‘सम्पन्न देश को भी खोखला कर देता है भ्रष्टाचार’

Edited By ,Updated: 28 Nov, 2020 04:56 AM

corruption makes the rich country hollow

भ्रष्टाचार आज किसी एक देश की नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व की समस्या बन गई है। अमरीका जैसे सम्पन्न देशों में भी भ्रष्टाचार के कारण असमानताएं देखने को मिलती हैं। भारत जिसे सोने की चिडिय़ा कहा जाता था, आज विश्व में भ्रष्टाचार के मामले में 80वें पायदान ...

भ्रष्टाचार आज किसी एक देश की नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व की समस्या बन गई है। अमरीका जैसे सम्पन्न देशों में भी भ्रष्टाचार के कारण असमानताएं देखने को मिलती हैं। भारत जिसे सोने की चिडिय़ा कहा जाता था, आज विश्व में भ्रष्टाचार के मामले में 80वें पायदान पर है। भ्रष्टाचार के कई रंग रूप हैं, जैसे सरकारी कर्मचारियों द्वारा घूस लेना, कालाबाजारी, सस्ते सामान को खरीद कर उसका भंडारण करना तथा ऊंचे दामों पर बेचना, चुनावों में वोटरों को रिझाने के लिए पैसे देना इत्यादि। 

आर्थिक, सामाजिक या फिर सम्मान, पद प्रतिष्ठा की लालसा के कारण भी व्यक्ति अपने आपको भ्रष्ट बना लेता है। इसी तरह हीनता या ईष्र्या की भावना के कारण भी व्यक्ति दुराचार करता रहता है। जीवन का कोई भी क्षेत्र इसके प्रभाव से मुक्त नहीं है तथा यह संक्रामक रोग की तरह फैलता ही जा रहा है। भ्रष्ट देशों की तालिका में कोलंबिया, मैक्सिको, घाना, म्यांमार, सऊदी अरब, ब्राजील, कीनिया, सबसे ऊंचे पायदान पर हैं। रूस व अमरीका जैसे सम्पन्न देश भी भ्रष्टाचार के मामले में क्रमश: 10वें-23वें पायदान पर है। 

वेनेजुएला जैसे सम्पन्न देश में भ्रष्टाचार से उत्पन्न हुई स्थिति के कारण वहां के लोगों को दूसरे देशों में पलायन करना पड़ रहा है। भ्रष्टाचार के संक्रामक रोग से जनता का सरकार पर विश्वास उठने लगता है तथा वे सरकार की नीतियों के विरुद्ध अपनी आवाज उठाने लगते हैं तथा इसका सीधा प्रभाव देश की आॢथक व्यवस्था पर पड़ता है। असमानताएं बढऩे लगती हैं, अमीर और गरीब की खाई बढऩे लगती है। इस समय अगर हम भारत की बात करें तो केवल 10 प्रतिशत लोगों के पास देश की 70 प्रतिशत सम्पदा है। यह ठीक है कि आय की असमानता होने के अन्य और भी कई कारण हैं मगर भ्रष्टाचार जोकि विभिन्न रूपों में व्यापक है, भी इसका एक मुख्य घटक है। भारत में आज से 7-8 वर्ष पहले घोटालों की भरमार लगी हुई थी। उदाहरण के लिए बोफोर्स घोटाला, अगस्ता वेस्ट लैंड हैलीकाप्टर घोटाला, अनाज व चारा घोटाला, सत्यम स्टाम्प, कॉमनवैल्थ व कोयला खदान घोटाला इत्यादि प्रमुख घोटाले हैं जिन्होंने देश की आॢथक स्थिति को तहस-नहस कर दिया था। 

