलती है और जिनके हाथ कश्मीरी पंडितों के खून से रंगे हुए हैं? क्या भारत सरकार ने अमरीका के दबाव में वार्ताकार नियुक्त किया है? क्या भारत सरकार हुर्रियत के नेताओं को वार्ता की मेज पर बैठाने के लिए अतिरिक्त उदारता बरतेगी? क्या भारत सरकार उन हुर्रियत नेताओं पर दया का भाव प्रदर्शित करेगी जो पाकिस्तान परस्ती के लिए पाकिस्तान से धनशोधन कर हिंसा और अराजकता के कारण रहे हैं। 

भारत सरकार का यह कदम निश्चित तौर पर स्वागत योग्य है, कश्मीर में हिंसा को कम करने के लिए वार्ता के अलावा कोई अन्य विकल्प हो ही नहीं सकता है। पर हुर्रियत के नेताओं और फारूक अब्दुल्ला ने जिस प्रकार की प्रतिक्रिया दी है उससे जाहिर होता है कि भारत सरकार की यह नई सोच भी कोई खास उपलब्धि नहीं दे सकेगी। पाकिस्तान इतनी आसानी से कश्मीर में शांति आने देने वाला नहीं है। सबसे बड़ी समस्या भारत की पूर्ववर्ती सरकारों की सोच व दृष्टिकोण रहा है। पूर्ववर्ती सरकारों की हुर्रियत नेताओं के प्रति नरमी और उनको खुश रखने की घुटनाटेक नीति कश्मीर में हिंसा और आतंकवाद की अनवरत प्रक्रिया को जारी रखने के लिए जिम्मेदार रही है। हुर्रियत के नेताओं ने कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को खदेडऩे में हिंसक भूमिका निभाई है। 

आज भी हुर्रियत नेता कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के विरोधी हैं, हुर्रियत नेता सरेआम कहते हैं कि अगर कश्मीरी पंडित घर वापसी करते हैं तो फिर उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है, वे अपनी सुरक्षा के बल पर घर वापसी कर सकते हैं। आतंकवादी उन्हें फिर से अपना शिकार बना लेंगे ऐसा डर एक साजिश के तहत दिखाते हैं ताकि कश्मीरी पंडित घर वापसी की बात सोच तक नहीं सकें। ऐसी घृणा रखने वाले हुर्रियत नेताओं को कश्मीर का सर्वेसर्वा प्रतिनिधि माना गया। जबकि कश्मीर सिर्फ हुर्रियत के नेताओं का ही नहीं है। कश्मीर तो कश्मीरी पंडितों का भी है, लद्दाख के बौद्धों का भी है। पर हुर्रियत के आतंकवादी नेताओं के सामने कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधियों तथा लद्दाख के बौद्धों को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है। 

हुर्रियत के नेताओं के लिए बातचीत कोई महत्व नहीं रखती है, उनके लिए तो पाकिस्तान परस्ती ही जरूरी है, क्योंकि इसके लिए पाकिस्तान से उन्हें धन मिलता है। अगर भारत सरकार कश्मीर को पाकिस्तान में मिलने देने की इच्छुक है तो फिर बातचीत हो सकती है, अन्यथा नहीं। जब मनमोहन सिंह के वार्ताकार कश्मीर में वार्ता करने गए तो फिर उन्हें हुर्रियत के नेताओं का असली चेहरा दिखा था। हुर्रियत के नेता मनमोहन सिंह के वार्ताकारों से मिलने तक को तैयार नहीं थे। मनमोहन सिंह के वार्ताकारों ने ऐसी सोच प्रदर्शित कर रखी थी जिसमें सिर्फ हुर्रियत नेताओं की ही इच्छा ही सर्वोपरि थी। जम्मू संभाग और लद्दाख संभाग की इच्छा और दृष्टिकोण को गौण मान लिया गया था। 

