‘एमरजैंसी शक्तियों’ की धौंस दिखाने वाले डी.सी. को जब लाला जी ने सुनाईं खरी-खरी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Sep, 2017 01:57 AM

dc showcasing the emergency powers when lala ji heard the truth

पंजाब की राजनीति में जिन नेताओं का उल्लेख होता है उनमें से लाला जगत नारायण जी का नाम सर्वोपरि....

पंजाब की राजनीति में जिन नेताओं का उल्लेख होता है उनमें से लाला जगत नारायण जी का नाम सर्वोपरि है। देश विभाजन के बाद यद्यपि 2 मुख्यमंत्री पंजाब के बने और लाला जी भीमसेन सच्चर के मंत्रिमंडल में सुशोभित रहे परंतु वास्तविकता यही है कि पंजाब की राजनीति ही नहीं, बल्कि इतिहास को भी लाला जी ने अपने जीवन में अपने अंदाज से प्रभावित किया और अपनी अमिट छाप भी छोड़ी। 

लाला जी अगस्त 1947 से पहले भी कांग्रेस में थे और लाहौर से जालंधर आकर भी इसी पार्टी में प्रमुख पदों पर रहे। फिर एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अपनी नई राजनीतिक पार्टी  ‘लोकराज पार्टी’ के नाम से भी बनाई और उसमें विरोधी पक्ष के कई महत्वपूर्ण नेताओं-कार्यकत्र्ताओं को शामिल किया। यह पार्टी सही अर्थों में कांग्रेस के विरोध और समूचे विपक्ष की एकता के लक्ष्य की ओर एक कदम था। समय बीतने पर वह अवसर भी आया जब समूचा विरोधी पक्ष जनता पार्टी के रूप में कांग्रेस के विरुद्ध खड़ा हो गया और एमरजैंसी हटने के बाद हुए आम चुनाव में पंजाब से लेकर बंगाल तक (दोनों राज्यों के बीच आने वाले सभी राज्यों में भी) कांग्रेस का सफाया हो गया और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री होते हुए भी चुनाव हार गईं। 

लाला जी की राजनीतिक सूझबूझ का प्रदेश और देश की जनता को लाभ देने के लिए एक बार पंजाब के कई प्रमुख विरोधी नेताओं ने उन्हें राज्यसभा का चुनाव लडऩे के लिए प्रेरित किया। तब अकाली दल और जनसंघ आदि ने उनका भरपूर समर्थन किया। राज्यसभा का यह चुनाव तब इतना महत्व धारण कर गया कि स्वयं प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने पूरा जोर लगाया कि लाला जी को हराना है परंतु वह पूरी शान से जीते, फिर नेहरू जी ने भी लाला जी की जीत से प्रभावित होकर संसद भवन में उनको बधाई दी। लाला जी के जीवन की बहुत-सी घटनाएं हैं। मुझे 1960 से लेकर 1981 तक लाला जी को निकट से देखने, मिलने और जानने का अवसर मिला है और उनके जीवन की कुछ घटनाओं का मैं प्रत्यक्षदर्शी भी हूं। ऐसी ही एक घटना का मैं यहां उल्लेख कर रहा हूं, जिससे लाला जी की स्पष्टवादिता, निर्भीकता और स्वतंत्रता प्रेम की झलक मिलती है। 

25 जून, 1975 को उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में एमरजैंसी आपात स्थिति के लागू होने का ऐलान कर दिया था। इस घोषणा की आड़ में देश के समूचे विपक्ष के नेताओं, सक्रिय कार्यकत्र्ताओं और कांग्रेस के अंदर इंदिरा गांधी के आलोचकों को जेल में ठूंस कर लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया। स्वतंत्र भारत में संविधान द्वारा देशवासियों को प्राप्त सभी मौलिक अधिकारों से तत्काल वंचित कर दिया गया। समाचारपत्रों पर सैंसर बिठा दिया गया अर्थात विपक्ष के पक्ष में और शासकों के विरुद्ध कुछ भी छापा नहीं जा सकता था। इसके उल्लंघन पर दोषी को जेल डालना मामूली बात हो गई। 

