लोकतंत्र को खोखला कर देगा ‘नफरत का तूफान’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Sep, 2017 02:58 AM

democracy will hollow storm of hate

नरेन्द्र दाभोलकर, गोविन्द पनसारे, एम.एम. कलबुर्गी और अब गौरी लंकेश...!  इन  चारों  में एक समानता है-वे स्वतंत्र विचारक...

नरेन्द्र दाभोलकर, गोविन्द पनसारे, एम.एम. कलबुर्गी और अब गौरी लंकेश...!  इन  चारों  में एक समानता है-वे स्वतंत्र विचारक थे और अपने विचारों को हिम्मत तथा उत्साह के साथ व्यक्त करते थे। उन चारों में एक समानता यह भी है कि जिन लोगों को उनके विचारों की स्वतंत्रता से डर लगता था, उन्होंने उनकी कायरतापूर्वक हत्या कर दी। एकमात्र अंतर यह है कि गौरी लंकेश की हत्या के बाद सोशल मीडिया पर नफरत का एक तूफान उठ खड़ा हुआ। यह पहले भी बहता था मगर उसकी तीव्रता इतने चिंताजनक स्तर की नहीं थी। 

स्वाभाविक है कि गौरी लंकेश की हत्या के बाद लोगों ने अपना गुस्सा जाहिर किया। चिंतकों, विद्वानों, पत्रकारों तथा समझबूझ वाले नागरिकों ने सभ्य शब्दों में उन लोगों की आलोचना की जो आतंक के माध्यम से विचारों की स्वतंत्रता को नष्ट करना चाहते थे। यह हैरानीजनक है कि बहुत से लोगों को गौरी के हत्यारों की निंदा करने का विचार भी पसंद नहीं आया। राष्ट्रवाद के स्वयंभू समर्थकों ने सोशल मीडिया पर बलवा खड़ा कर दिया और इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया जिसका उल्लेख मैं यहां नहीं कर सकता। अत्यंत अपमानजनक व्यवहार का माहौल बनना शुरू हो गया। 

विचारक अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं करते। इसलिए जिन लोगों ने गौरी की हत्या की आलोचना की, उन्होंने चुप रहना ही बेहतर समझा। ऐसा दिखाई देता था कि विरोध की आवाज को दबाने का यह प्रयास एक नए युग की नई कहानी है। ऐसा प्रयास किया जा रहा था कि यदि कोई किसी विशेष विचारधारा के खिलाफ बोलने की हिम्मत करता है तो उसे इस तरह से अपमानित किया जाना चाहिए कि वह चुप  रहना ही बेहतर समझे। क्या भारत का लोकतंत्र इस तरह से चलेगा? संविधान की धारा 19 (1) के अन्तर्गत सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की घोषणा की धारा 19 में यह स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति विचारों तथा सूचना का आदान-प्रदान करने को स्वतंत्र है। यह स्पष्ट है कि लोकतंत्र केवल तभी बचा रहेगा यदि नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता हो। 

हम सभी सहमत हैं कि कुछ ऐसे विचार हैं जो किन्हीं अन्य विचारों के विपरीत होते हैं। प्रत्येक विचारक की यह इच्छा होती है कि जो लोग अलग विचारधाराओं में विश्वास रखते हैं वे अपनी मान्यताओं को छोड़ कर नई विचारधारा के साथ सहमत हों, मगर जरूरी नहीं कि हमेशा ऐसा हो। यदि विचार की स्वतंत्रता पर हमला होता है तो मेरा मानना है कि यह लोकतंत्र पर हमला है। भारत विश्व में एक ऐसा देश है जहां विभिन्न समुदायों, जातियों, विचारों, मान्यताओं तथा प्रथाओं वाले लोग रहते हैं। हमारा देश इतना बड़ा है कि इसके एक हिस्से की संस्कृति दूसरे हिस्से से नहीं मिलती। जो आप उत्तर-पूर्व  राज्यों में देखते हैं और जिस विचारधारा को आप मानते हैं वह देश के दक्षिणी अथवा पश्चिमी हिस्से से अलग होगी। 

आप यह कैसे सोच सकते हैं कि दक्षिण के लोग पूर्वी भारत के लोगों का अनुसरण करेंगे या पूर्वी भारत के लोग पश्चिमी भारत के लोगों की तरह सोचना शुरू कर देंगे? वास्तव में विभिन्नता भारत की सबसे बड़ी पहचान है। विभिन्नता के लिए सम्मान हमें एकजुट रखे हुए है। यदि हम इस विभिन्नता की संस्कृति पर हमला करने का प्रयास करेंगे या हर किसी को अपने तरीके से चलते देखना चाहेंगे तो इसका विरोध होगा जो देश के लिए खतरनाक हो सकता है। मेरा स्पष्ट मानना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक अनावश्यक स्वतंत्रता नहीं हो सकती। मगर मैं यह भी मानता हूं कि विचारों को केवल विचारों के साथ लड़ा जा सकता है, गोली से नहीं। 

इस बात में कोई संदेह नहीं कि गौरी लंकेश की हत्या को लेकर तुरन्त कोई आरोप नहीं लगाया जाना चाहिए। मगर यह भी सही नहीं है कि गौरी लंकेश को उनकी विचारधारा के लिए गाली दी जाए। कौन लोग गालियां दे रहे हैं? ये वे लोग हैं जिनका कोई सामाजिक दर्जा नहीं है। ये मानसिक रूप से बीमार तत्व हैं, जिनकी स्वतंत्र सोशल मीडिया तक पहुंच बन गई है और वे बिना सोचे-विचारे लिख कर इस माध्यम का दुरुपयोग कर रहे हैं। तो प्रश्र यह है कि क्या नफरत के सौदागर नफरत का विष फैलाना जारी रखेंगे? साइबर सैल उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है लेकिन जब सारे सिस्टम ने ही समझौता कर लिया हो तो कैसे आप अच्छे परिणामों की आशा कर सकते हैं? सरकार को सोचना चाहिए कि नफरत के इस तूफान को कैसे रोकना है क्योंकि इससे लोकतंत्र का खोखला होना तय है। यदि जाति तथा धर्म के नाम पर ऐसे तूफान चलते रहे तो हमारा देश कैसे महान बनेगा?

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