अमरीका को ठेंगा, चीन और ईरान के बीच बड़ी ‘डील’

Edited By ,Updated: 15 Jul, 2020 03:37 AM

defeating america big deal between china and iran

निवेश और सुरक्षा संधि काफी हद तक मध्यपूर्व में चीन के प्रभाव को बढ़ाएगी। ईरान को एक आॢथक जीवन रेखा मिलेगी और अमरीका के चीन तथा ईरान के साथ जलने के नए ङ्क्षबदू तैयार होंगे। ईरान और चीन ने चुपचाप एक व्यापक आर्थिक और सुरक्षा सांझेदारी का मसौदा तैयार...

निवेश और सुरक्षा संधि काफी हद तक मध्यपूर्व में चीन के प्रभाव को बढ़ाएगी। ईरान को एक आॢथक जीवन रेखा मिलेगी और अमरीका के चीन तथा ईरान के साथ जलने के नए ङ्क्षबदू तैयार होंगे। ईरान और चीन ने चुपचाप एक व्यापक आर्थिक और सुरक्षा सांझेदारी का मसौदा तैयार किया है, जो अपनी परमाणु और सैन्य महत्वाकांक्षाओं के कारण ईरानी सरकार को अलग करने के ट्रम्प प्रशासन के प्रयासों को ठेंगा दिखाएगा। इससे ईरान में ऊर्जा और अन्य क्षेत्र में अरबों डालर के चीनी निवेश का रास्ता साफ हो जाएगा। 

न्यूयार्क टाइम्स द्वारा प्राप्त एक 18 पृष्ठों के दस्तावेजों में प्रस्तावित समझौते में विस्तृत सांझेदारी, बैंकिंग, दूरसंचार, बंदरगाहों, रेलवे और दर्जन भर अन्य परियोजनाओं में चीनी उपस्थिति का विस्तार होने के बारे में पता चला है।  बदले में चीन को नियमित रूप से अगले 25 वर्षों में ईरानी तेल की आपूर्ति में भारी छूट मिलेगी। दस्तावेज ने गहरे सैन्य सहयोग का बखान भी किया है जिससे इस क्षेत्र में चीन के कदम मजबूत होंगे जहां पर पूर्व में दशकों से अमरीका की रणनीतिक व्यस्तता रही है। दोनों देशों के बीच संयुक्त प्रशिक्षण और अभ्यास, संयुक्त अनुसंधान और हथियारों के विकास खुफिया सांझाकरण के लिए करार हुआ है। आतंकवाद, नशीली दवाओं और मानव तस्करी तथा सीमा पार अपराधों के साथ दोनों देश मिलकर लड़ेंगे। 2016 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पहली बार ईरान यात्रा के दौरान यह प्रस्ताव रखा था। इसे जून में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी के मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया। 

ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जरीफ ने पिछले सप्ताह कहा था कि चीन के साथ एक लम्बित समझौता है। ईरानी अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि यह द टाइम्स द्वारा प्राप्त दस्तावेज हैं जिन्हें अंतिम संस्करण कहा गया है। यह प्रस्ताव अभी तक ईरान की संसद को अनुमोदन या सार्वजनिक करने के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया है। ईरान में संदेह है कि ईरानी सरकार कितना कुछ चीन को देने के लिए तैयार है। पेइचिंग में अधिकारियों ने समझौते की शर्तों का खुलासा नहीं किया है और स्पष्ट नहीं है कि शी जिनपिंग की सरकार ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं या वह इसके बारे में कब घोषणा कर सकती है। यह साझेदारी चीन और संयुक्त राज्य अमरीका के बीच बिगड़ते संबंधों में संभावित रूप से जलन के नए बिंदू पैदा करेगी। 

