दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी : कचहरियों में फंसा संगत का ‘फतवा’

Edited By ,Updated: 24 Sep, 2021 04:47 AM

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22 अगस्त को हुए दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के आम चुनाव को एक महीना हो चुका है लेकिन अभी भी स्थिति साफ नहीं है कि कमेटी की सत्ता किसको मिलेगी। अपनी परंपरागत सीट पंजाबी बाग से चुनाव हारने के बाद मौजूदा कमेटी अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा एक...

22 अगस्त को हुए दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के आम चुनाव को एक महीना हो चुका है लेकिन अभी भी स्थिति साफ नहीं है कि कमेटी की सत्ता किसको मिलेगी। अपनी परंपरागत सीट पंजाबी बाग से चुनाव हारने के बाद मौजूदा कमेटी अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा एक महीना बीतने के बावजूद भी अभी तक कमेटी सदस्य नहीं बन पाए हैं। हालांकि इस बीच दो को-आप्शन सीटों के लिए चुनाव भी हुआ था लेकिन शिरोमणि अकाली दल ने सिरसा को को-आप्शन सीट पर उतारने की बजाय एस.जी.पी.सी. कोटे की नामजद सीट पर मौका दिया, जिस पर हुए कानूनी वाद-विवाद के बाद गुरुद्वारा चुनाव निदेशक ने सिरसा को अयोग्य घोषित कर दिया। 

बाकी रह गई तीन को-आप्शन सीटों का फैसला करने के लिए निदेशक गुरुद्वारा चुनाव ने शुक्रवार को नवनिर्वाचित कमेटी सदस्यों की बैठक बुलाई है। इसमें दिल्ली के सिंह सभा गुरुद्वारों के अध्यक्षों के नाम में से दो सदस्यों का लॉटरी से चुनाव किया जाएगा, जबकि शिरोमणि कमेटी की नामजद सीट पर भी एक सदस्य का चुनाव होगा। सिरसा के अलावा शिरोमणि कमेटी किसको नामजद करेगी, अभी तक उसको लेकर ऊहापोह की स्थिति है। सिरसा अभी भी अदालती विकल्पों पर जोर दे रहे हैं, ताकि उनकी अयोग्यता को कोर्ट के माध्यम से खारिज करवाया जा सके। 

बिगड़ सकता है बहुमत का आंकड़ा : इसके साथ ही एक दर्जन से अधिक याचिकाएं भी विभिन्न अदालतों में दर्ज हो चुकी हैं। इनमें से कुछ याचिकाओं पर अंतरिम आदेश के तौर पर निर्वाचित सदस्यों के वोट डालने पर रोक लगने की आशंका भी जताई जा रही है। यदि विपक्ष सत्ता पक्ष के 5-6 सदस्यों का वोट निलंबित करवाने में कामयाब हो जाता है तो बहुमत का सारा आंकड़ा बिगड़ सकता है। 

एक महीना बीतने के बाद भी अभी दोनों पक्ष खुद को सत्ता में लाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए हर कानूनी विकल्प अपनाया जा रहा है। कोरोना के कारण लगभग 4 महीने तक चले चुनाव प्रचार में नेताओं ने संगतों से वोट प्राप्त करने की जी तोड़ कोशिश की थी लेकिन जीतने के बाद भी कई कमेटी सदस्यों को अपनी सदस्यता बचाने के लिए अदालतों के रहमो-करम पर निर्भर होना पड़ रहा है। संगत का फतवा इस समय कचहरियों के दिशा निर्देश पर अटका हुआ नजर आ रहा  है। सामान्य बहुमत पर खड़े सत्ता पक्ष को बाहर करने के लिए विपक्ष किसी कानूनी विकल्प का इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटना चाहता। 

