वायुसेना के बालाकोट हवाई हमले को लेकर ‘गंदी राजनीति’

Edited By ,Updated: 09 Mar, 2019 12:32 AM

dirty politics about the air force s balakot air strikes

लोकसभा चुनावों पर ऊंचे दाव लगे हैं। हर चीज का राजनीतिकरण हो रहा है, यहां तक कि भारतीय वायुसेना के साहसी बालाकोट हवाई हमले जैसे सर्वाधिक संवेदनशील सुरक्षा मुद्दे का भी। मेरा मानना है कि इस गंदी राजनीतिक खेल की शुरूआत करने वाले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह...

लोकसभा चुनावों पर ऊंचे दाव लगे हैं। हर चीज का राजनीतिकरण हो रहा है, यहां तक कि भारतीय वायुसेना के साहसी बालाकोट हवाई हमले जैसे सर्वाधिक संवेदनशील सुरक्षा मुद्दे का भी। मेरा मानना है कि इस गंदी राजनीतिक खेल की शुरूआत करने वाले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह थे जिन्होंने जनता के सामने हवाई हमले में मरने वालों की संख्या 250 रखी।

क्या उन्हें यह आंकड़ा सरकारी सूत्रों से मिला या सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जो गुजरात के दिनों से उनके नजदीकी सहयोगी हैं? मैं इस बारे सुनिश्चित नहीं हूं क्योंकि अभी तक यह अत्यंत गोपनीय रहा है। मगर कुछ विपक्षी नेताओं द्वारा 26 फरवरी के बालाकोट हवाई हमले पर ‘संदेह’ उठाने तथा ‘सबूत’ मांगने से पहले ही नुक्सान हो चुका है। यह अत्यंत अफसोसनाक है कि ‘चुनावी चूहा दौड़’ अत्यंत तेज हो गई है। कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने महबूबा मुफ्ती तथा ममता बनर्जी के सुर में सुर मिलाते हुए रविवार (3 मार्च) को हमले के सबूत मांगे। अप्रासंगिक कांग्रेस नेता ने कहा कि ‘जैसे अमरीका ने ओसामा बिन लादेन के खिलाफ कार्रवाई के पुख्ता सबूत दुनिया को दिए थे हमें भी अपने हवाई हमले के लिए ऐसा ही करना चाहिए।’

सुरक्षा बल किसी की राजनीतिक जागीर नहीं
दिग्विजय सिंह जबरदस्त ‘ओसामा बिन लादेन आप्रेशन’ के साथ पाक प्रायोजित पुलवामा हमले की प्रतिक्रिया में सामान्य बालाकोट हवाई हमले की तुलना कैसे कर सकते हैं, जिसे जैश-ए-मोहम्मद प्रशिक्षित एक स्थानीय कश्मीरी आत्मघाती बम हमलावर ने श्रीनगर जा रहे सी.आर.पी.एफ. के काफिले के खिलाफ अंजाम दिया था। यहां तक कि अमरीकी सरकार को भी ओसामा की समुद्र समाधि बनाने संंबंधी ब्यौरा उपलब्ध करवाने में महीनों लग गए थे। क्या गैर जिम्मेदार कांग्रेस नेता को एहसास है कि वह देश को गुमराह करने के लिए परोक्ष रूप से भारतीय वायुसेना को दोष दे रहे हैं? क्या उन्हें नहीं पता कि भारतीय सशस्त्र बल अपनी कार्रवाइयों में अत्यंत विश्वसनीय तथा  प्रोफैशनल हैं और वे किसी की राजनीतिक जागीर नहीं हैं।

वर्तमान विवादास्पद माहौल के बीच वायुसेना प्रमुख बी.एस. धनोआ ने सोमवार (4 मार्च) को कहा कि ‘वायुसेना इस स्थिति में नहीं है कि स्पष्ट कर सके कि कितने लोग भीतर (लक्ष्य के) थे। हम मानवीय लाशें नहीं गिनते। हम यह गिनते हैं कि कितने लक्ष्य भेदे गए या नहीं भेदे गए।’ उन्होंने कहा कि यह सरकार पर है कि वह मारे गए आतंकवादियों की संख्या बारे ब्यौरा उपलब्ध करवाए। अब भारतीय वायुसेना ने सरकार को ‘सैटेलाइट इमेजिस’ रिपोर्ट सौंपी है। इसने रायटर्स की प्लैनेट लैब्स इमेजिस रिपोर्ट का खंडन किया है। भारतीय वायुसेना ने लक्षित निशानों को सटीकता तथा सफलतापूर्वक भेदा है।

