द्रौपदी मुर्मू और प्रतिभा पाटिल में अंतर

Edited By ,Updated: 02 Aug, 2022 04:20 AM

difference between draupadi murmu and pratibha patil

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को किस तरह से संबोधित किया जाना चाहिए? जब कांग्रेसी नेता अधीर रंजन चौधरी ने उन्हें ‘राष्ट्रपत्नी’ कह कर संबोधित करने के बाद दावा किया कि उनकी

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को किस तरह से संबोधित किया जाना चाहिए? जब कांग्रेसी नेता अधीर रंजन चौधरी ने उन्हें ‘राष्ट्रपत्नी’ कह कर संबोधित करने के बाद दावा किया कि उनकी जुबान फिसल गई। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इस शब्द को आपत्तिजनक माना। 

जब प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल (2007 से 2012) ने पदभार संभाला तो शिवसेना के दिवंगत नेता बाल ठाकरे ने उन्हें ‘राष्ट्रपत्नी’ कह डाला मगर पाटिल ने इस बात को हंस कर टाल दिया। अंत में प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति कह कर संबोधित किया गया। यह विवाद काफी पुराना है। 

संवैधानिक असैम्बली में सदस्यों ने यह विचार-विमर्श किया कि क्या एक महिला राष्ट्रपति को ‘राष्ट्रपत्नी’ कह कर संबोधित किया जाना चाहिए या नहीं। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने माना कि राष्ट्रपति को ‘राष्ट्रपति’ ही कह कर बुलाया जाना चाहिए फिर चाहे वह महिला हो या फिर पुरुष। प्रतिभा पाटिल एक प्रभावशाली मराठा परिवार से संबंध रखती हैं  जिनकी शादी एक राजपूत के साथ हुई थी। 

वहीं द्रौपदी मुर्मू इसके विपरीत एक गरीब जनजातीय परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनका पालन-पोषण एक पिछड़े क्षेत्र में हुआ जहां पर न तो बिजली थी और न ही सड़कें। वह अपने स्कूल की ओर नंगे पांव जाती थीं और उनके पास एक ही ड्रैस थी जिसे वह सारा साल पहनती थीं। अपने परिवार के लालन-पालन के लिए उनका मकसद एक नियमित नौकरी करने का था। 

हालांकि किस्मत ने उन्हें पहले राजभवन और उसके बाद अब राष्ट्रपति भवन में पहुंचा दिया। दोनों राष्ट्रपतियों के अचम्भित कर देने वाले विकल्प थे। एक पढ़ी-लिखी जनजातीय महिला होने के नाते मुर्मू को कई फायदे थे। प्रतिभा पाटिल अपने पद पर इसलिए पहुंचीं क्योंकि वह गांधी परिवार की विश्वासपात्र थीं। दोनों महिलाएं राज्यपाल, विधायक और उसके बाद मंत्री भी रहीं जबकि पाटिल एक वकील थीं और द्रौपदी एक शिक्षक। 

दोनों महिलाएं आध्यात्मिक हैं और ब्रह्माकुमारियों में उनकी अथाह श्रद्धा है। ब्रह्माकुमारी आंदोलन की स्थापना 1937 में हुई। लोग यह देख कर हैरान हैं कि प्रार्थना करने से पूर्व द्रौपदी मुर्मू ने पूर्णदेश्वरी शिव मंदिर परिसर में सफाई की। दिलचस्प बात यह है कि पाटिल पर बाबा लेख राज का आशीर्वाद रहा जिनकी मृत्यु 1969 में हुई। बाबा लेख राज ने ही पाटिल को कहा कि आने वाले दिनों में उन पर एक भारी जिम्मेदारी आएगी। प्रतिभा पाटिल महिला सशक्तिकरण में विश्वास रखती हैं। 

