दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव : राजनीतिक पार्टियों पर रोक

Edited By ,Updated: 25 Mar, 2021 04:03 AM

delhi gurudwara elections ban on political parties

दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय की ओर से गुरुद्वारा चुनाव नियमों में किए गए संशोधनों के आधार पर 28 जुलाई 2010 को एक अधिसूचना जारी की गई थी जिसके आधार पर राजनीतिक पार्टियों पर गुरुद्वारा चुनाव लडऩे पर रोक लग गई थी।

दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय की ओर से गुरुद्वारा चुनाव नियमों में किए गए संशोधनों के आधार पर 28 जुलाई 2010 को एक अधिसूचना जारी की गई थी जिसके आधार पर राजनीतिक पार्टियों पर गुरुद्वारा चुनाव लडऩे पर रोक लग गई थी। इस रोक के बावजूद शिरोमणि अकाली दल (बादल) ने 2013 और 2017 में हुए गुरुद्वारा चुनाव में हिस्सा लिया और बहुमत प्राप्त कर दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी की सत्ता पर काबिज होने में सफलता प्राप्त की। 

बताया गया है कि इन दोनों चुनावों के समय एक राजनीतिक पार्टी होने के कारण उसके गुरुद्वारा चुनाव में हिस्सा लेने पर रोक लगाए जाने की चर्चा हुई थी परन्तु दिल्ली प्रदेश अकाली दल (बादल) के उस समय के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने दल की ओर से पैरवी करते हुए, उसके गुरुद्वारा चुनाव में हिस्सा लेने के अधिकार और उसके चुनाव चिन्ह ‘बाल्टी’ को सुरक्षित करवा लिया था।

अब जबकि राजनीतिक पार्टियों के गुरुद्वारा चुनाव न लड़ पाने के नियम को आधार बना, शिरोमणि अकाली दल (बादल) और शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के गुरुद्वारा चुनाव लडऩे के अधिकार को अदालत में चुनौती दी गई, तो दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय की ओर से भी कहा जाने लगा कि दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव में वही पार्टियां हिस्सा ले सकती हैं जो गुरुद्वारा कमेटी की महासभा के कार्यकाल के समाप्त होने से एक वर्ष पूर्व रजिस्टर्ड सोसायटी एक्ट 1860 के तहत धार्मिक पार्टी के रूप में पंजीकृत (रजिस्टर) हो। ऐसे में सवाल उठता है कि अब जबकि गुरुद्वारा कमेटी के आम चुनाव केवल एक माह बाद ही होने जा रहे हैं, किसी ऐसी पार्टी के चुनाव में हिस्सा लेने पर रोक लगाया जाना क्या उचित होगा, जो संबंधित अधिनियम जारी होने के बाद गुरुद्वारा कमेटी के हुए दो चुनावों में हिस्सा ले चुकी हो? 

जहां तक शिरोमणि अकाली दल (बादल) का सवाल है, वह आरंभ से ही राजनीतिक संस्थाओं, लोकसभा, विधानसभा और नगर निगमों आदि के चुनावों के साथ ही धार्मिक संस्थाओं, शिरोमणि गुरुद्वारा कमेटी और दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के चुनावों में भी हिस्सा लेता चला आ रहा है।

बताया जाता है कि इस प्रकार दोनों, राजनीतिक और धार्मिक संस्थाओं के चुनाव लड़ने के लिए, उसने दो विधान अपना रखे हैं जिनके विरुद्ध मामला अदालत में काफी समय से लम्बित चला आ रहा है। इसके विरुद्ध जहां तक शिरोमणि अकाली दल दिल्ली की बात है, उसकी ओर से अपनी स्थापना (1999) से लेकर अब तक केवल धार्मिक संस्था, दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के चुनावों में ही हिस्सा लिया जाता चला आ रहा है, उसने कभी भी किसी राजनीतिक संस्था, लोकसभा, विधानसभा, नगर निगम आदि के चुनावों में हिस्सा नहीं लिया। संभवत: इसी बात को आधार बना दल के प्रधान महासचिव हरविंद्र सिंह सरना ने दावा किया है कि चाहे उन्हें सुप्रीमकोर्ट तक जाना पड़े, वे किसी को भी अपने गुरुद्वारा चुनाव लडऩे के अधिकार को छीनने नहीं देंगे। 

डायलिसिस केंद्र पर मौत : समाचारों के अनुसार बीते दिनों दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी द्वारा गुरुद्वारा बाला साहिब में स्थापित डायलिसिस केंद्र में डायलिसिस की सेवा प्राप्त करने के लिए पहुंचे एक व्यक्ति की तबीयत बिगड़ जाने के चलते मृत्यु हो गई। जिस पर कुछ लोगों द्वारा सवाल उठाते हुए कहा गया कि केंद्र में मरीजों के लिए आवश्यक सहूलियतें उपलब्ध न होने के चलते ही यह मौत हुई है। 

