Edited By ,Updated: 02 Jan, 2020 05:25 AM
इस तथ्य से करीब सभी राजनीतिक दल सहमत हैं कि देश के अंदर असहिष्णुता तथा अशांति का माहौल बना हुआ है। नागरिक संशोधन कानून (सी.ए.ए.), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.सी.आर.) तथा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.) के बारे में जैसे-जैसे प्रधानमंत्री...
इस तथ्य से करीब सभी राजनीतिक दल सहमत हैं कि देश के अंदर असहिष्णुता तथा अशांति का माहौल बना हुआ है। नागरिक संशोधन कानून (सी.ए.ए.), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.सी.आर.) तथा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.) के बारे में जैसे-जैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह ने तीनों मुद्दों पर अपनी सफाई देने की कोशिश की है उससे स्पष्टता होने की बजाय ज्यादा अस्पष्टता व्याप्त हुई है। विश्वविद्यालयों तथा कालेजों के प्राध्यापकों का इतनी बड़ी संख्या में मोदी सरकार के विरुद्ध सड़कों पर उतरना इसका अंदाजा शायद ही कभी सरकार ने लगाया होगा।
सरकार की ओर से अपने प्रचार साधनों विशेषकर इलैक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से दिए गए भरोसों के बावजूद कि किसी भी व्यक्ति की नागरिकता छीनी नहीं जाएगी, फिर भी लोगों के मन में बसी शंकाएं दूर नहीं हो रहीं। एक ओर लोकसभा तथा राज्यसभा में स्पष्ट तौर पर गृह मंत्री अमित शाह कह रहे हैं कि एन.सी.आर. को देश भर में लागू किया जाएगा तथा घुसपैठियों को चुन-चुन कर देश से बाहर निकाला जाएगा तथा दूसरी ओर दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि एन.सी.आर. के बारे में अभी सरकार ने कोई विचार ही नहीं किया।
मोदी ने किसी भी प्रांत में घुसपैठियों के लिए हिरासत कैम्प (जेल जैसे) न होने का तीन-तीन बार ऐलान भी कर दिया। दूसरा राज्यों में ऐसे कैम्पों को खोलने की तैयारियां की जा रही हैं। भाजपा नेता कह रहे हैं कि ये कैम्प तो कांग्रेस या फिर किसी अन्य सरकार के समय खोले गए थे, जबकि प्रश्र यह है कि प्रधानमंत्री इसके विपरीत देश के भीतर किसी भी प्रांत में ऐसे कैम्प न होने का दावा किस आधार पर कर रहे हैं। ऐसी अवस्था में मोदी सरकार की करनी और कथनी में लोगों के मनों के अंदर विश्वास कैसे पैदा हो सकता है? हिंदू, जैन, ईसाई, बौद्ध तथा सिखों जोकि धार्मिक अल्पसंख्यक होने के नाते उत्पीडऩ का शिकार हो रहे हैं, भारत के अंदर इनको नागरिकता देने के बारे में किसी को आपत्ति न होती यदि इसका आधार धर्म (गैर मुस्लिम) को न बनाया जाता। उपरोक्त धर्म आधारित देशों के अंदर धार्मिक उत्पीडऩ का सामना करने वाले यदि मुसलमान हैं ही नहीं तब वह भारत की नागरिकता क्यों मांगेंगे? यदि वैसे लोग हैं तब उनको बाकी समुदायों से अलग क्यों किया जा रहा है? आर.एस.एस. अपनी कथित संकीर्ण तथा साम्प्रदायिक विचारधारा के अनुसार भारत को एक धर्म आधारित देश ‘ङ्क्षहदू राष्ट्र’ बनाना चाहता है। जैसे संघ प्रमुख मोहन भागवत ने 130 करोड़ भारतीयों को ङ्क्षहदू होने का फरमान जारी किया है। मोदी सरकार द्वारा धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करने की नीति का उन भारतीयों के भविष्य पर भी बुरा असर पड़ सकता है जो रोजी-रोटी के लिए मुसलमान बहुसंख्यक देशों सहित विश्व भर के विभिन्न देशों में बसे हुए हैं।