उन्होंने विद्या भारती शिक्षण  प्रसारक मंडल की स्थापना की जोकि एक ऐसी संस्था है जो स्कूलों तथा कालेजों में अमरावती, जलगांव तथा मुम्बई में चलाती है। पाटिल ने श्रम साधना ट्रस्ट की भी स्थापना की जोकि नई दिल्ली, मुम्बई और पुणे में कार्यरत महिलाओं के लिए भी होस्टलों को चलाता है। 

मुर्मू ने एक उडिय़ा मैगजीन में अपना विचार रखते हुए कहा, ‘‘पुरुषों के प्रभाव वाली राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण लाजमी होना चाहिए। राजनीतिक दल इस स्थिति को उम्मीदवारों को चुनने तथा चुनाव लडऩे के लिए टिकट के आबंटन के माध्यम से बदल सकते हैं।’’ प्रतिभा पाटिल को आप उनके सिर पर पल्लू लिए ही देख सकते हैं जोकि एक परम्परा है जबकि मुर्मू ने अपना नया कार्य एक साधारण सफेद पारंपरिक संस्थान झाल साड़ी पहन कर शुरू किया। सूत्रों के अनुसार पता चला है कि राष्ट्रपति ने अपने रिश्तेदार को नई दिल्ली से करीब एक दर्जन साडिय़ां मंगवाने के लिए कहा है। 

दोनों ही महिलाएं आत्मविश्वासी हैं क्योंकि राष्ट्रपति जैसे शीर्ष पद पर पहुंचने के लिए दोनों ने संघर्ष किया है। दोनों राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों से संबंध रखती हैं। 30 वर्षों तक एक विधायक रहने के दौरान प्रतिभा पाटिल ने कभी भी चुनाव नहीं हारा। वह विपक्ष की नेता रहीं और उसके बाद राज्यसभा की डिप्टी चेयरपर्सन (1986-88) रहीं।

द्रौपदी मुर्मू का स्कूल तथा कालेज में ‘टूडु’ उपनाम था। श्याम चरण टूडु जोकि एक बैंक अधिकारी थे, से शादी करने के उपरांत मुर्मू कहलाईं। उनकी स्कूल टीचर ने उनका नाम द्रौपदी रखा। वर्ष 2000 में रायरंगपुर और वर्ष 2009 में मयूरभंज से वह भाजपा विधायक चुनी गईं। ओडिशा में भाजपा-बीजद गठबंधन सरकार के दौरान द्रौपदी मुर्मू वाणिज्य एवं परिवहन, फिशरीज एवं एनीमल हसबैंडरी मंत्री रहीं। 

राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के दौरान ही प्रतिभा पाटिल विवादों में रहीं। अपने परिवार के साथ विदेशी यात्राओं का खर्च 205 करोड़ रहा। उन पर आरोप रहे कि पूणे में रिटायरमैंट के बाद एक बंगले के निर्माण के लिए उन्होंने रक्षा भूमि हड़प ली। मुर्मू ने अनेकों ही पारिवारिक त्रासदियों को झेला। उन्होंने अपने पति तथा दो बेटों को खो दिया। एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने खुलासा किया, ‘‘एक ऐसा समय भी था जब मैंने सोचा कि मैं किसी भी समय मर जाऊंगी।’’ उन्होंने ईश्वरीय प्रजापति ब्रह्माकुमारी को ज्वाइन किया और योग तथा ध्यान करना शुरू किया।

‘संथाली’ को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। भारत में संथाली तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है जो ज्यादातर झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में पाई जाती है। किसी ने भी सोचा नहीं था कि पाटिल पहली महिला राष्ट्रपति बनेंगी और महिलाओं की स्थिति नाटकीय ढंग से सुधर जाएगी। अब मुर्मू जनजातीय लोगों के जीवन को बदलना चाहेंगी। दोनों महिलाएं महिला सशक्तिकरण की प्रतीक हैं मगर इस प्रतीक को उच्च पदों पर पहुंचने के लिए आम लोगों के सपनों को प्रोत्साहित करना होगा।-कल्याणी शंकर 
 

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