उल्लेखनीय यह भी है कि जम्मू और लद्दाख की जनता को भी कश्मीरी उपनिवेशवाद से मुक्ति चाहिए। लद्दाख की बौद्ध जनता कश्मीरी मुसलमानों से मुक्ति चाहती है, जबकि जम्मू के लोग भी कश्मीर के साथ नहीं रहना चाहते। मनमोहन सिंह के वार्ताकारों से लद्दाख और जम्मू की जनता ने आजादी मांगी थी, पर मनमोहन सिंह के वार्ताकारों ने अपनी रिपोर्ट में सिर्फ हुर्रियत नेताओं को खुश करने के काम किए थे। मोदी सरकार के वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा कैसी वीरता दिखाएंगे? इस पर वर्तमान में कुछ कहना मुश्किल है। दिनेश्वर शर्मा की वीरता तो तब मानी जाएगी जब वह हुर्रियत के नेताओं को यह अहसास करा सकेंगे कि जम्मू-कश्मीर का एकमात्र प्रतिनिधि आप ही नहीं हो, बल्कि जम्मू और लद्दाख की जनता के प्रतिनिधियों की इच्छा भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। 

हुर्रियत नेता जम्मू और लद्दाख की जनता के प्रतिनिधियों को कश्मीर समस्या के समाधान का अंग मानतेे ही नहीं हैं, हुर्रियत नेता कहते हैं कि सिर्फ वे ही राज्य के असली और एकमात्र प्रतिनिधि हैं जिनसे भारत सरकार को बात करनी होगी। भारत सरकार भी हुर्रियत के नेताओं की इस बात को मान लेती है। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि भारत सरकार भी लद्दाख और जम्मू की जनता के प्रतिनिधियों को महत्वपूर्ण क्यों नहीं मानती है, उन्हें उचित सम्मान क्यों नहीं मिलता है, कश्मीर समस्या के समाधान में उन्हें हुर्रियत नेताओं के समान बराबर का प्रतिनिधि क्यों नहीं माना जाता है। वार्ता के खेल-खेल में कहीं शांति की उम्मीदें नाउम्मीदी में न तबदील हो जाएं, इस बात का ध्यान रखना चाहिए। सेना ने अद्भुत वीरता दिखाई है। एन.आई.ए. ने सक्रियता दिखा कर और हुर्रियत नेताओं को भारतीय कानूनों का पाठ पढ़ा कर पहली बार सख्ती का अहसास कराया है। 

पाकिस्तान के पैसे पर पलने वाले और पाकिस्तान के पैसे पर आतंकवाद-विखंडनवाद की राजनीति करने वाले हुर्रियत नेता आज जेल में हैं, हुर्रियत के सरगना गिलानी के बेटे भी एन.आई.ए. के राडार पर हैं, गिलानी के बेटों से पूछताछ हो चुकी है। जनता के बीच हुर्रियत नेताओं का असली चेहरा सामने आ गया  है इसलिए हुर्रियत के नेता काफी दबाव में हैं। वे चाहते हैं कि शांति प्रक्रिया के नाम पर उनके साथ नरमी बरती जाए, शांति प्रक्रिया में शामिल होने के बदले  एन.आई.ए. द्वारा उन पर लादे गए मुकद्दमे वापस हों और जेल की कठोर सजा से मुक्ति मिले। ऐसी स्थिति में सेना और आई.एन.ए. की वीरता और सक्रियता में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। 

भारत सरकार की पहल सही है। अब हुर्रियत नेताओं के सामने संकट होगा। दुनिया को भारत सरकार कह सकती है कि हमने वार्ता का अवसर दिया था  पर हुर्रियत के नेताओं और पाकिस्तान परस्त आतंकवादी संगठनों के लिए शांति-सद्भाव कोई अर्थ नहीं रखता है। वैसे भी हमें दुनिया की चिंता नहीं करनी चाहिए। स्वयं की वीरता के बल पर पाकिस्तान परस्त आतंकवाद को जमींदोज करना होगा। भारत की सेना और एन.आई.ए. सही दिशा में गतिमान हैं। अगर हुर्रियत के नेताओं को दिनेश्वर शर्मा भारतीय कानून और संविधान का पाठ पढ़ा कर उन्हें शांति के लिए प्रेरित कर सकें तो यह उनकी वीरता होगी।-विष्णु गुप्त    

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