मात्र आंकड़ों की जादूगरी नहीं है विकास

Edited By ,Updated: 30 Jul, 2022 04:07 AM

development is not just the magic of statistics

द्रौपदी मुर्मू का भारत की प्रथम जनजातीय महिला राष्ट्रपति के तौर पर रेखांकित होना भारत की गतिशीलता को दर्शाता है जो न केवल किताबों की अलमारियों पर प्रतीकात्मक रूप से बची...

द्रौपदी मुर्मू का भारत की प्रथम जनजातीय महिला राष्ट्रपति के तौर पर रेखांकित होना भारत की गतिशीलता को दर्शाता है जो न केवल किताबों की अलमारियों पर प्रतीकात्मक रूप से बची है बल्कि मध्यम श्रेणी के भद्र लोगों के हृदयों में तथा झोंपड़ी में रह रहे गरीबों में वास करती है। 

श्री अरबिंदो ने कहा था, ‘‘भारत न केवल धरती का एक टुकड़ा है बल्कि एक दिव्य शक्ति भी है।’’ वह चाहते थे कि भारतीय लोगों में यह विश्वास हो कि भारत का उत्थान होना चाहिए और इसे एक महान राष्ट्र बनना चाहिए। सही तरीके से वह वही बात है जो राष्ट्रपति मुर्मू ने भारत की 15वीं राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ग्रहण करने के मौके पर कही। उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारे लोकतंत्र की शक्ति है कि एक गरीब घर में जन्मी एक लड़की, एक दूर-दराज जनजातीय क्षेत्र में जन्मी एक बेटी भारत के शीर्ष संवैधानिक पद पर आसीन हो सकती है।’’ 

उन्होंने देश से आग्रह किया कि वह सबका प्रयास तथा सबका कत्र्तव्य के दोहरे ट्रैक पर आगे बढ़े। इन दोनों लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हमें नई सोच को उत्पन्न करना होगा तथा एक पुख्ता प्रयास करना होगा ताकि एक सही दिशा की ओर हम अग्रसर हों। हालांकि अमरीका की तरह भारतीयों को महान भारतीय सपने को पूरा करने की दिशा में अभी बहुत कुछ करना होगा। 
यह स्मरण रहे कि जब यूरोप तथा अमरीका ने महा मंदी का सामना किया तो कुछ अमरीकी साहित्यिक व्यक्तित्व वाले लोगों जिनमें अरनैस्ट हैमिंग्वे भी शामिल थे, ने देश को ‘रंक से राजा’ बनाने तथा ‘छोटे घर से व्हाइट हाऊस’ तक पहुंचने में अपना विशाल योगदान दिया। मुद्रा में विजन तथा ड्रीम जैसे शब्द लौट आए। 

हमने भले और बड़े प्रतिष्ठित लोगों को देखा जिन्होंने हमारे दिलो-दिमाग पर राज किया। उनके साधारण प्रोत्साहन में उन्होंने सभी रूप से समावेशी विकसित भारत के बारे में सपना देखा। हालांकि विचार तथा वास्तविकता ने एक परछाईं छोड़ी जिसके तहत पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भारतीय मनों में सभी बाधाओं को तोड़ते हुए एक नई ऊर्जा डालना चाहते थे,भौतिक विज्ञानी तथा तारा विज्ञानी विक्रम साराभाई जिनसे कलाम ने बहुत ज्यादा प्रेरणा हासिल की, का मानना था कि लोगों की सेवा तथा उपेक्षित लोगों की समस्याओं का समाधान करने के लिए विज्ञान तथा तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उस मुद्दे के लिए हम में से प्रत्येक को भारत को खुशहाली की ओर ले जाना होगा। दुर्भाग्यवश ऐसी दृष्टि कुछ ही भारतीयों तक सिमट कर रह गई। 

