ई-गवर्नैंस को बढ़ावा देकर पाया जा सकता है भ्रष्टाचार पर काबू

Edited By ,Updated: 12 Aug, 2022 04:30 AM

corruption can be overcome by promoting e governance

पिछले वर्ष केंद्र एवं राज्यों में कार्यरत सभी आई.ए.एस. अधिकारियों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने तथा उसका स्रोत बताने के लिए कहा गया था। अगर किसी अधिकारी ने परिवार से बाहर के

पिछले वर्ष केंद्र एवं राज्यों में कार्यरत सभी आई.ए.एस. अधिकारियों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने तथा उसका स्रोत बताने के लिए कहा गया था। अगर किसी अधिकारी ने परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति के नाम पर कोई अचल संपत्ति ली है, तो उसका भी ब्यौरा देना था। लेकिन लोक सेवकों की उदासीनता ने सरकार के कान खड़े कर दिए हैं। 

बहरहाल, कई अधिकारियों का कहना है कि संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करना व्यावहारिक रूप से ठीक नहीं है। मालूम हो कि पब्लिक सर्वैंट अर्थात लोकसेवकों की भर्ती पब्लिक सर्विस कमीशन करता है और नियुक्ति के उपरांत वे राज्यों में अपनी सेवाएं देते हैं। लेकिन जब वे अपना सेवक धर्म भूल कर जनता का मालिक बन जाते हैं, तब उन पर कठोर नियंत्रण लगाना जरूरी हो जाता है। 

बता दें कि नौकरशाही एक शक्ति-संपन्न संस्था है और शक्ति सदैव सीमा का उल्लंघन करती है। लार्ड एक्टन ने कहा है कि ‘शक्ति भ्रष्ट करती है’। इसीलिए प्रशासन पर नियंत्रण बाबत अनेक नियम, विनियम, अधिनियम तथा लोकसेवक आचार संहिता बनाई गई है। उसी आचार संहिता में कहा गया है कि लोकसेवक किसी राजनीतिक पार्टी से संबंध नहीं रखेगा, किसी प्रकार का व्यापार नहीं करेगा, अगर उसके परिवार का कोई सदस्य व्यापार करता है तो उसकी जानकारी सांझा करेगा, अपनी संपत्ति का विवरण प्रस्तुत करेगा आदि। 

बता दें कि संपत्ति का ब्यौरा नहीं देने वाले आई.ए.एस. अधिकारियों के खिलाफ केंद्र सरकार अब कड़े प्रावधान लाने की तैयारी कर रही है। केंद्र सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद हर साल करीब डेढ़ सौ आई.ए.एस. अफसर अपनी संपत्ति का वाॢषक ब्यौरा नहीं दे रहे हैं। उन पर दबाव बनाने के लिए उनके नाम वैबसाइट पर डाले जाते हैं और विजीलैंस क्लीयरैंस रोकने का प्रावधान है, लेकिन ये उपाय असरदार नहीं हो रहे हैं। अब सरकार ने नए और कड़े उपाय तलाशने शुरू कर दिए हैं। बहरहाल, अभी विभिन्न पक्षों से इस बाबत सुझाव भी मांगे जा रहे हैं। जिसमें प्रोन्नति रोकने से लेकर महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां नहीं करने जैसे प्रावधानों पर भी विचार किया जा रहा है। 

सांच को आंच क्या: राबर्ट डोनहम की एक प्रसिद्ध उक्ति है कि ‘किसी भी संस्कृति का पतन लोक प्रशासन के पतन के कारण होता है’। अत: लोक सेवकों के मात्र निजी जीवन में ही नहीं, बल्कि सार्वजनिक जीवन में भी मूल्यों और उनकी नैतिकता का संकलन होना अनिवार्य है, क्योंकि अधिकारी लोकसेवक के साथ समाज का आदर्श व्यक्ति भी होता है जिससे लोग प्रेरणा लेते हैं। लेकिन वही अधिकारी अगर भ्रष्ट और धन कुबेर बनने की लालसा रखता हो तो समाज में गलत संदेश जाता है। इसलिए लोक सेवक को अपनी छवि साफ -सुथरी रखनी चाहिए। 

