‘डिजिटल डिवाइड’ सामाजिक व आर्थिक पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण

Edited By ,Updated: 26 Aug, 2021 05:55 AM

digital divide  is a major cause of social and economic backwardness

डिजिटल साक्षरता का आशय उन तमाम तरह के कौशलों के एक समूह से है, जो इंटरनैट का प्रयोग करने और डिजिटल दुनिया के अनुकूल बनने के लिए आवश्यक है। चूंकि ऑनलाइन उपलब्ध जानकारियों का दायरा व्यापक होता जा रहा है, इसलिए ऑनलाइन उपलब्ध जानकारी को

डिजिटल साक्षरता का आशय उन तमाम तरह के कौशलों के एक समूह से है, जो इंटरनैट का प्रयोग करने और डिजिटल दुनिया के अनुकूल बनने के लिए आवश्यक है। चूंकि ऑनलाइन उपलब्ध जानकारियों का दायरा व्यापक होता जा रहा है, इसलिए ऑनलाइन उपलब्ध जानकारी को समझने के लिए डिजिटल साक्षरता आवश्यक है। 

उल्लेखनीय है कि चीन के बाद भारत दुुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ऑनलाइन बाजार है, जहां लगभग 46 करोड़ इंटरनैट उपयोगकत्र्ता मौजूद हैं। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 तक भारत में अनुमानत: 70 करोड़ इंटरनैट उपयोगकत्र्ता मौजूद होंगे, जो काफी बड़ी संख्या है। उपरोक्त आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि भारत का इंटरनैट आधार काफी व्यापक है, जिस कारण यहां डिजिटल साक्षरता का विषय काफी महत्वपूर्ण हो गया है। डिजिटलीकरण के दौर में इंटरनैट संचार की उपयोगिता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी के दौरान प्रभावित लोगों तक प्रशासनिक मदद व खाद्य सामग्री पहुंचाने का कार्य प्रभावी रूप से डिजिटल माध्यम द्वारा किया जा रहा है। डिजिटल माध्यम से सहायता चाहे हैल्पलाइन नंबर के रूप में हो या आरोग्य सेतु एप के, जन सरोकार  की दिशा में उपयोगी साबित हो रही है। डिजिटल साक्षरता के महत्व को देखते हुए ही सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आने वाले निजता के अधिकार और शिक्षा के अधिकार का एक हिस्सा बनाते हुए इंटरनैट तक पहुंच को मौलिक अधिकार घोषित किया है। 

डिजिटल डिवाइड : डिजिटल डिवाइड आम तौर पर इंटरनैट और संचार प्रौद्योगिकियों के उपयोग को लेकर विभिन्न सामाजिक, आर्थिक स्तरों या अन्य जनसांख्यिकीय श्रेणियों में व्यक्तियों, घरों, व्यवसायों या भौगोलिक क्षेत्रों के बीच असमानता का उल्लेख करता है। दुनिया के विभिन्न देशों या क्षेत्रों के बीच विभाजन को वैश्विक डिजिटल विभाजन के रूप में जाना जाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकासशील और विकसित देशों के बीच तकनीकी विभेद का उल्लेख करता है। 

डिजिटलीकरण और इंटरनैट : इंटरनैट ने वर्तमान युग में संचार को काफी आसान और सुविधाजनक बना दिया है और दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले विद्याॢथयों के लिए भी बेहतर शिक्षा का विकल्प खोल दिया है। हम इंटरनैट के माध्यम से किसी भी प्रकार की सूचना को कुछ ही मिनटों बल्कि सैकेंडों में प्राप्त कर सकते हैं। सूचना तक आसान पहुंच के कारण आम लोग अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक हुए हैं। यह राजनीति एवं लोकतंत्र में नागरिकों की भागीदारी को बढ़ाने में भी मदद करता है। सरकार की जवाबदेही और पारदॢशता भी इससे बढ़ी है। 