एक राष्ट्र तभी महान बन सकता है यदि सभी नागरिक बड़ा सोचें तथा बड़ा करने की ख्वाहिश रखें। राष्ट्रपति मुर्मू के पहले संबोधन में भारत की महत्वाकांक्षाओं तथा बदलती उम्मीदों के बारे में पता चलता है। उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लिए तसल्ली की बात है कि ऐसे वर्ग जो बरसों से विकास से वंचित रहे जिनमें गरीब, दलित, पिछड़े तथा जनजातीय लोग हैं, अब मेरे माध्यम से अपना प्रतिनिधित्व पा सकते हैं। मेरा चयन देश के गरीबों के आशीर्वाद से संभव हो सका है तथा भारत की करोड़ों बेटियों तथा महिलाओं की क्षमताओं तथा उनके सपनों को दर्शाता है।’’ मगर दिल को परेशान करने वाली बात यह है कि देश के लोकतांत्रिक ढांचे पर दबाव बढ़ रहा है। भ्रष्टाचार, ङ्क्षहसा तथा आक्रोश की खाई बढ़ रही है जोकि  आॢथक, सामाजिक असमानता तथा असहनशीलता व धार्मिक कट्टरवाद के कारण पैदा हो रही है। 

निश्चित तौर पर यह एक जटिल समस्या है जो हमारी समस्याओं के नए समाधानों की ओर आकॢषत कर रही है। ऐसा मानना है कि भारतीय सभी झटकों से उभर सकते हैं। हम उन कई संकटों से पार पा सकते हैं जो हम झेल रहे हैं। ऐसे मामले में हमारा राष्ट्र पुन: निर्माण तथा नई ऊर्जा के चरणों से गुजर रहा है। मुश्किल यह है कि एक राष्ट्र होने के नाते भारत ने कठोर विकल्पों की बजाय कुछ नर्म विकल्पों को चुना। इसे समझने की जरूरत है कि एक नर्म देश अपने ही लोगों के सामने अपनी प्रासंगिकता खो बैठता है। कई असंतुलन हमारे इर्द-गिर्द हैं क्योंकि हमारे नेता अपने राजनीतिक फायदे के लिए कुछ नर्म विकल्पों का चयन करते हैं। जब वह सत्ता का खेल खेलते हैं तो निश्चित तौर पर राष्ट्रीय हित नकारते जाते हैं और वह पीछे की ओर चले जाते हैं। राष्ट्र के पतन का यही मुख्य कारण है। 

राष्ट्रपति मुर्मू ने अगले 25 वर्षों में भारत की तस्वीर को बदलने के ऐतिहासिक समय के बारे में बात की है। ओडिशा से संबंध रखने वाली जन-जातीय महिला मुर्मू खुद भी भारतीय  दृष्टि का प्रतिनिधित्व करती हैं। जहां पर गरीबों के सपने होंगे और जिन्हें वह पूरा कर सकेंगे। इसके लिए नए दृष्टिकोण की जरूरत है। प्रत्येक भारतीय की समस्या बहुआयामी है। इस कारण इसे एक एकल और पूर्व नियोजित ढांचे में फिट नहीं किया जा सकता। आज की जटिलताओं को देखते हुए धुंधला होने की जरूरत नहीं। गांधी जी ने किसी समय गांव गणराज्य की बात की थी जो स्व: निर्भर हो। उनका यह मतलब नहीं था कि समाज के अन्य घटकों से गांव अलग-थलग पड़ जाएं। जमीनी स्तर पर विकास की सशक्त जड़ों के बिना किसी भी प्रकार का विकास प्रफुल्लित नहीं हो सकता।

राष्ट्रपति मुर्मू को देखते हुए हमें यह एक साधारण संदेश गंभीरतापूर्वक लेना होगा कि हमें गरीबों की उचित जरूरतों के लिए कार्य करना होगा तथा उनके अच्छे जीवन,स्वास्थ्य देखभाल तथा शिक्षा की जड़ें मजबूत करनी होंगी। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि विकास मात्र आंकड़ों की जादूगरी नहीं है बल्कि इसमें समाज के सभी वर्गों की भागीदारी और दिमाग की अच्छी हालत होना भी जरूरी है।-हरि जयसिंह 
   

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