जीते सदस्यों पर लटकी ‘गुरमुखी की तलवार’ : दिल्ली कमेटी के निवर्तमान अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा के गुरमुखी टैस्ट में फेल होने के बाद अब सोशल मीडिया पर सभी नवनिर्वाचित 46 सदस्यों का गुरमुखी टैस्ट करवाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है। इसको लेकर पहली बार जीते सदस्यों में घबराहट है। उन्हें लगता है कि कहीं उनकी भी परीक्षा न हो जाए और वे सिरसा की तरह फेल न हो जाएं। वहीं सिख जानकारों की मानें तो यदि गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय सभी सदस्यों का गुरमुखी टैस्ट करवाता है तो 46 में से 40 सदस्य फेल हो सकते हैं। अधिकतर सदस्यों को गुरमुखी न तो पढऩी आती है और न ही लिखनी। वे खुद तो गुरमुखी से अनभिज्ञ हैं ही, आने वाली पीढ़ी को भी उसी राह पर ले जा रहे हैं क्योंकि लगभग सभी पदाधिकारी अपने बच्चों को अपने स्कूलों में पढ़ाने की बजाय अंग्रेजी एवं मिशनरी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। 

नए अध्यक्ष की राह आसान नहीं : दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी में नए बनने वाले अध्यक्ष की राह इस बार आसान नहीं होगी, इसकी पूरी संभावना जताई जा रही है। गुरु हरिकिशन पब्लिक स्कूलों के स्टाफ के बकाया वेतन को लेकर लगभग 150 याचिकाएं अदालत में दाखिल हो चुकी हैं। इनमें बकाया वेतन, छठे वेतन आयोग का बकाया एवं 7वां वेतनमान लागू करने की याचिकाएं शामिल हैं। इसके अलावा कमेटी द्वारा बंद किए गए 3 इंस्टीच्यूट्स के स्टाफ ने भी अपने बकाया वेतन को लेकर याचिकाएं दाखिल की हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले दिनों इस मामले में चुनाव से पहले पेश हुए कमेटी अध्यक्ष सिरसा को साफ कहा था कि इन लोगों को पैसा देने का तरीका बताएं। साथ ही कमेटी व स्कूलों के सभी खातों को हाईकोर्ट में प्रस्तुत करें। चुनाव होने के बाद एक महीना बीतने के बावजूद कमेटी ने अपने खातों की रिपोर्ट अदालत में जमा नहीं की है। 

अस्पताल व स्कूल सबसे बड़ी चुनौती : दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के ड्रीम प्रोजैक्ट बन चुके बाला साहिब में 125 बैड का अस्पताल भी अटक गया है। अस्पताल चलाने की मौजूदा कमेटी ने जो तैयारी की थी, उसके लिए जरूरी वित्तीय प्रबंधन की कमी होने के कारण उसके खुलने पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसलिए जो भी नया अध्यक्ष आएगा उसे सभी चुनौतियों से जूझना होगा।  यह भी बताया जा रहा है कि गुरु हरिकिशन पब्लिक स्कूलों में कोरोना काल के दौरान फीस न देने की वजह से लगभग 5000 छात्र स्कूल छोड़ गए हैं, जिस वजह से स्कूलों की आॢथक हालत और पतली हो गई है। आने वाले अध्यक्ष के लिए समय पर स्टाफ को वेतन देना, स्कूल में विद्याॢथयों की संख्या बढ़ाना, बाला साहिब अस्पताल को चालू करने के लिए वित्तीय प्रबंधन करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। 

और अंत में... दिल्ली कमेटी की कुर्सी पर बैठने के लिए सत्ता पक्ष तो लगा ही है, विपक्ष भी सियासी बिसात बिछाने में पीछे नहीं है। मनजिंदर सिंह सिरसा के चुनाव हारने के बाद प्रधानगी के लिए अकाली दल के कई नेताओं ने अपनी दावेदारी ठोक दी है। अकाली दल के प्रदेश अध्यक्ष हरमीत कालका का पलड़ा भारी है क्योंकि वह कमेटी प्रबंधन का हिस्सा भी हैं। इसके अलावा पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष बीबी रंजीत कौर भी पूरी ताकत रामगढिय़ा बिरादरी के सहारे लगा रही हैं। इन्हें तख्त श्री पटना साहिब कमेटी के अध्यक्ष जत्थेदार अवतार सिंह हित का भी पूरा समर्थन है। इन सबके बीच यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि एस.जी.पी.सी. दिल्ली के किस नेता को अपने नुमाइंदे के तौर पर नामजद करती है।-दिल्ली की सिख सियासत 
सुनील पांडेय 
 

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