धर्म आधारित देश का संकल्प 80 प्रतिशत ङ्क्षहदू कहे जाने वाले लोगों के लिए भी एक खतरे की घंटी है क्योंकि हिंदू धर्म के भीतर भी अनेक परतें हैं। ङ्क्षहदुओं के अंदर धार्मिक रस्मों को अदा करने तथा धार्मिक गुरुओं और धार्मिक ग्रंथों में आस्था के बारे में जमीन-आसमान का अंतर है। अब जबकि मोदी सरकार ने आर.एस.एस. की विचारधारा के अनुसार कार्य करना शुरू कर दिया है तो लाजिमी तौर पर ऐसा कदम दो समुदायों के सिद्धांत को लागू करके इतिहास को पीछे मोडऩे की तरफ एक कदम है। नागरिकता संशोधन कानून को इसी के तहत समझने की जरूरत है। हमारे देश की यह बदकिस्मती है कि ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी हासिल करने के लिए जिन हिंदू, मुसलमान, सिख, जैन, बौद्ध सहित सब धर्मों से संबंधित लोगों ने अपनी कुर्बानियां दी थीं आज उन लोगों के बीच धर्म के नाम पर साम्प्रदायिक नफरत की दीवार खड़ी करने का प्रयत्न किया जा रहा है। आजादी की दूसरी लड़ाई अमीर-गरीब के बीच के अंतर को मिटाने, गरीबी तथा भुखमरी को खत्म करने, सब लोगों के लिए रोजगार व स्वास्थ्य सहूलियतें तथा आपसी एकता को मजबूत करके एक महान भारत को बनाने के लिए लड़ी जानी चाहिए थी।
राजनीति में पारदर्शिता, ईमानदारी, जनता की सेवा, भ्रष्टाचार का खात्मा, सामाजिक उत्पीडऩ का अंत, महिलाओं को बराबरी का दर्जा तथा उनका सम्मान, सबको अपने-अपने धर्मों को मानने की आजादी हम सबका लक्ष्य होना चाहिए था। आर्थिक क्षेत्र में किए जाने वाले विकास का मुख्य उद्देश्य साधारण व्यक्ति के जीवन को खुशहाल बनाना चाहिए था। अफसोस की बात यह है कि लोगों से संबंधित सभी मुद्दों की अनदेखी कर पिछले समय में जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, लोगों के धर्म, पहरावे तथा उनकी खाने-पीने की आदतों को जबरदस्ती बदलने की कार्रवाइयों तथा एक-दूसरे के प्रति अविश्वास तथा नफरत की भावना पैदा करने का कार्य शुरू कर दिया गया है। किसी मुद्दे के बारे में सरकार का विरोध करने के मौलिक अधिकार का इस्तेमाल करने वालों को देशद्रोही कह कर अपमानित किया जाता है।
सरकार का विरोध करने वालों को शहरी नक्सल, टुकड़े-टुकड़े गैंग इत्यादि का नाम दिया जाता है, जबकि वास्तव में देश की एकता तथा अखंडता को केन्द्रीय सरकार तथा संघ परिवार की नीतियां बड़ा नुक्सान पहुंचा रही हैं। यू.पी. के अंदर बिना जांच-पड़ताल किए नादिरशाही ढंग से जुर्माने वसूलने तथा सम्पत्तियां जब्त करने के नोटिस दिए जा रहे हैं, जबकि 22 लोगों को मौत के घाट उतारने वाले जिम्मेदार पुलिस कर्मचारियों के विरुद्ध बनती कार्रवाई करने के स्थान पर उनकी पीठ थपथपाई जा रही है। मोदी सरकार का कत्र्तव्य बनता है कि वह ऐसे सभी कदमों को वापस ले जिससे लोगों के मन में अनेक तरह की शंकाएं पैदा हो रही हैं। सभी राजनीतिक दलों तथा संबंधित लोगों की सहमति के साथ देश का कोई भी मसला हल किया जा सकता है।-मंगत राम पासला