बताया गया है कि जब इस केंद्र का उद्घाटन किया गया था, उस समय कई जानकारों द्वारा दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के मुखियों को चेतावनी दी गई थी कि डायलिसिस केंद्र की शुरूआत से पहले, वहां उन सभी आपातकाल सेवाओं का प्रबंध किया जाना चाहिए, जिनसे डायलिसिस की सहूलियत प्राप्त करने पहुंचे उन मरीजों को तुरन्त सहायता उपलब्ध करवाई  जा सके, जिनकी तबीयत बिगड़ जाती है। उस समय इस चेतावनी को गंभीरता से न लिए जाने का ही परिणाम है कि आखिर वही हुआ जिसकी संभावना प्रकट की जा रही थी।

क्या यह सच है? : इधर डायलिसिस सेवाओं के जानकार जगजीत सिंह मूंदड़ ने दावा किया है कि उन्होंने बाला साहिब स्थित डायलिसिस केंद्र का निरीक्षण कर पाया कि वहां की कई मशीनें 28212 घंटे इस्तेमाल हो चुकी हैं और साफ्टवेयर भी 15 साल पुराने हैं। 

जीके का अति आत्मविश्वास : जैसे कि पहले भी इन कालमों में जिक्र किया जाता रहा है कि ‘जागो’ के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके अति आत्म-विश्वास से लिप्त हो चल रहे हैं। संभवत: इसका कारण यह है वह यह मानकर आगे बढ़ रहे हैं कि जैसे 2017 के गुरुद्वारा चुनाव में उनके नेतृत्व में बादल अकाली दल ने जीत हासिल की थी, वैसी ही जीत वह 2021 के गुरुद्वारा चुनाव में ‘जागो’ के लिए दोहरा सकते हैं। उन्हें संभवत: यह पता नहीं कि उन चुनावों की जीत में उनके नेतृत्व के साथ ही, बादल दल के कैडर की भी भूमिका रही थी। एक तो वे चुनाव बादल अकाली दल के चुनाव चिन्ह पर लड़े गए, दूसरा वह उस समय दिल्ली प्रदेश अकाली दल (बादल) और बादल दल के बहुमत वाली गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष थे, साथ ही कई ऐसे उम्मीदवार मैदान में थे जिनकी बादल परिवार के प्रति वफादारी अकाट्य थी। 

इन बातों का स्पष्ट संकेत था कि वह (जीके) बादल दल की लड़ाई लड़ रहे हैं, जो थोड़ा-बहुत भ्रम रह गया था, वह उन्होंने स्वयं ही उस जीत को सुखबीर की झोली में डाल कर दूर कर दिया। इसके साथ ही उन्हें इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि चुनावों में उनकी ओर से बादल दल के विरुद्ध दिए गए बयानों की तोड़ में, उनके द्वारा दिल्ली प्रदेश अकाली दल (बादल) और दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष के रूप में बादल दल के पक्ष में दिए जाते रहे बयानों को इस्तेमाल कर सकते हैं। इसका संकेत उस समय मिल गया जब चुनाव चिन्ह के मुद्दे पर बादल दल के विरुद्ध दिए गए उनके बयान की वीडियो के साथ उन्होंने पिछले चुनाव के समय इसी मुद्दे पर बादल दल की पैरवी करते हुए दिए गए बयान की वीडियो जारी कर उन पर ‘दोगले’ होने का आरोप लगा दिया। इस स्थिति में जरूरी है कि जीके अति आत्मविश्वास की पकड़ से बाहर निकल, जमीनी सच्चाई को स्वीकार करें। 

...और अंत में : अगले माह होने जा रहे दिल्ली गुरुद्वारा चुनावों को लेकर मतदाताओं को अपने-अपने पाले में लाने के लिए, चुनाव मैदान में उतरने वाली प्रमुख पार्टियों की ओर से अपनी प्रचार मुहिम जोर-शोर से शुरू कर दी गई है। जहां शिरोमणि अकाली दल (बादल) गुरुद्वारा कमेटी में हाल ही में किए जा रहे कार्यों का प्रचार कर रहा है, और ‘जागो’ के मुखी जत्थेदार संतोख सिंह द्वारा किए गए कार्यों के प्रचार का सहारा ले रहे हैं, वहीं शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के मुखी भविष्य में किए जाने वाले कार्यों के एजैंडे के साथ मतदाताओं की कचहरी में पहुंच रहे हैं।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’
 

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