ऋण माफी से दूर नहीं होंगी किसानों की तकलीफें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Jun, 2017 11:37 PM

debt forgiveness will not be far away from the problems of farmers

यू.पी. की आदित्यनाथ योगी की भाजपा सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों का....

यू.पी. की आदित्यनाथ योगी की भाजपा सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों का 36 हजार करोड़ रुपए ऋण माफ करके लोकलुभावन नीतियों का मार्ग प्रशस्त किया है। राज्य विधानसभा के चुनाव दौरान मई 2017 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गई सार्वजनिक घोषणा पर सद्भावनापूर्ण ढंग से अमल करते हुए यू.पी. के मुख्यमंत्री ने यह कदम उठाया। 

फिर भी यह सवाल पूछा जा सकता है कि क्या ऐसा करने से यू.पी. और अन्य राज्य के किसानों की बहुआयामी तकलीफों का समाधान हो सकेगा। ईमानदारी भरा उत्तर यही होगा कि नहीं। लेकिन हमारे नेताओं की राजनीतिक मानसिकता ही ऐसी बन चुकी है कि वे तदर्थ आधार पर काम करते हैं न कि देश की 70 प्रतिशत जनता की समस्याओं को मद्देनजर रखते हुए। संकट का तदर्थ प्रबंधन ही हर सरकार का मानक व्यवहार चला आ रहा है। एक संकट में से दूसरा पैदा होता रहता है और इसी प्रकार तदर्थ प्रतिक्रियाओं के एक सैट के बाद दूसरा आता रहता है। व्यावहारिक रूप में सरकार की कृषि नीति का भी यही हाल है बेशक यदा-कदा बहुत बड़ी-बड़ी योजनाओं और कार्यक्रमों की घोषणा होती रहती है। 

70 साल की आजादी के फलस्वरूप भी छोटे और सीमांत किसानों तथा कृषि मजदूरों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है। जहां तक केन्द्रीय और राज्य सरकारों का संबंध है वे कृषि मोर्चे पर अंधेरे में ही टटोलती रहती हैं। ऐसी अत्यंत गम्भीर स्थिति में आशा की किरण तब दिखाई देने लगी जब महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और यहां तक कि पंजाब और गुजरात के किसानों ने भी अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। सत्तारूढ़ अभिजात्य वर्ग के लिए स्पष्ट संकेत हैं : आप हम लोगों को घड़े की मछली नहीं समझ सकते। 

हाल ही में संकट के मुंह में फंसे हुए किसान भारी संख्या में तमिलनाडु के गांवों से गले में इंसानी खोपडिय़ां पहनकर अपनी दुख तकलीफों के प्रति अधिकारियों की बेरुखी के विरुद्ध रोष प्रकट करने के लिए नई दिल्ली के जंतर मंतर पर पहुंचे। मुझे खेद के साथ यह कहना पड़ रहा है कि एक भी केन्द्रीय नेता इन लोगों की शिकायतें सुनने नहीं गया। किसानों की तकलीफों के प्रति हमारे नेताओं की संवेदनहीनता बहुत ही त्रासदीपूर्ण है। विपक्ष में बैठे हुए लोग भी हर उस अवसर पर दुहाई नहीं मचाते जिसका वे निश्चय ही राजनीतिक रूप में लाभ ले सकते हैं। वैसे जब वे खुद सत्ता में आते हैं तो उनका अपना रिकार्ड भी बहुत शर्मनाक होता है। यही तो भारतीय किसानों की सबसे बड़ी ट्रैजडी है। 