डिजिटलीकरण के समक्ष चुनौतियां : भारत में अधिकांश मोबाइल व इंटरनैट उपयोगकत्र्ता शहरी क्षेत्रों में निवास करते हैं, जबकि हम जानते हैं कि भारत की कुल आबादी का 67 प्रतिशत भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय  द्वारा शिक्षा पर किए गए अध्ययन से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में केवल 27 प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं जहां किसी एक सदस्य के पास इंटरनैट सुविधा है। इंटरनैट की सीमित उपलब्धता डिजिटलीकरण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। भारत में केवल 12.5 प्रतिशत छात्र ऐसे हैं जिनके पास इंटरनैट की सुविधा है। गत कुछ वर्षों में कई निजी और सरकारी सेवाओं को डिजिटल रूप प्रदान किया गया है और जिनमें से कुछ तो सिर्फ ऑनलाइन ही उपलब्ध हैं, जिस कारण उन लोगों को असमानता का सामना करना पड़ता है जो डिजिटली निरक्षर हैं। 

किसी व्यक्ति के पास मोबाइल फोन का होना ‘डिजिटल’ होने का प्रमाण नहीं है। यहां तक कि यदि कोई व्यक्ति स्मार्टफोन का उपयोगकत्र्ता है, तो भी वह स्वयं को ‘डिजिटल सैवी’ नहीं कह सकता, जब तक कि उसके पास इंटरनैट कनैक्टिविटी न हो और वह इंटरनैट पर प्रासंगिक और समय पर जानकारी प्राप्त करना न जानता हो। विश्वसनीय सूचना, बुनियादी ढांचे और डिजिटल साक्षरता की कमी से उत्पन्न होने वाला डिजिटल डिवाइड सामाजिक और आॢथक पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण है। 

भारत में लिंग विभाजन दुनिया में सबसे अधिक है। भारत में लगभग 16 प्रतिशत महिलाएं मोबाइल इंटरनैट से जुड़ी हैं, जो डिजिटलीकरण की दिशा में लैंगिक विभेद का स्पष्ट रेखांकन करता है। वर्ष 2016 के मध्य में जारी एक रिपोर्ट में सामने आया था कि भारत में डिजिटल साक्षरता की दर 10 प्रतिशत से भी कम है। एक अन्य बड़ी चुनौती अवसंरचना की कमी भी है। डिजिटल डिवाइड और भारत सरकार के प्रयास : सरकार द्वारा शुरू किए गए भारतनैट कार्यक्रम का उद्देश्य राज्यों तथा निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी से ग्रामीण तथा दूर-दराज के क्षेत्रों में नागरिकों एवं संस्थानों को सुलभ ब्रॉडबैंड सेवाएं उपलब्ध कराना है। 

भारतनैट परियोजना के तहत 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर के जरिए  हाईस्पीड ब्रॉडबैंड किफायती दरों पर उपलब्ध कराया जाना है। इसके तहत ब्रॉडबैंड की गति 2 से 20 एम.बी.पी.एस. तक निर्धारित करने का लक्ष्य रखा गया है। इस परियोजना के तहत स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों एवं कौशल विकास केंद्रों में इंटरनैट कनैक्शन नि:शुल्क प्रदान किया गया। इस अभियान को देश के ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिकों के लिए लागू किया गया है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन के तहत भारत के प्रत्येक घर में कम-से-कम एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर बनाना सुनिश्चित किया जाएगा। केंद्र व राज्य सरकारों को चाहिए कि देश में दूरसंचार नियमों को और अधिक मजबूती प्रदान करें ताकि बाजार में प्रतिस्पद्र्धा सुनिश्चित हो सके। सरकार द्वारा डिजिटल संचार के क्षेत्र में और अधिक स्टार्टअप्स प्रोत्साहित करना डिजिटल डिवाइड को कम करने में निश्चित ही सहायक होगा।-सुखदेव वशिष्ठ

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