आपात स्थिति लागू होने के अगले दिन उस समय के जालंधर के डिप्टी कमिश्नर श्री राम गोपाल ने पत्रकार सम्मेलन बुलाया। मैं भी इसमें आमंत्रित था। तब लाला जी कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में स्वयं जाया करते थे। अत: वह भी विशेष रूप से पत्रकार सम्मेलन में पधारे। डिप्टी कमिश्रर ने पत्रकारों को आपातकाल के बाद जिला अधिकारियों को प्राप्त असीमित अधिकारों की विस्तृत जानकारी दी और साथ ही सरकार विरोधी कोई समाचार प्रकाशन के प्रति ताडऩा की। यह भी भय दिखाया कि अब चूंकि समाचारपत्रों पर सरकार ने सैंसर लागू कर दिया है तो सरकार के विरुद्ध अगर किसी ने कोई भी सामग्री छापी तो उसे जेल में डाल दिया जाएगा। 

डी.सी. की इन बातों को अभी तक बाकी पत्रकारों समेत सुन रहे लाला जी ने तुरंत बेखौफ होकर चुनौती भरे शब्दों में कहा, ‘‘डी.सी. साहब, हमने अंग्रेज की जेलें देखी हैं, अब अपने आजाद देश की जेलों को भी देख लेंगे।’’ यह वाक्य मुझे पूरे का पूरा आज तक याद है। डी.सी. ने इसके कुछ मिनटों बाद ही पत्रकार सम्मेलन खत्म कर दिया। मैंने यह दृश्य देखा, वार्तालाप सुने तो मुझे अंदर ही अंदर यह बात खटक गई कि डी.सी. चाहे किसी और नेता को गिरफ्तार करे या न करे लेकिन लाला जी को शीघ्र और निश्चित रूप से गिरफ्तार अवश्य करेंगे और उसी शाम लाला जी को गिरफ्तार कर लिया गया। लाला जी का स्वतंत्रता प्रेम और समाचार पत्र में सच्चाई छापने के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए एक जागरूक नागरिक सहज ही यह सोचने को मजबूर होता है कि कहां तो इंदिरा गांधी ने एमरजैंसी में सैंसर लगाकर समाचार पत्रों का गला दबाया, जबकि उनके पिता जवाहर लाल नेहरू स्वतंत्र पत्रकारिता के जबरदस्त हिमायती थे। 

नेहरू जी का यह कथन बहुत प्रसिद्ध हुआ और आज भी है ‘‘I Would rather have a complete free Press with all the damages involved in the wrong use of that freedom than a suppressed or reguated Press" (‘‘मैं सम्पूर्ण रूप से स्वतंत्र प्रैस के पक्ष में हूं, चाहे इस स्वतंत्रता के गलत प्रयोग से हानियां हो सकती हैं परंतु दबाय गए और नियंत्रित प्रैस के पक्ष में नहीं हूं।’’) एमरजैंसी फिर 19 महीनों के बाद जैसे ही नर्म करके देश में आम चुनाव कराए गए (विदेशों में इंदिरा गांधी द्वारा एमरजैंसी लगाने की भरपूर आलोचना हुई थी) तब जनता पार्टी का गठन लगभग समूचे विपक्ष को लेकर किया गया। सारे देश के साथ पंजाब में भी लोकसभा के चुनाव हुए। तब लाला जी ने जनसंघ के अतिरिक्त अकाली नेताओं को अपनी चोटी के नेता और मजबूत उम्मीदवार खड़े करने की सलाह दी। 

इस तरह पंजाब की 13 लोकसभा सीटों में से तब अकाली दल के 9 सदस्य जीते और बाकी 4 सीटों पर जनता पार्टी के अन्य 4 नेता चुने गए । यह पहला अवसर था कि अकाली दल के 9 उम्मीदवार लोकसभा में पहुंचे। यह सब जनता लहर और लाला जी की राजनीतिक दूरदर्शिता का ही परिणाम था। पंजाब के रहे मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों द्वारा उठाए गए कुछ जनता विरोधी कदमों का लाला जी ने भरपूर विरोध किया और फिर उनके खिलाफ एक सांझा मोर्चा भी बनाया, जिसमें मास्टर तारा सिंह, चौ. देवी लाल, श्री प्रबोध चंद्र, मौलवी अब्दुल गनी डार और स्वयं लाला जी शामिल हुए। एक समय ऐसा भी आया कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सरदार कैरों की अनियमितताओं की जांच के लिए दास कमीशन का गठन करना पड़ा और इसी कमीशन की सिफारिशों के फलस्वरूप सरदार कैरों को मुख्यमंत्री की गद्दी छोडऩी पड़ी थी।

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