वायुसेना ने अपनी क्षमता दिखाई
नियंत्रण रेखा के पार हमला करके भारतीय वायुसेना ने एक अत्यंत पेचीदा अभियान के तहत कार्रवाई करने की अपनी क्षमता दिखाई है जिसके लिए विभिन्न तरह के विमानों तथा कौशलों के बीच अत्यंत तालमेल की जरूरत होती है। भारतीय वायुसेना ने इसका पर्याप्त रूप से प्रदर्शन किया। इसलिए विपक्षी नेताओं को इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने में अपना समय तथा ऊर्जा व्यर्थ करने की जरूरत नहीं है। उन्हें एहसास होना चाहिए कि राजनीतिक तौर पर नरेन्द्र मोदी की राजग सरकार को चोट पहुंचाने की बजाय वे केवल भारतीय वायुसेना की संवेदनशीलता को चोट पहुंचा रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि ऐसी घटिया राजनीतिक खेलों से भारतीय सशस्त्र बलों का मनोबल गिरेगा। फिर भी मैं आशा करता हूं कि विपक्षी नेता अपने निजी तथा पार्टी हितों से ऊपर उठकर सोच तथा कार्रवाई की राष्ट्रीय मुख्यधारा के साथ चलेंगे। किसी मुद्दे को उठाने वाले किसी भी विपक्षी नेता को राष्ट्रीय विरोधी तथा पाकिस्तानी एजैंट कहना गलत तथा अनैतिक है। उसे नहीं भूलना चाहिए कि हम एक लोकतंत्र हैं न कि तानाशाहीपूर्ण शासन।कई अन्य बड़े मुद्दे हैं जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, जिनका  अस्तित्व सेना के सहारे है, गत कुछ दिनों से आग भी उगल रहे हैं और शांति के पैगाम देते हुए नई दिल्ली के साथ वार्ता भी करना चाहते हैं।

क्या आतंकवाद तथा द्विपक्षीय वार्ता साथ-साथ चल सकते हैं? इस संबंध में हम इस्लामाबाद की पृष्ठभूमि से परिचित हैं। इसकी एक नकारात्मक मानसिकता है जिसे आई.एस.आई. तथा सेना द्वारा नियंत्रित किया जाता है। इस पेचीदा व्यवस्था में मेरा मानना है कि वार्ता प्रक्रिया से कोई उद्देश्य हासिल नहीं होगा। हमारे सामने केवल एक विकल्प है कि प्रतीक्षा करें और देखें कि भविष्य में पाकिस्तान की स्थिति क्या आकृति लेती है।

आतंकवाद और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते
हम इस बात को लेकर भी सुनिश्चित नहीं हो सकते कि जैश-ए-मोहम्मद के लोगों के खिलाफ इस्लामाबाद की कार्रवाई, जिसमें जमात-उद-दावा तथा फलह-ए-इंसानियत फाऊंडेशन पर प्रतिबंध लगाना शामिल है, कितनी गम्भीर है। अपने घरेलू माहौल की ओर वापस लौटते हुए मैं आशा करता हूं कि हमारे नेता मुद्दों तथा गैर मुद्दों का राजनीतिकरण नहीं करेंगे क्योंकि हमारे सामने एक बड़ा कार्य है। वह राजनीतिक कार्य नहीं है बल्कि एक अत्यंत पेचीदा व्यावसायिक कार्य है जिसे गैर राजनीतिक प्रतिष्ठा वाले अत्यंत योग्य व्यक्तियों को सौंपा जाना चाहिए।

दूसरे, हमें नागरिक-सैन्य समन्वय में बेहतरी के लिए एक विश्वसनीय योजना पर काम करना होगा। ऐसे समन्वय का अभाव हमें मुम्बई में पाकिस्तान के 9/11 के जेहादी हमले के दौरान देखने को मिला था। बंदूक एक सभ्य रास्ता नहीं है और जो लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास करते हैं, को बंदूक उठाने से कुछ नहीं मिलेगा, मेरे प्यारे कश्मीरियो।- हरिजय सिंह

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