‘दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव : तिकोने टकराव की संभावना’

Edited By ,Updated: 18 Mar, 2021 04:29 AM

delhi gurudwara election possibility of trivial clash

ऐसा लगता है, जैसे कि दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के आम चुनाव जिनके अप्रैल के अंतिम सप्ताह में होने की संभावना प्रकट की जा रही है, में शिरोमणि अकाली दल (बादल) को गुरुद्वारा प्रबंध से बाहर करने के लिए, चुनावों में सीधे मुकाबले की स्थिति बनाने के...

ऐसा लगता है, जैसे कि दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के आम चुनाव जिनके अप्रैल के अंतिम सप्ताह में होने की संभावना प्रकट की जा रही है, में शिरोमणि अकाली दल (बादल) को गुरुद्वारा प्रबंध से बाहर करने के लिए, चुनावों में सीधे मुकाबले की स्थिति बनाने के लिए, विरोधी गुटों, विशेष रूप से शिरोमणि अकाली दल दिल्ली (सरना) और ‘जागो-जग आसरा गुरु ओट’ (जीके) के बीच गठजोड़ कायम करने की जो कोशिशें की जा रही थीं, वे सफल नहीं हो पाईं। 

इसका कारण यह बताया जा रहा है कि गठजोड़ बनाने के लिए जहां एक पक्ष बराबरी के आधार पर जीत की संभावना वाली सीटों का लेन-देन करना चाहता था, वहीं दूसरा पक्ष इस बात पर बजिद था कि यदि कोई गठजोड़ होना है तो वह बराबरी के आधार पर नहीं, अपितु उसकी शर्तों के आधार पर ही होना चाहिए। 

हालांकि गठजोड़ हो पाने की संभावनाएं खत्म हो जाने की बात, किसी भी पक्ष द्वारा स्वीकार नहीं की जा रही और न ही बादल दल के विरुद्ध गठजोड़ बनाने की कोशिशों में जुटे चले आ रहे पक्षों से भी किसी ने खुलकर अपनी हार स्वीकार नहीं की, फिर भी जिस प्रकार पक्षों की ओर से अपने-अपने उम्मीदवारों की निशानदेही कर, उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र में सक्रिय होने की हिदायतें दी जा रही हैं उससे आम लोगों में अपने आप ही यह संदेश जाने लगा है कि दोनों पाॢटयों में गठजोड़ बन पाने की संभावनाएं दम तोड़ चुकी हैं। इस स्थिति के चलते गुरुद्वारा चुनावों के परिणाम किसके पक्ष में जाएंगे? इस समय इस संबंध में कुछ भी कह पाना संभव नहीं। इसका कारण यह है कि अभी तक अन्य पाॢटयों, जिन्होंने गुरुद्वारा चुनाव लडऩे की घोषणा कर रखी है, की रणनीति स्पष्ट नहीं हो पाई। 

डायलिसिस केंद्र की उलझी ताणी : दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से गुरुद्वारा बाला साहिब परिसर में स्थापित डायलिसिस केंद्र जिसमें मुफ्त डायलिसिस सेवा उपलब्ध करवाए जाने का प्रबंध किया गया है, के संबंध में एक और बात सामने आई है। इस केंद्र का संचालन केंद्रीय सरकार की आयुष्मान योजना के तहत एक एन.जी.ओ. के सहयोग से किया जा रहा है जिसके चलते इस केंद्र में डायलिसिस की सहूलियत प्राप्त करने वाले प्रति मरीज पर सरकार की ओर से 1650 रुपए अदा किए जाते हैं जिसमें से 500 दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के मिलते हैं और शेष 1100 एन.जी.ओ. द्वारा अपने पास रख लिए जाते हैं। 

तो दूसरी ओर यह भी बताया जा रहा है कि गुरुद्वारा कमेटी के मुखियों द्वारा आम लोगों के नाम एक अपील जारी की गई है जिसमें कहा गया है कि ‘‘गुरुद्वारा कमेटी द्वारा ‘डायलिसिस (केंद्र नहीं) अस्पताल’ की स्थापना कर, उसमें मुफ्त सहूलियतें उपलब्ध करवा, ‘मानवता की सेवा’ में जो योगदान किया जा रहा है, उसमें आम लोग भी बढ़-चढ़ कर ‘योगदान कर’ गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करें। इस स्थिति में सवाल उठता है कि यदि आयुष्मान योजना के तहत इस केंद्र में डायलिसिस की सहूलियत प्राप्त करने वाले प्रति व्यक्ति के लिए सरकार की ओर से 1650 रुपए अदा किए जाते हैं तो फिर यह सेवा मुफ्त कैसे हुई? यदि यह बात ठीक है तो इस सेवा के मुफ्त होने का प्रचार कर लोगों से ‘दान’ क्यों मांगा जा रहा है? 

दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी द्वारा ‘दान’ की मांग से संबंधित जारी अपील में यह बात स्पष्ट की जानी चाहिए कि यह डायलिसिस केंद्र किसी एन.जी.ओ. के सहयोग से कायम किया गया है या नहीं, इस केंद्र में सहूलियत प्राप्त करने वाले मरीजों के लिए सरकार द्वारा कोई सहयोग दिया जाता है या नहीं? कुछ एन.जी.ओ. ठगी कर रहे हैं? इन्हीं दिनों ऐसे कुछ समाचार नजरों में आए हैं जिसमें बताया गया है कि डायलिसिस केंद्र चला रहे कुछ एन.जी.ओ. ने फर्जी बिल बना, सरकार के साथ लाखों-करोड़ों की हेरा-फेरी करने की कोशिश की है।

यदि इस समाचार में सच्चाई है तो सवाल उठता है कि यदि गुरुद्वारा बाला साहिब स्थित डायलिसिस केंद्र का संचालन कर रहे कथित एन.जी.ओ., जिसका नाम छुपाए रख, गुरुद्वारा कमेटी के मुखी अपने सिर सेहरा बांध रहे हैं की ओर से किसी समय ऐसी ही हेरा-फेरी करने की कोशिश की जाती है, तो क्या गुरुद्वारा कमेटी के मुखी उसकी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार होंगे? 

सरना-बंधुओं की रणनीति : बताया गया है कि शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के मुखी सरना बंधुओं ने दिल्ली गुरुद्वारा चुनावों के लिए अपनी कारगर रणनीति बनाने के उद्देश्य से, ऐसे लोगों से विचार-चर्चा करने का सिलसिला शुरू किया है, जो मुख्य रूप से आम लोगों के सम्पर्क में रहते हैं और उनकी भावनाओं को समझते हैं। 

इसी संबंध में बीते दिनों उन्होंने पंजाब एंड सिंध बैंक के पूर्व अधिकारियों के साथ बैठक की। इस बैठक के दौरान प्रकट किए गए विचारों से यह बात उभर कर सामने आई कि दिल्ली के सिख सबसे अधिक चिंतित गुरुद्वारा कमेटी के प्रबंधाधीन चल रही शैक्षणिक संस्थाओं के गिर रहे स्तर को लेकर हैं क्योंकि वे मानते हैं कि ये संस्थाएं केवल शिक्षा का स्रोत ही नहीं, अपितु इनकी जिम्मेदारी कौमी पनीरी के भविष्य के प्रभावी सृजन करने के प्रति भी है। 

पंजाब एंड सिंध बैंक के पूर्व चेयरमैन एस.एस. कोहली को इस बात का रंज है कि उन्होंने और उनके साथी अन्य ट्रस्टियों, के उस सपने को, जो गुरुद्वारा बाला साहिब में एक ऐसे मल्टीस्पैशलिटी अस्पताल को अस्तित्व में लाने का था, जिस पर सिख जगत ‘माण’ कर सके, उसे मात्र डायलिसिस केंद्र की स्थापना कर, तोड़ दिया गया है। उन्होंने और  बताया कि अस्पताल की स्थापना का जो करार किया गया था, उसके अनुसार अस्पताल से गुरुद्वारा कमेटी को जो लाखों की आय होनी थी, उसे केवल शिक्षा और मैडीकल क्षेत्र के विस्तार पर ही खर्च किया जाना था। 

...और अंत में : सिख धर्म की मान्यताओं-मर्यादाओं की रक्षा तभी की जा सकती है, यदि उसके पैरोकार स्वयं को राजनीतिक सत्ता की लालसा से मुक्त रखें। इसका कारण यह माना जाता है कि राजनीति में तो गैर-सैद्धांतिक समझौते किए जा सकते हैं, परन्तु धर्म के मामले में किसी भी प्रकार का गैर-सैद्धांतिक समझौता नहीं किया जा सकता। 

यह बात ध्यान में रखने वाली है कि जब गुरु साहिबान ने अपने समय में धर्म का प्रचार किया था, तो उस समय उनके पास न तो कोई राजसत्ता थी और न ही कोई राज शक्ति। उस समय सिख धर्म का जितना सार्थक प्रचार-प्रसार हुआ, उतना संभवत: उसके पश्चात कभी नहीं हो सका। यदि यह कहा जाए कि अब तो सारी सिख शक्ति और सिख संस्थाओं के साधनों को राजसत्ता की लालसा को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है तो इसमें कोई अति कथनी नहीं होगी। क्या ऐसे में माना जा सकता है कि राजसत्ता हासिल कर, धार्मिक मान्यताओं की रक्षा करने के प्रति समॢपत रहा जा सकता है।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’
 

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