प्राकृतिक आपदाओं से जूझना हिमाचल की नियति बना

Edited By Pardeep,Updated: 18 Aug, 2018 03:04 AM

coping with natural disasters make himachal s destiny

ऐसा लगता है कि प्राकृतिक आपदाओं से जूझना और इन्हें झेलना हिमाचल प्रदेश की नियति में शुमार हो गया है। प्रकृति ने अगर हिमाचल प्रदेश को अपार सौंदर्य से नवाजा है तो प्राकृतिक प्रकोप व आपदाएं भी इस पर्वतीय राज्य के लोगों को जख्म देती रही हैं, यहां के...

ऐसा लगता है कि प्राकृतिक आपदाओं से जूझना और इन्हें झेलना हिमाचल प्रदेश की नियति में शुमार हो गया है। प्रकृति ने अगर हिमाचल प्रदेश को अपार सौंदर्य से नवाजा है तो प्राकृतिक प्रकोप व आपदाएं भी इस पर्वतीय राज्य के लोगों को जख्म देती रही हैं, यहां के नैसर्गिक सौंदर्य पर खरोंचें डालती रही हैं। 

वर्ष 1905 में सबसे बड़ी आपदा के रूप में हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में लाखों लोग भूकम्प से असमय काल के ग्रास बन गए थे और सैंकड़ों इमारतें व घर जमींदोज हो गए थे। बाद के वर्षों में भी भूकम्प, बादल फटने, भूस्खलन, बारिश व बाढ़ के कहर और ग्लेशियर टूटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं से हिमाचल प्रदेश थर्राता रहा और अरबों रुपए का जान- माल का नुक्सान इस प्रदेश ने झेला। 

इस बार की बरसातें भी हिमाचल प्रदेश के लिए दु:स्वप्न साबित हुई हैं और 2 दर्जन से अधिक लोगों की मौत के अलावा करीब 3000 करोड़ की सरकारी व निजी सम्पत्ति का नुक्सान हुआ है। कई गांव सड़कों से कट गए हैं और सैंकड़ों घर ढह गए हैं। बरसात का प्रकोप अभी भी थमा नहीं है। रोज पहाडिय़ां दरक रही हैं और नैशनल हाईवे भी इसके मलबे की चपेट में आ रहे हैं। आने वाले दिनों में नुक्सान का आंकड़ा और बढऩे की आशंका भी बराबर बनी हुई है। हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि दूर-दराज के प्रभावित गांवों में लोगों तक शीघ्र मदद पहुंचाना कोई आसान काम नहीं है।

राज्य सरकार के पास भी अपने इतने आॢथक संसाधन नहीं हैं कि प्रभावित लोगों की समुचित आर्थिक मदद की जा सके। ऐसे में इस राज्य को हमेशा केन्द्र से मदद की आशा रहती है लेकिन प्राकृतिक आपदाओं के समय केन्द्र से वैसी आर्थिक मदद अभी तक इस प्रदेश को नहीं मिली है जिसकी प्रदेश सरकार व जनता को आशा रही है या जो अपेक्षित रही है। प्रदेश में आपदा प्रबंधन तंत्र को भी केन्द्र से ऑक्सीजन की दरकार रहती है। पूर्व कांग्रेस सरकार में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के वाइस चेयरमैन होने के नाते मैंने आपदा प्रबंधन तंत्र की बारीकियों को करीब से देखा व परखा है। तब लोगों को बड़े पैमाने पर आपदाओं के प्रति जागरूक करने के लिए विशेष अभियान भी चलाया गया था। नेहरू युवा केन्द्र व युवक मंडलों को आपात स्थिति में राहत एवं बचाव कार्यों में सरकारी तंत्र को सहयोग देने के लिए प्रशिक्षित भी किया गया। मेरा अपना यह मानना है कि हिमाचल प्रदेश ही नहीं बल्कि तमाम पर्वतीय राज्यों की भौगोलिक संरचना के अनुरूप केन्द्र सरकार को वहां आपदा प्रबंधन तंत्र को सुदृढ़ करने के लिए एक विस्तृत कार्य योजना बनाकर उसे अमलीजामा पहनाना चाहिए। इन राज्यों में आपदा प्रबंधन बटालियनें स्थापित होनी चाहिएं। अत्याधुनिक उपकरण जिला व उपमंडल स्तर पर मुहैया करवाए जाने चाहिएं। 

इस बार प्रदेश में बारिश व बाढ़ का जो प्रकोप हुआ है, उससे हजारों लोग प्रभावित हुए हैं। ये लोग आर्थिक मदद व पुनर्वास की आशा में बैठे हैं। केन्द्र सरकार को अविलम्ब कम से कम 2000 करोड़ की राहत राशि तुरंत प्रदेश के लिए जारी करनी चाहिए। प्रदेश के प्रभावित लोगों को केन्द्र की टीमों के प्रदेश में हालात का जायजा लेने आने और फिर अपनी रिपोर्ट केन्द्र को सौंपने जैसी प्रक्रिया के लम्बे इंतजार का मोहताज नहीं बनाया जाना चाहिए। मोदी सरकार का हिमाचल प्रेम प्राकृतिक आपदा की इस घड़ी में धरातल पर दिखना चाहिए। प्रदेश के समर्थ लोगों को भी मुख्यमंत्री राहत कोष में अधिक से अधिक योगदान देने के लिए स्वेच्छा से आगे आना चाहिए। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर प्रभावित लोगों की तरफ  मदद का हाथ आगे बढ़ाया जाना चाहिए। इस पर्वतीय प्रदेश के लोगों ने हिमाचल प्रदेश को देश के अग्रणी राज्यों में शुमार करने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है और यहां की विकास यात्रा में अपनी प्रमुख भूमिका निभाई है। देश के नवनिर्माण और देश की सरहदों की हिफाजत करने के लिए भी हिमाचलियों का योगदान किसी से छिपा हुआ नहीं है। 

प्राकृतिक आपदाएं दबे पांव आती हैं। ऐसे में प्रशासनिक तंत्र को भी चुस्त-दुरुस्त व चौकस रहने की जरूरत है। सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने से कोई फायदा नहीं होता। प्रदेश में कई जगह लोगों ने नदी-नालों के साथ घर बना लिए हैं। इससे कई अनमोल जिंदगियों पर हर समय खतरा मंडराता रहता है। प्रशासनिक तंत्र व संबंधित पंचायतों को भी चाहिए कि अगर उनके क्षेत्र में इस तरह जोखिम भरे स्थलों पर कोई घर बना रहा हो तो उसे पहले से ही जागरूक करके इस तरह के निर्माण को रोका जाए। हिमाचल प्रदेश भूकम्प की दृष्टि से भी बहुत संवेदनशील है। पहाड़ों में बेतरतीब इमारतों के निर्माण ने हजारों जिंदगियों को जोखिम में डाल दिया है। इसके नतीजे भयावह हो सकते हैं। इस पर्वतीय राज्य को अभी विकास के कई शिखर तय करने हैं। प्राकृतिक आपदाएं प्रदेश की आर्थिक स्थिति को भी पटरी से उतार देती हैं। इनसे निपटने के लिए एक दीर्घकालिक कारगर नीति बनाकर उसे अमलीजामा पहनाने की जरूरत है। बहरहाल प्रदेश की निगाहें केन्द्र सरकार पर टिकी हैं और केन्द्र को तुरंत  मदद का पैकेज प्रदेश के लिए घोषित करना चाहिए।-राजेन्द्र राणा(विधायक हिमाचल प्रदेश)

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