यह ठीक है कि मोदी जी ने अपने मंत्रियों पर अपने अनुशासन रूपी छांटे द्वारा लगाम लगा कर देश में कोई भी बड़ा घोटाला नहीं होने दिया है मगर निचले स्तर पर हर विभाग में यह बीमारी दीमक की तरह अर्थव्यवस्था को चाट रही है तथा आम लोगों को अपने किसी भी सरकारी काम के लिए कम या अधिक, किसी न किसी रूप में घूस देनी पड़ रही है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में लगभग 25 प्रतिशत माल का रिसाव हो जाता है। गरीबों के उत्थान के लिए मनरेगा जैसी योजनाओं में घोटाला किया जा रहा है।

लोक निर्माण विभाग व अन्य ऐसे विभाग जिनका काम इमारतें व सड़कें बनाना है, धड़ल्ले से सरकारी धन को लूट रहे हैं तथा गहरे समुद्र में बड़ी मछलियों की तरह इस तरह पानी पी रहे हैं जो पानी को पीते हुए दिखाई नहीं दे रहे। नौकरशाही के भ्रष्टाचार की तो बात ही निराली है। पुलिस, पटवारी, तहसीलदार, आबकारी व आय विभाग विभिन्न रूपों से भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं। विलंब का मतलब न्याय को नकारना ही होता है तथा इससे परोक्ष रूप में भ्रष्टाचार बढ़ता ही है। स्विस बैंक के निदेशक के अनुसार भारत का लगभग 280 लाख करोड़ इस बैंक में जमा पड़ा है।

हिमाचल की बात कहें तो अवैध खनन का परम्परागत धंधा अपनी जड़ें पूरी तरह फैला बैठा है। हिमाचल की खड्डों से रेत व बजरी बड़े-बड़े टिप्परों द्वारा दूसरे राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान इत्यादि राज्यों में भेजी जा रही है। विपक्ष के विधायक भी इसलिए चुप रहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि जब उनकी बारी आएगी तो वह और भी बड़े पैमाने पर अपने गुर्गों से यह गोरखधंधा करवाएंगे। इन अवैध धंधों को रोकने के लिए एक पूरा खनन विभाग बना रखा है मगर यह विभाग तो इस अवैध धंधे को और भी सुविधाजनक बनाने में जुटा रहता है। खड्डों व नदियों के सीने इस तरह छलनी किए जा रहे हैं कि इसका बदला तो कुदरत केवल बाढ़ों व अन्य प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से ही लेकर हटेगी। 

केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार रूपी दैत्य की नाक में नुकेल डालने के लिए काफी प्रयास किए हैं जिनका विवरण इस प्रकार से है। सूचना का अधिकार अधिनियम (2005), लोक सेवा अधिकार कानून (2009), भ्रष्टाचार निरोधक कानून (1988), बेनामी लेन-देन अधिनियम, चुनाव सुधार, लोकपाल अधिनियम (2014), मनी लांड्रिंग एक्ट तथा केंद्रीय सतर्कता आयोग का गठन इत्यादि कई कदम उठाए गए हैं। सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधक एक्ट 1988 में वर्ष 2018 में कुछ संशोधन किए हैं मगर कानूनी विशेषज्ञों की राय में इसमें कुछ कमियां छोड़ दी गई हैं। 

नए संशोधन की धारा (17-ए) के अंतर्गत किसी भी सरकारी नौकर के विरुद्ध भ्रष्टाचार की शिकायत (धरपकड़ को छोड़कर) की जांच सरकार की इजाजत के बिना नहीं की जा सकती और कई मामलों में सरकार जानबूझ कर अपने चहेते अपराधियों के संबंध में इजाजत देती भी नहीं है। इस तरह हम कह सकते हैं कि मोदी जी का भारत को विश्वगुरु बनाने का सपना तभी साकार होगा जब उनकी सरकार के अपने सभी साथी तथा राज्यों में विशेषतया अपनी पार्टी से शासित राज्यों के सभी मंत्री व विधायक अपने आचरण में सुधार लाकर दूसरों के लिए मिसाल प्रस्तुत करें। राजनीतिज्ञों व कानून को कार्यान्वित करने वाली संस्थाओं की आपसी सांठ-गांठ की बेडिय़ों को तोडऩा भी आवश्यक है।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड)
 

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