2015 में अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और 6 अन्य राष्ट्रों के नेताओं द्वारा 2 साल की लम्बी बातचीत के बाद परमाणु समझौते को छोडऩे के बाद से ईरान के प्रति ट्रम्प प्रशासन की आक्रामक नीति को यह बड़ा झटका मिला है। ईरान में व्यापार करने वाली किसी भी कम्पनी के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली तक पहुंच में कटौती के खतरे सहित, अमरीकी प्रतिबंधों ने ईरान की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से विदेशी व्यापार और निवेश से दूर रखने में सफलता हासिल की थी। लेकिन तेहरान की हताशा ने इसे चीन की बांहों में धकेल दिया। ईरान को तेल की तकनीक के लिए भूख है। ईरान दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादकों में से एक रहा है लेकिन इसका निर्यात जोकि तेहरान का राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत है, 2018 में ट्रम्प प्रशासन द्वारा प्रतिबंध लगाने के बाद से गिर गया है। चीन को विदेशों से लगभग 70 प्रतिशत तेल मिलता है। यह पिछले साल एक दिन में 10 मिलियन बैरल से अधिक पर दुनिया का सबसे बड़ा आयातक रहा। 

ऐसे समय में जब संयुक्त राज्य अमरीका मंदी और कोरोना वायरस महामारी से उभर रहा है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेजी से अलग हो रहा है, पेइचिंग अमरीकी कमजोरी को महसूस करता है। ईरान के साथ मसौदा समझौते से पता लगता है कि अधिकांश देशों के विपरीत चीन अमरीका को बदनाम करने की स्थिति में है। अमरीका दंड का सामना करने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली है, जैसा कि राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा छेड़े गए व्यापार युद्ध से प्रतीत होता है। दस्तावेजों में कहा गया है कि 2 प्राचीन एशियाई संस्कृतियां, व्यापार, अर्थव्यवस्था, राजनीति और सुरक्षा के क्षेत्रों में एक समान दृष्टिकोण के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय हित के लिए एक-दूसरे के रणनीतिक सांझेदारी पर विचार करेंगे।

ईरान की चीन के साथ यह डील भारत को बाहर करके की गई ईरान में चीनी निवेश 25 वर्षों के लिए 400 बिलियन डालर का होगा। ईरान की चीन के साथ यह डील भारत को बाहर करके की गई। ईरान ने कहा है कि करार के 4 वर्ष बीत जाने के बाद भी भारत इस परियोजना के लिए निधि नहीं दे रहा है, इसलिए ईरान खुद ही चाबहार रेल परियोजना को पूरा करेगा। ईरान की इस घोषणा को भारत के लिए बड़ा कूटनीतिक झटका माना जा रहा है। 

सन् 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ईरान की यात्रा की थी जिस दौरान चाबहार करार पर हस्ताक्षर हुआ था। पूरी परियोजना पर करीब 1.6 अरब डालर का निवेश होना था। इस परियोजना के लिए इस्कान के इंजीनियर ईरान गए थे लेकिन अमरीकी प्रतिबंधों के डर से भारत ने रेल परियोजना पर काम को शुरू नहीं किया, वहीं ईरान ने रेलवे से कहा है कि वह भारत की मदद के बिना ही इस परियोजना को शुरू करेगा। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा कि हम ईरान के साथ व्यावहारिक सहयोग को लगातार आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं। 

मसौदा समझौते में करीब 100 परियोजनाएं शामिल हैं जिससे यूरेशिया में बैल्ट ‘एंड रोड इनिशिएटिव’ के माध्यम से शी जिनपिंग अपने आॢथक तथा कूटनीतिक प्रभाव को बढ़ाएंगे। यह एक विशाल सहायता एवं निवेश कार्यक्रम है। इन परियोजनाओं में एयरपोट्स, हाई स्पीड रेलवेज तथा सब-वे शामिल हैं। इससे लाखों ईरानियों को फायदा पहुंचेगा। इसके अलावा चीन उत्तरी-पश्चिम ईरान के माकू में फ्री ट्रेड जोन स्थापित करेगा। समझौते में चीन के लिए ईरान में 5-जी टैलीकम्युनिकेशन नैटवर्क का निर्माण करना भी शामिल है वहीं आलोचकों ने अफ्रीका तथा एशिया में निवेश परियोजनाओं को लेकर चीन की आलोचना की है जिससे कई देश कर्ज के बोझ तले दब गए। ईरान की कई बंदरगाहों में प्रस्तावित सहूलियतों के प्रति भी चिंता जताई गई है।-फरनाज फासीही तथा स्टीवन ली मायर्स

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