लेकिन चिंता की बात है कि कार्मिक मंत्रालय के दस्तावेजों के अनुसार पिछले साल 158 आई.ए.एस. अधिकारियों ने संपत्ति का ब्यौरा ही नहीं दिया। जबकि 2020 में यह संख्या 146 तथा 2019 में 128 थी। इनमें 64 अफसर ऐसे थे, जिन्होंने लगातार 2 साल और 44 अफसरों ने लगातार 3 साल और 32 अफसरों ने 3 साल से अधिक समय से संपत्ति का वार्षिक ब्यौरा नहीं दिया है। इनमें सबसे अधिक (32) मध्य प्रदेश कैडर के आई.ए.एस. अधिकारी हैं। 

अब सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि अफसर संपत्ति का ब्यौरा देने से डरते हैं? रिपोर्ट में कहा गया कि बड़ी संख्या में आई.ए.एस. अधिकारी हर साल अचल संपत्ति रिटर्न दाखिल नहीं कर रहे। यह बात प्रणाली में गंभीर खराबी की ओर इशारा करती है। बहरहाल अब जब इन अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी तो निश्चित ही एक नजीर बनेगी, जो प्रशासन की स्वच्छता के लिए जरूरी है। 

बता दें कि संपत्ति का ब्यौरा देने बाबत नियम कोई हाल फिलहाल में नहीं बनाया गया। कार्मिक मंत्रालय ने नौकरशाहों के लिए अचल संपत्ति का ब्यौरा देने के नियम दशकों पहले ही तैयार किए थे, लेकिन ब्यौरे की सूचनाओं के प्रकार में कई बार बदलाव किए गए। इसके बावजूद इसका शत प्रतिशत क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा। इस नियम को लागू करने का उद्देश्य प्रशासन में सुधार और पारदर्शिता लाना था, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद यह व्यवस्था प्रभावी तरीके से लागू नहीं हो पा रही। 

बता दें कि देश में करीब 6000 आई.ए.एस. अधिकारी कार्यरत हैं। ऐसे में प्रशासन को मजबूत, अनुक्रियाशील, पारदर्शी और जवाबदेह बनाना जरूरी हो जाता है क्योंकि अगर एक आम व्यक्ति अनुचित कार्य करता है तो केवल परिवार अथवा उसके कुटुम्ब तक गलत प्रभाव पड़ता है, किन्तु अगर एक प्रशासनिक अधिकारी अनुचित कार्य अथवा भ्रष्ट आचरण करता है तो उसका प्रभाव समूचे समाज पर पड़ता है, क्योंकि वह समाज का प्रतिबिंब होता है। 

दंड का हो भरपूर प्रचार प्रसार : कुछ समय पहले सरकार ने भ्रष्ट नौकरशाहों पर सख्त रवैया अपनाते हुए उन्हें समयपूर्व ही सेवानिवृत्त कर दिया था। देखा जाए तो प्रतिवर्ष कई हजार सरकारी अधिकारी दंडित होते हैं किंतु उनके नामों और कारनामों का मीडिया और सोशल मीडिया में प्रचार न होने के कारण लोगों को पता ही नहीं चलता कि सरकारी नौकरी में अधिकारी दंडित भी होते हैं। वास्तविकता में लोगों की मानसिकता बन चुकी है कि सरकारी नौकरी एक सुरक्षित नौकरी है। लिहाजा अगर दंडित अधिकारियों के नाम और कारनामे को उचित रूप से उजागर किया जाए तो सरकारी सेवा में आने वाले लोग भ्रष्टाचार करने से डरेंगे। 

अत: नौकरशाही को चाहिए कि वह लोकहितवादी तथा जन कल्याणकारी भावना को सर्वोपरि रखे। सिविल सेवा में प्रवेश के समय मनोवैज्ञानिक परीक्षण अनिवार्य होना चाहिए ताकि इनकी मन:स्थिति का पता चल सके। इससे देश के निचले स्तर से भ्रष्टाचार नियंत्रित होगा तथा देश में समरसता तथा राष्ट्रीयता की भावना मजबूत होगी। साथ ही ई-गवर्नैंस को अधिक से अधिक बढ़ावा देना होगा, जिसके लिए केंद्र सरकार लगातार प्रयास कर रही है। इसमें जनता और लोक सेवक के संबंधों में दूरियां निश्चित तौर पर होती हैं, किंतु घूस का प्रचलन भी कम होता है। अत: ई-गवर्नैंस को मजबूत करके नौकरशाही को मजबूत किया जा सकता है।-लालजी जायसवाल 
 

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