कई दशकों से कृषि पर सूखे, जोत से छोटे आकार, लगातार घटते जलस्तर, अपर्याप्त सिंचाई सुविधाओं, बीजों की घटिया क्वालिटी, भूमि की घटती उर्वरा शक्ति, भूस्खलन, मशीनीकरण तथा कृषि विपणन की कमी, भंडारण की घटिया सुविधाएं, आवाजाही की सुविधाओं की कमी और पूंजी की किल्लत के बादल छाए हुए हैं। अबकी बार अधिकतर किसानों की समस्या बारिश का कम होना नहीं थी और न ही फसलमार हुई। फिर भी किसानों की आत्महत्याओं में ङ्क्षचताजनक हद तक वृद्धि हुई है क्योंकि शानदार मानसून के कारण फसल भी बहुत बढिय़ा हुई है। इससे हमारी व्यवस्था के विभिन्न मोर्चों पर कार्यशीलता के मामले में गम्भीर त्रुटियां उजागर हुई हैं। 

योगी के रास्ते पर चलते महाराष्ट्र में भाजपा के ही मुख्यमंत्री फडऩवीस ने 40 लाख छोटे और सीमांत किसानों का ऋण माफ करने का रास्ता अपनाया। इस ऋण को अदा करने की मियाद काफी समय पहले गुजर चुकी थी। देवेन्द्र फडऩवीस को शायद यह पता नहीं कि किसानों का वर्तमान आक्रोश नकदी फसलों की कीमतों के धराशाही होने का परिणाम है। कीमतों में यह गिरावट कुछ हद तक शानदार फसल का परिणाम  है लेकिन मुख्य रूप में यह नोटबंदी के फलस्वरूप पैदा हुई नकदी की कमी का नतीजा थी। इसी मुद्दे पर तो राज्य सरकार को कृषि क्षेत्र की स्वस्थ वृद्धि के लिए सही समाधान उपलब्ध करवाना चाहिए था। मुख्यमंत्री को इस मुद्दे पर भी चिंतन-मनन करना होगा कि किसानों को अपनी फसलों के लिए पर्याप्त पैसा कैसे मिल सके। 

भाजपा शासित यू.पी. और महाराष्ट्र के बाद पंजाब तीसरा राज्य है जिसने छोटे और सीमांत किसानों के 2 लाख रुपए तक के ऋण माफ कर दिए हैं। कांग्रेस पार्टी के संबंधित मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का कहना है कि इस ऋण माफी से 10 लाख 25 हजार किसानों को लाभ मिलेगा। इसके अलावा राज्य सरकार आत्महत्या करने वाले किसान परिवारों का संस्थागत ऋण स्वयं अदा करेगी। इस ऋण माफी से राज्य के खजाने पर 24 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा, जबकि पंजाब पहले ही बुरी तरह कर्ज के बोझ से पिस रहा है। मध्य प्रदेश में किसानों के हिंसक रोष प्रदर्शन ने भाजपा को निद्रावस्था में ही दबोच लिया। गत एक दशक से भी मध्य प्रदेश में गेहूं की पैदावार का रिकार्ड कोई उल्लेखनीय नहीं है। इसकी सरकार का मुख्य फोकस खाद्यान्न अर्थव्यवस्था पर ही है जो कि मौसमी उतार-चढ़ाव तथा अन्य कारकों से प्रभावित होती है। 

लगातार फैलती किसानों की बेचैनी 6 जून को राष्ट्रीय मीडिया के समाचारों की सुर्खी बनी। यह शिवराज सिंह की सरकार की प्रचंड कृषि संकट से निपटने में विफलता की निशानी है। विपक्ष के विभिन्न नेताओं द्वारा और खास तौर पर कांग्रेस के नेताओं द्वारा जिस घटिया तरीके से राजनीतिक पत्ते खेले गए उससे स्थिति अत्यंत बदतर हो गई। किसानों का कहना है कि वे फसलों के लगातार लुुढ़कते मूल्य की परेशानी से निकल नहीं पा रहे हैं। एक तरफ तो नोटबंदी के कारण नकदी की तंगी पैदा हुई है और ऊपर से बिचौलिए उनका खून चूस रहे हैं। प्रधानमंत्री अथवा उनके वित्त मंत्री इस बात को मानें या न मानें लेकिन सच्चाई यह है कि गत वर्ष के अंत में लागू की गई नोटबंदी ने कृषि क्षेत्र में तबाही मचाई हुई है।     

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